एक रोचक विज्ञान कथा; जो गणित में कमजोर एक छात्र को गणित के फ़ॉर्मूलों में उलझाती है और निकालती भी है..

टन टन टन!’ स्कूल की घण्टी तीन बार बजी और सनी को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिल पर किसी ने तीन बार हथौड़े से वार कर दिया। चौथा पीरियड शुरू हो गया था और ये पीरियड उसे किसी राक्षस के भोजन की तरह लगता था। किसी तरह खत्म ही नहीं होता था। उसे गणित और गणित के अग्रवाल सर दोनों से चिढ़ थी। और चौथा पीरियड उन्हीं का होता था।

सनी का पूरा नाम सुनील कुमार वर्मा था। लेकिन वह सनी नाम से ही विख्यात था।

उसने अपने मन को उम्मीद बंधाई कि शायद आज अग्रवाल सर न आये हों। किसी एक्सीडेन्ट में उनकी टांग टूट गयी हो। आजकल के ट्रेफिक का कोई भरोसा तो है नहीं।

लेकिन ट्रेफिक वाकई भरोसेमन्द नहीं है। क्योंकि अग्रवाल सर अपनी दोनों टांगों की पूरी मजबूती के साथ क्लास में दाखिल हो रहे थे। चेहरे पर चढ़ा मोटा चश्मा उन्हें और खुंखार बना रहा था।

आने के साथ ही उन्होंने बोर्ड पर दो रेखाएं खींच दीं और एक लड़के को खड़ा किया, ‘‘अनिल, तुम बताओ ये क्या है?’’

अनिल खड़ा हुआ, ‘‘सर, ये दो समान्तर रेखायें हैं।’’

‘‘शाबाश। बैठ जाओ। गगन, तुम समान्तर रेखाओं की कोई एक विशेषता बताओ।’’

‘‘सर, समान्तर रेखाएं आपस में कभी नहीं मिलतीं।’’ गगन ने तुरन्त जवाब दिया। उसकी गणित का लोहा तो अच्छे अच्छे मानते थे।

‘‘गुड। तुम भी बैठ जाओ। सनी, अब तुम खड़े हो।’’

‘‘लो, आ गयी शामत।’’ किसी तरह उसने अपनी टांगों पर जोर दिया। पूरी क्लास का सर उसकी तरफ घूम गया था।

‘‘बताओ, समान्तर रेखाएं आपस में क्यों नहीं मिलतीं ?’’ अग्रवाल सर ने सवाल जड़ा और उसका दिमाग घूम गया। उन दोनों से तो इतने आसान सवाल और मुझसे इतना टेढ़ा।

‘‘सर, रेखाएं स्त्रीलिंग होती हैं। और स्त्रियों की विशेषता यही होती है कि वो आपस में मिल बैठकर नहीं रह सकतीं।’’ आखिरकार उसे एक धांसू जवाब सूझ ही गया।

दूसरे ही पल पूरी क्लास में एक ठहाका पड़ा और वह बौखला कर चारों तरफ देखने लगा। क्या उसके मुंह से कुछ गलत निकल गया था?

‘‘पूरी दुनिया सुधर जायेगी लेकिन तू नहीं सुधरेगा।’’ उसके बाद पूरे आधे घण्टे तक अग्रवाल सर ने उसका भेजा चबाया था।

सड़क पर पैडिल मारते हुए सनी आज कुछ ज्यादा ही विचलित था। उसे एहसास हो गया था कि गणित जीवन भर उसके पल्ले नहीं पड़ेगी। और गणित के बिना जीवन ही बेकार था। यही सबक रोज उसके माँ बाप और टीचर्स दिया करते थे।

सो उसने अपना जीवन समाप्त करने का निश्चय किया। उसके रास्ते में एक छोटा सा जंगल पड़ता था। उसके अंदर एक गहरा तालाब है, ये भी उसे पता था। उसने अपनी साइकिल सड़क से नीचे उतार दी। अब वह उस गहरे तालाब की ओर जा रहा था। चूंकि उसने तैरना सीखा नहीं था, इसलिए वह आसानी से डूबकर मर जायेगा यही विचार आया उसके मन में।

जल्दी ही उसकी साइकिल तालाब के किनारे पहुंच गयी। उसने स्पीड तेज कर दी। वह साइकिल के साथ ही पानी में घुस जाना चाहता था।

अचानक उसे लगा, पीछे से किसी ने उसकी साइकिल रोक ली है। उसने घूमकर देखना चाहा, लेकिन उसी समय उसकी गर्दन भी किसी ने पकड़ ली। कोई उसकी गर्दन दबा रहा था। धीरे धीरे उसपर बेहोशी छा गयी।

-------

इस छोटे से कमरे में तेज नीली रोशनी फैली हुई थी। इस रोशनी में चार बच्चे आसपास खड़े हुए किसी गंभीर चिंतन में डूबे थे। पास से देखने पर राज़ खुलता था कि ये दरअसल बच्चे नहीं, बौने प्राणी हैं। क्योंकि इनके चेहरे पर दाढ़ी मूंछें भी मौजूद थीं। इनके शरीर का गहरा पीला रंग सूचक था कि ये प्राणी इस धरती के अर्थात पृथ्वीवासी तो नहीं हैं।

इसी कमरे के एक कोने में सनी मौजूद था। बेहोश अवस्था में। लेकिन कमरे की सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली वस्तु थी, एक ताबूतनुमा शीशे का बक्सा। जिसके अंदर उन्ही चारों जैसा एक प्राणी निश्चल अवस्था में पड़ा हुआ था।

‘‘तो अब क्या इरादा है मि0 रोमियो?’’ उन चारों में से एक ने वातावरण में छायी निस्तब्धता तोड़ी।

‘‘हमें अपने सम्राट को किसी भी कीमत पर बचाना है। वरना पृथ्वी नाम के इस अंजान ग्रह पर हम ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह पायेंगे।’’

‘‘सारी गलती हमारे यान के आटोपायलट की थी। यहां के वायुमंडल में उतरते हुए उसने यान को पूरी तरह असंतुलित कर दिया। नतीजे में हमारे सम्राट का शरीर लगभग पूरा ही नष्ट हो गया।’’ तीसरा व्यक्ति बोला।

‘‘ठीक कहते हो सिलवासा। अब हमारे सम्राट के शरीर में केवल उसका मस्तिष्क ही सही सलामत बचा है। और अगर हमने देर की तो वह भी नष्ट हो जायेगा। क्यों रोमियो?’’ पहले वाला बोला।

‘‘हाँ डोव। अब आगे मैडम वान को अपना हुनर दिखाना है। उन्हें जल्द से जल्द सम्राट का दिमाग उस लड़के के शरीर में ट्रांस्प्लांट कर देना है, जिसे हम जंगल में तालाब के किनारे से पकड़ कर लाये हैं।’’

‘‘ठीक है।’’ तीसरा व्यक्ति जो दरअसल मैडम डोव थी, बोल उठी। और फिर वे सब अपने अपने काम में जुट गये। सनी को ताबूत के बगल में लिटा दिया गया था। फिर वे मस्तिष्क ट्रांस्प्लांट के आपरेशन में जुट गये। एक तरफ सनी का सर खोला जा रहा था और दूसरी तरफ सम्राट का।

ये आपरेशन पूरे एक घण्टे तक चलता रहा। और फिर थोड़ी देर बाद सम्राट का दिमाग सनी के शरीर में स्थापित हो चुका था। जबकि सनी का दिमाग अलग एक ट्रे में नजर आ रहा था।

‘‘अब पूरा हो गया है आपरेशन। हम लड़के के दिमाग को अब नष्ट कर देते हैं।’’ मैडम वान ने सनी के शरीर को अच्छी तरह टेस्ट करने के बाद कहा।

‘‘मेरे दिमाग में एक आईडिया आया है।’’ खिड़की से बाहर डाल पर बैठे बन्दर की ओर देखते हुए कहा रोमियो ने।

‘‘कैसा आईडिया?’’ सिलवासा ने पूछा।

‘‘इस दिमाग को उस बन्दर में फिट करके जंगल में छोड़ देते हैं। अगर होश में आने के बाद सम्राट के दिमाग ने इस शरीर को कुबूल नहीं किया तो एक मनुष्य का दिमाग बेकार में नष्ट हो जायेगा।’’

‘‘ठीक कहते हो रोमियो।’’ डोव ने सहमति जताई, और छोटी सी पिस्टल निकालकर बन्दर की तरफ तान दी। उसे बेहोश करने के लिए |

-------

मिसेज और मिस्टर वर्मा सनी के स्कूल में मौजूद थे। उनके सामने थी प्रिंसिपल मिसेज भाटिया।

‘‘देखिए, मैं फिर आपसे कहती हूं कि हाईस्कूल लेवेल तक के बच्चों की छुट्टी ठीक दो बजे हो जाती है। उसके बाद किसी के यहां रुकने का सवाल ही नहीं पैदा होता। और आपके बच्चे सुनील कुमार को तो मैं अच्छी तरह जानती हूं। वो तो कभी लाईब्रेरी भी नहीं जाता।’’ प्रिंसिपल ने कहा।

‘‘फिर भी आप अगर स्टाफ से एक बार पूछ लें तो...। दो घण्टे हो रहे हैं। सनी अभी तक घर नहीं पहुंचा।’’ मि0 वर्मा बोले।

‘‘उसकी तो कहीं इधर उधर जाने की भी आदत नहीं है। स्कूल से सीधा घर ही आता है।’’

उसी समय वहां किसी काम से अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। इन्हें बैठा देखकर वह इनकी तरफ घूमे।

‘‘अच्छा हुआ आप लोग आ गये। आपका बच्चा सुनील कुमार गणित में बिल्कुल गोल है। अगर आपने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो इस साल उसका पास होना मुश्किल है।’’

‘‘एक मिनट!’’ प्रिंसिपल ने उसे रोका, ‘‘मि0 और मिसेज वर्मा यहां इसलिए आये हैं क्योंकि इनका लड़का दो घण्टे से घर नहीं पहुंचा।’’

‘‘ज़रूर वह किसी पार्क वगैरा की तरफ निकल गया होगा। आज मैंने उसे सजा दी थी। हो सकता है दिल बहलाने के लिए कहीं पिक्चर देखने निकल गया होगा।’’

‘‘आप ऐसा करें, ’’ प्रिंसिपल मि0 वर्मा की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘थोड़ी देर और अपने लड़के का इंतिजार कर लें। हो सकता है अब तक वह घर पहुंच गया हो। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें और पुलिस को इन्फार्म करें।’’

‘‘ठीक है।’’ दोनों ठंडी सांस लेकर उठ खड़े हुए। उनके चेहरे पर परेशानी की लकीरें और गहरी हो गयी थीं।

-------

सम्राट के पपोटों में हरकत पैदा हुई और फिर धीरे धीरे उसने आँखें खोल दीं। उसके आसपास मौजूद सहयोगियों के चेहरे खिल उठे।

‘‘आप कैसा महसूस कर रहे हैं सम्राट?’’ डोव उसकी तरफ झुका।

‘‘मैं तो ठीक हूँ। लेकिन मुझे हुआ क्या था?’’

‘‘सम्राट! हमारे अंतरिक्ष यान में हुई दुर्घटना में आपका शरीर पूरी तरह नष्ट हो गया था। इसलिए हमने आपका दिमाग एक मानव के शरीर में फिट कर दिया है।’’

‘‘क्या?’’ चौंक पड़ा सम्राट।

‘‘क्या हमसे कोई गलती हो गयी सम्राट?’’ डरते डरते पूछा रोमियो ने।

थोडी़ देर चुप रहने के बाद सम्राट बोला, ‘‘तुम लोगों ने बिल्कुल ठीक किया। इस शरीर में शायद मैं अपने मकसद में जल्दी कामयाब हो जाऊँ। वह मकसद, जिसके लिए हम इस पृथ्वी पर आये हैं।’’

‘‘अब आगे के लिए क्या प्लान है सम्राट?’’ रोमियो ने पूछा।

‘‘फिलहाल जिस बच्चे का शरीर तुम लोगों ने मुझे दिया है, उसके घरवालों से मैं मिलूंगा। और कोशिश करूंगा उनमें घुलमिल कर रहने की। अगर मैं अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहा तो हम यहां बहुत कुछ कर सकते हैं।’’

-------

सनी जब क्लास में दाखिल हुआ तो आगे बैठे हुए सभी लड़के ठहाका मारकर हंस दिये। उन्हें पिछले दिन अग्रवाल सर को दिये जवाब और फिर उसकी शामत की याद आ गयी थी।

‘‘लो आ गया गणित का डब्बा।’’ अमित बोला। वह अग्रवाल सर का चहेता स्टूडेन्ट था।

‘‘इसके दिमाग का डब्बा तो हमेशा गोल रहेगा। पता नहीं किसने इसे हम लोगों के बीच बिठा दिया।’’ गगन मुंह बिचकाते हुए बोला।

सनी बिना किसी से बात किये चुपचाप पीछे की सीट पर जाकर बैठ गया।

जल्दी ही अग्रवाल सर का पीरियड भी शुरू हो गया। अंदर दाखिल होते ही उनकी पहली दृष्टि सनी पर गयी।

‘‘सनी! कल छुट्टी के बाद तुम कहां गायब हो गये थे?’’

‘‘मैं टहलने गया था जंगल तक।’’ संक्षिप्त जवाब दिया सनी के रूप में सम्राट ने।

‘‘अपने रिश्तेदारों से मिलने गया होगा वहाँ ये।’’ एक महीन सी आवाज उभरी और पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी।

अग्रवाल सर ने सबको शान्त किया और पढ़ाना शुरू किया, ‘‘आज मैं त्रिभुजों के कुछ गुण बताता हूँ। तीन भुजाओं से मिलने वाली ये आकृति त्रिभुज कहलाती है।’’ ब्लैक बोर्ड पर चाक से अग्रवाल सर ने त्रिभुज की आकृति खींची, ‘‘गगन, तुम बताओ, त्रिभुज के तीनों कोणों का योग कितना होता है?’’

‘‘सर, एक सौ अस्सी डिग्री।’’ गगन ने फौरन जवाब दिया।

‘‘गुड। सुनील कुमार, तुम खड़े हो और बताओ समबाहू त्रिभुज क्या होता है?’’ अग्रवाल सर किसी से पूछें या न पूछें सनी से जरूर पूछते थे।

सनी खड़ा हुआ, ‘‘सर, पहले मैं गगन के जवाब में कुछ जोड़ना चाहता हूं। त्रिभूज के तीनों कोणों का योग हमेशा एक सौ अस्सी डिग्री नहीं होता। यह निर्भर करता है उस सतह पर जहां वह त्रिभुज बना हुआ है। अगर वह सतह यूक्लीडियन प्लेन है तब तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री होगा, वरना कम या ज्यादा भी हो सकता है। मिसाल के तौर पर त्रिभुज किसी घड़े जैसी सतह पर बना है तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री से ज्यादा होगा। और अब मैं आता हूं आपके सवाल पर.........।’’ अग्रवाल सर ने उसे हाथ के इशारे से रुकने के लिए कहा और खुद अपने सर को थामकर कुर्सी पर बैठ गये।

पूरी क्लास अवाक होकर राम को देख रही थी।

‘‘यह सब तुमने कहाँ पढ़ा?’’ अग्रवाल सर ने अपनी साँसों को संभालते हुए पूछा।

‘‘यह तो कामनसेन्स है सर।’’ सनी के जवाब ने गगन और अमित के साथ अग्रवाल सर को भी सुलगा दिया।

‘‘सर आज्ञा दें तो मैं सनी के कामनसेन्स का टेस्ट लेना चाहता हूं।’’ गगन अपनी सीट से उठा। अग्रवाल सर ने बिना कुछ कहे सर हिलाया।

‘‘बताओ एक से सौ तक की संख्याओं को योग कितना होता है?’’ गगन ने पूछा। उसे मालूम था कि जिस फार्मूले को उसके भाई ने बताया है यह जोड़ निकालने के लिए, वह सनी को हरगिज नहीं पता होगा।

‘‘पाँच हजार पचास!’’ जितनी तेजी से सनी ने जवाब दिया उससे यही लगा किसी ने उसके दिमाग में कम्प्यूटर फिट कर दिया है।

सनी यही बताकर चुप नहीं हुआ, ‘‘मैंने यह कैलकुलेशन फार्मूले के आधार पर की है। जहां तक की संख्याओं को जोड़ना है, उससे एक आगे की संख्या लेकर उस संख्या से गुणा करो और फिर दो से भाग दे दो। रिजल्ट मिल जायेगा। वास्तव में यह समान्तर श्रेणी का एक स्पेशल केस होता है। यह श्रेणी अलजेब्रा की एक कॉमन श्रेणी है । अन्य प्रचलित श्रेणियां हैं गुणोत्तर, हरात्मक तथा चरघातांकी।’’

उसने खामोश होकर इधर उधर देखा। सारे बच्चों के साथ अग्रवाल सर का भी मुंह भाड़ जैसा खुला हुआ था। उन्हें इसका भी एहसास नहीं था कि एक मक्खी लगातार उनके खुले मुंह से अन्दर बाहर हो रही है।

-------

-------

‘‘हैलो सनी।’’ सनी ने घूमकर देखा, उसी के क्लास की स्टूडेन्ट नेहा उसे पुकार रही थी।

‘‘क्या बात है नेहा?’’

‘‘आज तो तुमने सबकी बजा दी। क्या जवाब दिये।’’

‘‘शुक्रिया।’’ सपाट चेहरे के साथ कहा सनी ने।

‘‘क्या बात है? आज तो तुम बदले बदले दिखाई दे रहे हो।’’ नेहा ने गौर से उसकी ओर देखा।

‘‘मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।’’ गड़बड़ा कर सनी बने सम्राट ने कहा।

‘‘चलो कैंटीन चलकर चाउमीन खाते हैं।’’ नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया।

‘‘चलो।’’दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गये।

-------

उस बंदर ने एक अंगड़ायी लेकर आँखें खोल दीं, जिसके शरीर में सनी का दिमाग फिट किया गया था। दो पलों तक तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ है फिर उसने चारों तरफ नजर दौड़ायी। वह जिस पलंग पर लेटा था अचानक वह जोर जोर से हिलने लगा। उसने घबरा कर नीचे नजर की और उसकी जान निकल गयी। वह एक ऊँचे पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर लेटा हुआ था।

उसने जल्दी से घबरा कर खड़ा होना चाहा किन्तु उसी समय उसका पैर फिसल गया और वह नीचे गिरने लगा। अब पल भर में जमीन से टकरा कर उसकी हड्डियाँ चूर हो जाने वाली थीं। किन्तु पता नहीं कहाँ से उसके शरीर में इतनी फुर्ती आ गयी। उसने हवा में ही पलटा खाया और एक दूसरी डाल पकड़ कर झूल गया।

उसे अपने शरीर की फुर्ती पर हैरत हुई। फिर उसकी नजर अपने हाथों पर गयी और वह एक बार फिर बुरी तरह घबरा गया। उसके हाथों सहित पूरे शरीर पर बड़े बड़े बाल उग आये थे।

‘‘ये ये सब क्या है!’’ वह बड़बड़ाया। फिर उसके दिमाग में पुरानी बातें याद आती गयीं। वह तो तालाब में डूबकर आत्महत्या करने निकला था। फिर छलांग लगाने से पहले ही किसी ने उसे बेहोश कर दिया था। लेकिन अब तो उसका पूरा शरीर ही बदलकर बंदर जैसा हो गया था।

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं मैं वाकई मर गया हूँ। और अब ये मेरा पुनर्जन्म है। चलो अच्छा है, कम से कम बंदर बनकर गणित से तो पीछा छूटा।’’

वह अंदर से एकाएक खुशी और फुर्ती से भर उठा। और एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग मारने लगा।

किन्तु उसी समय उसकी खुशी पर ब्रेक लग गया। सामने की डाल से लिपटा हुआ विषधर ज़बान लपलपाते हुए उसकी तरफ गुस्से से घूर रहा था।

-------

‘‘रोमियो, सम्राट का मैसेज आ रहा है।’’ सिलवासा ने स्क्रीन की तरफ ध्यान आकृष्ट किया और रोमियो के साथ बाकी साथी भी स्क्रीन की तरफ देखने लगे। फिर स्क्रीन पर धीरे धीरे सम्राट का चेहरा स्पष्ट हो गया जो दरअसल सनी का चेहरा था।

‘‘क्या पोजीशन है?’’ सम्राट की आवाज उन्हें सुनाई दी।

‘‘हम लोग तो ठीक हैं सम्राट। आगे के लिए क्या हुक्म है?’’ रोमियो ने पूछा।

‘‘फिलहाल तुम लोग अपने अंतरिक्ष यान को अच्छी तरह चेक करो। आइंदा के लिए उसे तैयार रहना चाहिए। मैं इन लोगों में काफी हद तक घुल मिल गया हूँ और धीरे धीरे अपना काम शुरू कर दूंगा।’’

‘‘ठीक है सम्राट।’’

‘‘तुम लोग एलर्ट रहना। किसी भी समय मुझे तुम लोगों की जरूरत पड़ सकती है।’’

‘‘हम लोग हर वक्त तैयार हैं।’’

‘‘वैसे पृथ्वीवासियों का आई. क्यू. बहुत अच्छा नहीं है। इसलिए मुझे विश्वास है कि बहुत जल्द हम कामयाब हो जायेंगे। दैट्स आल।’’ इसी के साथ स्क्रीन पर सम्राट का चेहरा दिखना बन्द हो गया।

-------

स्कूल के इनडोर स्टेडियम के एक कोने में तीनों की तिकड़ी सर जोड़े खड़ी हुई थी। तीनों में शामिल थे - गगन, अमित और सुहेल।

‘‘ये सनी का बच्चा तो हमारे लिए सिरदर्द बन गया है। समझ में नहीं आता उसकी गणित एकाएक इतनी मजबूत कैसे हो गयी।’’ अमित अपना सर खुजलाते हुए बोला।

‘‘कल क्लास की जो लड़कियां हमारे सामने गिड़गिड़ाया करती थीं, आज उसके आगे पीछे फिर रही हैं।’’

‘‘उसमें तुम्हारी खास गर्ल फ्रेन्ड भी है गगन। मैंने नेहा को अपनी आँखों से सनी के साथ चाउमिन खाते देखा है।’’

‘‘अब मैं उस कमबख्त की गर्दन तोड़ दूँगा।’’ गुस्से में बोला गगन।

‘‘बी कूल गगन।’’ अमित ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

‘‘उसका बाप डाक्टर है। कहीं ऐसा तो नहीं उसने अपने सुपुत्र के भेजे में आपरेशन करके मैथ के फार्मूले फिट कर दिये हों।’’

‘‘दुनिया के किसी डाक्टर में अभी इतना दम नहीं है।’’ अमित ने सुहेल की थ्योरी रिजेक्ट कर दी।

‘‘अग्रवाल सर भी उससे बुरी तरह खफा हैं। एक तो वह उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ता। और हम लोग जो सर के रेगुलर स्टूडेन्ट हैं, उन्हें वह नीचा दिखा रहा है।’’

‘‘हम लोगों को अग्रवाल सर से डिसकस करना चाहिए। वह जरूर सनी की गणित का कोई न कोई तोड़ निकाल लेंगे।’’

‘‘तुम ठीक कहते हो अमित। चलो चलते हैं।’’ तीनों वहाँ से चल दिये।

-------

जबकि बंदर बने सनी की जान सांसत में थी। सामने मौजूद विशालकाय साँप उसे गटकने के लिए तैयार खड़ा था। उसने बचाव बचाव कहने के लिए मुँह खोला। लेकिन मुँह से बंदरों जैसी खों खों निकल कर रह गयी।

साँप ने उसके ऊपर एक झपट्टा मारा और वह जल्दी से परे हो गया। इस चक्कर में उसके हाथ से डाल छूट गयी। और वह धड़ाक से नीचे चला आया। लेकिन नीचे उसे जरा भी चोट नहीं आयी। क्योंकि वह किसी जानवर की पीठ पर गिरा था। अब जो उसने घूमकर जानवर का चेहरा देखा तो उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह जानवर जंगली सुअर था।

जंगली सुअर भी अचानक आयी इस आफत से घबरा गया और सरपट नाक की सीध में दौड़ लगा दी। बड़ी मुश्किल से सनी उसकी पीठ पर बैलेंस कर पा रहा था।

फिर सुअर एक झाड़ी में घुस गया और सनी को नानी याद आ गयी। क्योंकि कंटीली झाड़ियों ने उसके पूरे जिस्म को छेड़ना शुरू कर दिया था। फिर उसके हाथ में एक मजबूत पौधा आ गया और वह उसे थामकर लटक गया। सुअर आगे भागता चला गया।

‘‘हाय हाय कहाँ फंस गया मैं। इससे अच्छा तो गणित ही पढ़ता रहता मैं।’’ कराहते हुए सनी सोच रहा था। फिर उसने इरादा किया शहर वापस लौटने का।

-------

‘‘सुनिए, मैं आपसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती हूँ।’’ बिस्तर पर करवट लेते हुए मिसेज वर्मा ने मिस्टर वर्मा के कंधे को हिलाया।

‘‘अब सोने दो। मुझे नींद आ रही है।’’ मिस्टर वर्मा ने फौरन आँखें बन्द कर लीं।

‘‘आप तो हमेशा इधर बिस्तर पर पहुँचे और उधर अंटा गफील हो गये।’’ मिसेज वर्मा ने शिकायत की।

‘‘तो क्या तुम चाहती हो मुझे नींद न आने की बीमारी हो जाये?’’

‘‘बकवास मत करिये और मेरी बात सुनिए। मुझे सनी आजकल कुछ बदला बदला सा लगता है।’’

‘‘हाँ। मैं भी देख रहा हूँ। उसका रंग आजकल कुछ ज्यादा ही साँवला हो गया है।’’

‘‘मैं रंग की बात नहीं कर रही हूँ।’’ मिसेज वर्मा ने दाँत पीसे, ‘‘मुझे उसके व्यवहार में कुछ बदलाव लग रहा है। हर वक्त खोया खोया सा रहता है। मुझसे आजकल किसी बात की जिद भी नहीं करता। जो कुछ कहती हूँ फौरन मान लेता है।’’

‘‘ये तो अच्छी बात है। तुम्हारी प्राब्लम साल्व हो गयी। तुम ही तो शिकायत करती थीं कि वह तुम्हारी बात नहीं सुनता।’’

‘‘पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि उसके शरीर में कोई भूत आ गया है।’’

‘‘अब तुमने शुरू कर दीं जाहिलों वाली बातें। मुझे नींद आ रही है। मैं सोता हूँ।’’ दूसरे ही पल मि0 वर्मा के खर्राटे गूंजने लगे थे। मिसेज वर्मा थोड़ी देर कुछ सोचती रही फिर वह भी अण्टा गफील हो गयी।

-------

अग्रवाल सर के घर पर उनके चहेते षिष्य डेरा जमाये हुए थे। यानि गगन, अमित और सुहेल सभी आपस में इस तरह सर जोड़कर बैठे थे मानो किसी गंभीर विषय पर विचार विमर्ष कर रहे हों।

‘‘सर, समझ में नहीं आता कल का गोबर गणेष सनी एकाएक इतना तेज कैसे हो गया।’’ अमित बोला।

‘‘आष्चर्य तो मुझे भी है। लेकिन अब उसे नीचा दिखाना ही होगा। वरना और सर चढ़ जायेगा।’’ अग्रवाल सर बोले।

‘‘हाँ सर। अब तो पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा है। अब तो वह आपको भी कुछ नहीं समझता।’’

‘‘अच्छा।’’ अग्रवाल सर ने पैर पटका। और तीनों ने मुस्कुराहट छुपाने के लिए अपने मुँह पर हाथ रख लिए। क्योंकि अग्रवाल सर के मोटे बदन की टाइट शर्ट उनके झटके से हिलने के कारण चरचरा कर फट गयी थी।

‘‘हाँ सर।’’ अमित जल्दी से बोला, ‘‘कहता है अग्रवाल सर की मैथ उसके मुकाबले में कुछ नहीं।’’

‘‘ऐसा कहा उसने।’’ गुस्से में उनके मुँह से झाग निकलने लगा था, ‘‘मैं उसे दिखाऊंगा कि गणित किस बला का नाम है। बच्चू को ऐसा सबक सिखाऊँगा कि मैथ का नाम लेना भूल जायेगा।’’

अब तीनों लड़कों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। क्योंकि वे अग्रवाल सर को गुस्सा दिलाने में कामयाब हो चुके थे। अब सनी की खैर नहीं थी।

-------

उधर बंदर बना सनी अब षहर की सीमा में प्रवेष कर चुका था। यहाँ आकर उसने राहत की साँस ली। ‘चलो जंगली जानवरों से पीछा छूटा। यहाँ पर सिर्फ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं। अब कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं।’

लेकिन यह क्या? कुत्ते तो भौंकते हुए उसी की तरफ दौड़े चले आ रहे थे। उसे याद आ गया कि उसका जिस्म बंदर का है। और कुत्ते बंदरों के अव्वल दर्जे के दुष्मन होते हैं।

एक बार फिर उसे दौड़ जाना पड़ा। उसने छलांग लगाई और एक मकान का पाइप पकड़कर जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में वह मकान की छत पर था।

अब वहाँ मौजूद पानी की टंकी पर चढ़कर वह चारों ओर नजारा कर रहा था। उसे एरिया कुछ जाना पहचाना महसूस हुआ। फिर इस घर को भी वह पहचान गया। यह तो नेहा का घर है। एक वही तो थी पूरे क्लास में जो उससे हमदर्दी रखती थी।

अब उसे थोड़ा इत्मिनान हुआ। वह नेहा को पूरी बात बतायेगा। षायद वह उसकी कुछ मदद कर सके।

सनी को किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने झांककर देखा, नेहा गीले कपड़ों को धूप में डालने के लिए ऊपर आ रही थी।

‘‘काम बन गया। लगता है ऊपर वाला मेरे ऊपर मेहरबान है।’’ उसने खुष होकर सोचा।

नेहा ऊपर आयी और फिर वहाँ लगे हुए तार पर कपड़े डालने लगी। अभी उसकी नजर बंदर उर्फ सनी पर नहीं पड़ी थी।

‘‘हैलो नेहा! मैं सनी हूँ। प्लीज मेरी मदद करो।’’ सनी बोला। ये अलग बात है कि उसके मुंह से सिर्फ बंदरों वाली खों खों ही निकल पायी।

नेहा ने घूमकर देखा। और फिर जो कुछ हुआ वह सनी के लिए अप्रत्याषित था।

नेहा ने एक जोर की चीख मारी और मम्मी-बंदर मम्मी-बंदर रटती हुई सीढ़ियों से नीचे भागी।

‘‘बंदर-किधर है बंदर..’’ सनी भी घबरा कर इधर उधर देखने लगा। फिर उसे याद आया कि बंदर तो वह खुद ही बना बैठा है।

‘‘तो नेहा भी मुझे पहचान नहीं पायी।’’ अफसोस के साथ उसने सोचा।

‘‘किधर है बंदर!’’ नीचे से एक दहाड़ सुनाई दी। सनी ने घबराकर देखा। नीचे नेहा का बड़ा भाई हाथ में मोटा डंडा लिए नेहा से पूछ रहा था। सनी की रूह फना हो गई। उसने वहाँ से फौरन निकल लेना ही उचित समझा।

फिर एक लम्बी छलांग ने उसे दूसरे मकान की छत पर पहुँचा दिया। यहाँ पहुंचकर वह खुष हो गया। क्योंकि चारों तरफ मूंगफलियां बिखरी हुई थीं। दरअसल उन्हें सुखाने के लिए वहाँ रखा गया था। सनी को जोरों की भूख लग रही थी, लिहाजा उसने आव देखा न ताव और मुट्ठी भर भर कर मूंगफलियां चबानी षुरू कर दीं।

अभी उसने दो तीन मुट्ठियां ही मुंह में डाली थीं कि कोई चीज बहुत जोरों से उसके पैर से टकराई। दर्द की एक जोरदार टीस में वह सी करके रह गया। फिर घूमकर देखा तो थोड़ी दूर पर एक लड़का खड़ा हुआ था हाथ में गुलेल लिए हुए।

‘‘आओ बच्चू, ये गुलेल मैंने तुम लोगों के लिए ही तैयार की है।’’ कहते हुए लड़का गुलेल में फिर से कंकड़ी लगाने लगा।

अब सनी के पास एक बार फिर भागने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

-------

उस समय क्लास में गुप्ता जी अंग्रेजी पढ़ा रहे थे जब चपरासी ने वहाँ प्रवेष किया। गुप्ता जी ने पढ़ाना छोड़कर प्रष्नात्मक दृष्टि से चपरासी को देखा।

‘‘मास्टर साहब, सनी को प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।’’

सनी बने सम्राट ने हैरत से चपरासी को देखा। भला प्रिंसिपल को उससे क्या काम पड़ गया था।

‘‘सनी!’’ गुप्ता जी ने सनी को पुकारा, ‘‘जाओ, तुम्हें प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।’’

सनी अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। एक ही जगह बैठे अमित गगन और सुहेल ने एक दूसरे को राज़भरी नज़रों से देखा।

-------

-------

जबकि बन्दर बने असली सनी ने भरपेट खाना खा लिया था और अब उसे नींद आ रही थी।

‘‘लगता है तुम काफी थक गये हो और अब तुम्हें नींद आ रही है।’’ मिसेज वर्मा ने उसकी तरफ देखा। सनी ने सहमति में सर हिलाया।

‘‘मेरे साथ आओ। मैं तुम्हारे सोने का इंतिजाम कर देती हूं।’’

मिसेज वर्मा ने किचन से बाहर जाने के लिये कदम बढ़ाया। सनी उसके पीछे पीछे हो लिया। उसे देखकर सुखद आष्चर्य हुआ कि वह उसे सनी के यानि उसी के कमरे की तरफ ले जा रही थी।

‘‘तो क्या मम्मी ने उसे पहचान लिया है? हो सकता है। भला कौन मां होगी जो अपने लाल को नहीं पहचानेगी।’’ वह खुषी खुषी उसके पीछे बढ़ने लगा। उसकी मम्मी सनी के कमरे के दरवाजे पर पहुंच गयी।

लेकिन वहां न रुककर वह आगे बढ़ गयी। और एक छोटे से खुले स्थान के पास जाकर खड़ी हो गयी जो सनी के कमरे की बगल में मौजूद था। यहां एक पाइप था जो छत की तरफ गया हुआ था। उस पाइप से बरसात के मौसम में छत का गंदा पानी नीचे बहता था।

‘‘तुम यहां आराम करो। मैं जाती हूं। कुछ और काम निपटाना है।’’ उसकी मम्मी वहाँ इषारा करके वहां से चली गयी और वह हसरत से उस छोटी सी गंदी जगह को घूरने लगा। उसके कमरे की एक खिड़की उसी तरफ खुलती थी और वह अक्सर उसका इस्तेमाल थूकने के लिए करता था। अब इस जगंह को आराम के लिए इस्तेमाल करना, उसे सोचकर ही उबकाई आ गयी।

लेकिन मरता क्या न करता। और कोई चारा ही न था। वह वहीं एक कोने में पसर गया। और कहते हैं नींद तो फांसी के तख्ते पर भी आ जाती है सो उसे भी थोड़ी ही देर में आ गयी।

-------

सनी बना सम्राट प्रिंसिपल के आफिस में दाखिल हुआ। प्रिंसिपल ने सर उठाकर उसकी तरफ देखा।

‘‘क्या बात है सुनील कुमार?’’ प्रिंसिपल ने पूछा।

‘‘मैडम मैं आपसे एक रिक्वेस्ट करना चाहता हूं।’’

‘‘लगता है तुम अग्रवाल सर की षिकायत लेकर आये हो। मैं जानती हूं कि वो तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती कर रहे हैं। और तुम्हें परेषान कर रहे हैं। लेकिन तुम घबराओ मत। मैं बहुत जल्दी उन्हें हटाने वाली हूं। नये गणित के टीचर की वैकेन्सी अखबार में दे दी गयी है। जैसे ही कोई नया टीचर आयेगा, उन्हें हम हटा देंगे।’’

‘‘मैडम, मुझे अग्रवाल सर से कोई षिकायत नहीं। मुझे तो इस दुनिया के किसी जीव से कोई षिकायत नहीं।’’ सनी की बात पर प्रिंसिपल मैडम ने हड़बड़ा कर उसकी तरफ देखा, इस समय वह कोई बहुत ही पहुंचा हुआ सन्यासी लग रहा था। बल्कि एक अजीब सी रोषनी उसके चेहरे के चारों तरफ फैली हुई थी।

‘‘क्या बात है सुनील कुमार? आज तुम कुछ बदले बदले दिखाई दे रहे हो।’’

‘‘हाँ मैडम। मैं वाकई बदल गया हूं। मैं क्यों बदला हूं यही बताने के लिए मैं आपके पास आया हूं।’’

‘‘तो फिर बताओ। ये सुनने के लिए मैं बेचैन हूं।’’

‘‘यहाँ पर नहीं मैडम। ये बात मैं पूरी दुनिया के सामने बताना चाहता हूं और उससे पहले पूरे स्कूल के सामने। आप प्लीज पूरे स्कूल में नोटिस निकलवा दीजिए कि सनी उन्हें कुछ खास बताना चाहता है।’’

‘‘ठीक है नोटिस निकल जायेगा।’’ मैडम सनी से कुछ ज्यादा ही इम्प्रेस हो चुकी थी इसलिए उसकी हर बात बिना चूँ चरा मान रही थी, ‘‘मैं आज ही एनाउंस कर देती हूं कि कल की प्रेयर में सबको हाजिर होना अनिवार्य है। प्रेयर के बाद तुम अपनी बात उनके सामने रख देना।’’

‘‘ठीक है मैडम। जो बात मैं कहना चाहता हूं। उसके लिए प्रेयर के बाद का समय ही सबसे अच्छा है।’’ सनी मैडम को अपनी पहेली में उलझाकर बाहर निकल गया।

-------

‘‘अरे नेहा तुमने ये नोटिस पढ़ा?’’ पिंकी ने नेहा का ध्यान नोटिस बोर्ड की तरफ दिलाया और वो सब एक साथ नोटिस बोर्ड को पढ़ने लगीं।

‘‘कल प्रेयर के बाद सनी क्या बताने जा रहा है?’’ तनु ने अपने दिमाग पर जोर डालने के लिए नाक भौं चढ़ाई।

‘‘पता नहीं। अब तो लगता है उसका दिमाग यहाँ के टीचरों की समझ से भी बाहर हो गया है।’’ नेहा ने कंधे उचकाते हुए कहा।

‘‘मैं बताऊं?’’ पिंकी बोली और दोनों उसकी तरफ घूम गयीं।

‘‘क्या?’’ नेहा ने पूछा।

‘‘मुझे लगता है कल सनी पूरे स्कूल के सामने तुम्हारे और अपने प्यार का एनाउंसमेन्ट करने जा रहा है। हो सकता है कल सबके सामने वह तुम्हें सगाई की अँगूठी पहना दे।’’ पिंकी अपनी गोल गोल आँखें छटकाते हुए बोली।

‘‘यह खुराफाती विचार तुम्हारे भेजे में आया कहाँ से?’’ नेहा ने उसे घूरा।

‘‘अरी यार, मेरा दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है। मैं उसकी आँखों में बहुत दिन से तुम्हारे लिये प्यार देख रही हूं।’’

‘‘काष कि ये सच होता।’’ नेहा ने एक ठंडी साँस ली, ‘‘लेकिन यह बस एक हसीन सपने के सिवा और कुछ नहीं।’’

‘‘क्यों सपना क्यों? मैंने कह दिया सो कह दिया। कल वह यही करेगा जो मैं कह रही हूं।’’

पिंकी ने झटके के साथ अपनी उंगली ऊपर उठायी और उसी समय उसे पीछे से एक जोरदार झटका लगा। वह उई कहकर पीछे घूमी तो एक लड़का उसके पीछे औंधे मुंह लेटा हुआ था। एक भारी भरकम गुलदस्ता उसके हाथ से छूटकर बगल में गिर चुका था। फिर कराहते हुए वह लड़का जब ऊपर उठा तो उन्होंने उसके चेहरे पर कीचड़ भरा होने के बावजूद उसे पहचान लिया। यह गगन था।

‘‘अरे गगन! तुम्हें क्या हुआ?’’ तनु ने हैरत से पूछा।

‘‘ऐक्चुअली अपने भारी भरकम गुलदस्ते की वजह से सामने देख नहीं पाया और नाली से ठोकर खा गया।‘‘ गगन ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा।

‘‘यह गुलदस्ता मेरे लिये है न। गगन तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो।’’ पिंकी खुष होकर बोली और गगन ने बुरा सा मुंह बनाया। पूरे स्कूल में यही लड़की ऐसी थी जो उसे एक आँख नहीं भाती थी।

‘‘आपको मैं किसी टाइम इमामदस्ता दे जाऊंगा। मसाला कूटने वाला। ये गुलदस्ता तो नेहा तुम्हारे लिये है।’’ गगन ने गुलदस्ता जमीन से उठाया और नेहा की तरफ बढ़ा दिया।

‘‘मेरे लिये? भला मैं इस गुलदस्ते का क्या करूं?’’ नेहा ने कोई भाव नहीं दिया।

‘‘ऐक्चुअली आज मैं तुम्हारे सामने वह बात निकाल देना चाहता हूं जो बरसों से तुमसे कहने के लिये तड़प रहा हूं।’’ गगन इस वक्त पूरा रोमाण्टिक होने की कोषिष कर रहा था। यह अलग बात है कि षक्ल से कुछ और ही लग रहा था।

‘‘कमाल है! बात न हुई क़ब्ज़ का मर्ज़ हो गया कि जब तक न निकले आदमी तड़पता रहे।’’ तनु की बीच में टपक कर बोलने की आदत कभी कभी सामने वाले को दाँत पीसने पर मजबूर कर देती थी।

‘‘तो फिर जल्दी बोल कर अपनी तड़प निकालो। मुझे काम से जाना है।’’ नेहा ने अपनी घड़ी पर नजर की।

‘‘नेहा, आई लव यू सो मच और मैं तुमसे मंगनी और षादी दोनों करना चाहता हूं। ये देखो मैं अंगूठी भी लेकर आया हूं मंगनी के लिये।’’ गगन ने जेब से अंगूठी निकालकर दिखायी।

नेहा ने एक गहरी साँस ली और पिंकी की तरफ घूमी, ‘‘पिंकी, तुम्हारी भविष्यवाणी तो कल की बजाय आज ही सच हो गयी।’’

‘‘अरे क्या मेरे बारे में कोई भविष्यवाणी की गयी थी?’’ खुष होकर गगन ने पूछा।

‘‘हाँ।’’ नेहा ने कहा।

‘‘क्या?’’ दाँत निकालकर गगन ने पूछा।

‘‘यही कि एक गुलदस्ता तुम्हारे सर पर टूटने वाला है।’’ नेहा ने उसी का गुलदस्ता उसके सर पर दे मारा। और तेजी के साथ वहाँ से निकलती चली गयी। जबकि गगन अपने सर को सहलाता गुलदस्ते वाले को कोसता रह गया जिसने इतने भारी बरतन में रखकर वह गुलदस्ता बनाया था।

-------

पता नहीं उस वक्त क्या बज रहा था जब खट पट की आवाज सुनकर सनी की आँख खुल गयी। उसने अपनी स्थिति पर नजर डाली। उस पत्थर पर काफी अच्छी नींद आयी थी उसे। फिर उसका ध्यान अपने कमरे की तरफ गया जिसकी खिड़की उसकी तरफ खुलती थी। उसने देखा कि उसके कमरे में रोषनी हो रही थी। यानि कमरे में कोई मौजूद था। उसने धीरे धीरे अपना सर खिड़की की तरफ बढ़ाया। वह देखना चाहता था कि कमरे में कौन मौजूद है।

उसकी आँखें खिड़की के बराबर में पहुंचीं और तब उसने देखा कि उसकी कुर्सी पर कोई उसी के डील डौल का लड़का मौजूद है जिसकी पीठ खिड़की की तरफ थी। वह लड़का कोई किताब पढ़ रहा था। सनी ने गौर से किताब को देखा और यह देखकर उसके देवता कूच कर गये कि यह किताब उसकी नहीं बल्कि उसके बाप की थी जिसे वह हाल ही में किसी कबाड़ी मार्केट से खरीद कर लाये थे। यह किताब प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान पर आधारित थी। सनी ने एक बार उसे उठाया था और फिर मुखपृष्ठ देखकर रख दिया था।

‘तो यह है वह बहुरूपिया जो सनी बनकर मेरे घर पर कब्जा जमाये हुए है।’ सनी ने अपने मन में कहा।

वह लड़का तल्लीनता से किताब के अध्ययन में जुटा हुआ था। इतनी तल्लीनता से तो सनी अपने कोर्स की किताबें भी नहीं पढ़ता था जैसे वह उसके बाप की किताब पढ़ रहा था।

‘मौका अच्छा है। मैं आज इसका सर तोड़ दूंगा। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।’ बन्दर बने सनी ने इधर उधर नज़र दौड़ाई और जल्दी ही एक भारी पत्थर पर उसकी निगाहें गड़ गयीं। वह पत्थर के पास गया और उसे अपने हाथों में थाम लिया। अब वह धीरे धीरे खिड़की की ओर बढ़ा। खिड़की की चौखट पर उसने पत्थर रख दिया और फिर उचक कर खिड़की पर चढ़ गया। जबसे उसे बन्दर का षरीर मिला था, उसकी किसी भी हरकत में कोई आवाज़ नहीं पैदा होती थी। और वह लड़का तो वैसे भी किताब की स्टडी में इतना तल्लीन था कि उसे सनी के अन्दर आने का कोई एहसास ही नहीं हुआ।

सनी धीरे धीरे चलता हुआ उसके ठीक पीछे पहुंच गया। उसने उस लड़के की खोपड़ी तोड़ने के लिये पत्थर को अपने सर से बलन्द किया। और उसी पल वह लड़का उसकी तरफ घूम गया। उसकी आँखें सनी की आँखों से टकराइंर् और सनी को ऐसा लगा मानो उसके हाथों को किसी ने जकड़ लिया हो। उसने अपने हाथों को हिलाने की कोषिष की लेकिन असफल रहा।

लेकिन सनी को अपनी दषा से भी ज्यादा एहसास उस हैरत का था जो उस लड़के का चेहरा देखकर पैदा हुई थी। वह लड़का हूबहू उसकी फोटोस्टेट कॉपी था। जरा भी दोनों में फर्क नहीं था। उस लड़के ने अपने सर को झटका दिया और सनी के हाथ से पत्थर छूटकर नीचे गिर गया।

‘‘तो तुम आ ही गये अपने घर।’’ उस लड़के के मुंह से आवाज़ निकली और सनी को आष्चर्य हुआ। क्योंकि उसने उसे पहचान लिया था। उसके बन्दर की षक्ल में होने के बावजूद।

‘‘कौन हो तुम?’’ सनी ने पूछना चाहा लेकिन उसकी ज़बान से एक बार फिर बन्दरों वाली खों खों निकल कर रह गयी।

‘‘मैं ... सनी हूं। क्या षक्ल से नहीं दिखाई देता।’’ उस लड़के ने अपने चेहरे की ओर इषारा किया। सनी ने एक गहरी साँस ली। इसका मतलब उसका हमषक्ल उसकी ज़बान समझ रहा था।

‘‘ल.. लेकिन सनी तो मैं हूं।’’ उसने हकलाते हुए कहा।

‘‘तुम सनी नहीं हो। तुम सिर्फ एक बन्दर हो, जिसके अन्दर सनी का दिमाग फिट किया गया है।’’ उस लड़के ने कहा। इसका मतलब उस लड़के को सारी बातें मालूम थीं। और षायद उसी का इन सबके पीछे हाथ भी था।

‘‘तुम हो कौन जिसने मेरे षरीर और घर दोनों पर अपना अधिकार कर लिया है?’’ सनी ने इसबार बेबसी के साथ पूछा।

‘‘जल्दी ही जान जाओगे मेरे बारे में। अगर तुम अपनी भलाई चाहते हो तो मेरे साथ ही रहना अब। क्योंकि मेरे अलावा इस दुनिया में तुम्हारी भाषा और कोई नहीं समझ सकता है। और तुम्हारे मेरे पास रहने से मेरे बहुत से मकसद आसानी से हल हो जायेंगे?’’ वह लड़का इस तरह उसकी कुर्सी पर बैठा था मानो कोई सम्राट बैठा हो।

‘‘कैसे मक़सद?’’ सनी ने पूछा।

‘‘मैंने कहा न उतावली ठीक नहीं। धीरे धीरे तुम्हें सब मालूम हो जायेगा।’’

‘‘अरे सनी, किससे बात कर रहा है?’’ बाहर से उसकी माँ की आवाज़ आयी। और फिर वह अन्दर दाखिल भी हो गयी।

‘‘मैं इस बन्दर से बात कर रहा था माँ।’’ सनी बने सम्राट ने बन्दर बने सनी की ओर इषारा किया और सनी सिर्फ दाँत पीसकर रह गया।

‘‘अरे! ये अन्दर कैसे आ गया? वैसे बहुत समझदार बन्दर है ये। तुम इसे पालतू बना लो। काम आयेगा।’’

‘‘पालतू तो मैं इसे पहले ही बना चुका हूं।’’ सनी बने सम्राट ने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।

-------

स्कूल का प्रार्थना स्थल इस समय पूरी तरह फुल था। जो बच्चे कभी स्कूल नहीं आते थे वह भी आज मौजूद थे। क्योंकि सब को यही जिज्ञासा थी कि देखें आज सनी क्या एनाउंस करने जा रहा है। कुछ लड़कों के चेहरे भी उतरे हुए थे। ये लड़के थे अमित, सुहेल और गगन। उन्हें यही डर सता रहा था कि कहीं सनी उनकी उस दिन वाली घटना के बारे में तो नहीं बताने वाला है जब उन्होंने उसे मारने की कोषिष की थी। वहां टीचर व प्रिंसिपल सहित सभी मौजूद थे सिवाय सनी के। प्रिंसिपल बार बार अपनी घड़ी देख रही थीं।

‘‘मैंडम, प्रार्थना का समय हो गया है। क्या मैं प्रार्थना षुरू करवा दूं?’’ सक्सेना सर ने प्रिंसिपल को मुखातिब किया।

‘‘दो मिनट इंतिजार कर लीजिए सक्सेना जी। सनी को आ जाने दीजिए। उसे आज कुछ एनाउंस करना है।’’

‘‘लगता है वह हमारी छूट का कुछ ज्यादा ही नाजायज़ फायदा उठा रहा है। जब सारे बच्चे आ गये तो वह क्यों नहीं आया अभी तक।’’ सक्सेना सर बड़बड़ाये।

उसी समय सनी वहाँ दाखिल हुआ। उसके साथ साथ एक बन्दर भी चल रहा था।

‘‘अरे सुनील कुमार। तुम इतनी देर से क्यों आये? और क्या ये बन्दर तुम्हारा पालतू है?’’ प्रिंसिपल भाटिया ने पूछा।

‘‘मैं किसी भी प्राणी को अपना पालतू बना सकता हूं।’’ सनी ने अजीब से स्वर में कहा।

‘‘क्या मैं प्रार्थना षुरू करवाऊं?’’ सक्सेना सर ने प्रिंसिपल की ओर देखा।

‘‘जी हां।’’ प्रिंसिपल ने सहमति दी और वहाँ ईष्वर की वंदना षुरू हो गयी। बन्दर बने सनी ने भी अपने हाथ जोड़ लिये थे।

वंदना खत्म हुई। अब प्रिंसिपल सनी यानि सम्राट की तरफ घूमी।

‘‘हाँ सुनील कुमार। तुम्हें जो एनाउंस करना है तुम कर सकते हो।’’

सनी बने सम्राट ने माइक संभाला और कहना षुरू किया, ‘‘यहाँ पर मौजूद सभी श्रोताओं। अभी आप लोगों ने ईष्वर की वंदना की। मैं आपसे सवाल करता हूं। क्या आप में से किसी ने ईष्वर को देखा है?’’

सभी बच्चों ने नहीं में सर हिलाया।

‘‘अगर तुम लोगों के सामने ईष्वर प्रकट हो जाये तो तुम लोगों को कैसा लगेगा?’’

उसके इस सवाल पर सब उसका मुंह ताकने लगे। फिर एक लड़का बोला, ‘‘अगर हमारे सामने ईष्वर प्रकट हो जाये तो हम फौरन उसके सामने अपना सर झुका देंगे।’’

उसकी बात पर सब बच्चों ने एक स्वर में ‘हाँ’ कहा।

‘‘तो फिर आओ। मेरे सामने अपना सर झुकाओ। क्योंकि मैं ही हूं ईष्वर। सर्वषक्तिमान इस पूरी सृष्टि का रचयिता।’’

सनी की बात सुनकर वहाँ सन्नाटा छा गया। बच्चों के साथ साथ वहाँ मौजूद टीचर्स भी सनी बने सम्राट का मुंह ताकने लगे थे। जबकि बन्दर बना असली सनी भी हैरत में पड़ गया था।

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो सनी?’’ प्रिंसिपल ने हैरत से उसकी ओर देखा।

‘‘अब मैं सनी नहीं हूं। क्योंकि सनी की आत्मा मेरे षरीर से निकल चुकी है और परमात्मा का अंष मेरे षरीर में दाखिल हो चुका है। अब मैं अवतार बन चुका हूं परमेष्वर का।’’ सम्राट के मुंह से निकलने वाली आवाज़ में अच्छी खासी गहराई थी।

‘‘हम कैसे मान लें कि तुम ईष्वर के अवतार हो?’’ अग्रवाल सर कई दिन बाद सनी से मुखातिब हुए।

‘‘जिस प्रकार से मैंने गणित के सवाल हल किये हैं और तुम्हारे षागिर्दों को नाकों चने चबवाए हैं क्या इससे यह बात सिद्ध नहीं होती कि मैं सर्वषक्तिमान हूं?’’

‘‘यह तो मैं मानता हूं कि तुम्हारे अन्दर कोई दैवी षक्ति मौजूद है। लेकिन तुम्हें ईष्वर तो मैं हरगिज़ नहीं मान सकता।’’ अग्रवाल सर ने टोपी उतारकर अपनी खोपड़ी खुजलाई।

‘‘मैं भी नहीं मानता। मेरा अल्लाह तो वो है जो हर जगह है और किसी को दिखाई नहीं देता। तुम अल्लाह हरगिज नहीं हो सकते।’’ सुहेल बोला।

‘‘लगता है मुझे अपनी षक्तियां दिखानी ही पड़ेंगी।’’ सम्राट बोला। फिर उसने अपनी एक उंगली अग्रवाल सर की ओर उठायी और दूसरी सुहेल की तरफ। दूसरे ही पल दोनों उछल कर हवा में टंग गये। वहां मौजूद सारे बच्चे यह दृष्य देखकर चीख पड़े। सनी बने सम्राट ने फिर इषारा किया और दोनों हवा में चक्कर खाने लगे। इस चक्कर में दोनों एक दूसरे से बार बार टकरा रहे थे। फिर उसने एक और इषारा किया और दोनों धप से ज़मीन पर गिर गये। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे।

‘‘किसी और को मेरे ईष्वर होने में षक हो तो वह बता दे।’’ सनी ने चारों तरफ देखकर कहा।

सब चुप रहे। अगर किसी को षक था भी तो मुंह खोलकर उसे हवा में लटकने का हरगिज़ षौक नहीं था।

-------

षहर के लोकल न्यूज़ पेपर्स और न्यूज़ चैनल्स को ज़बरदस्त मसाला मिल गया था। सब चीख चीखकर सुनील कुमार वर्मा के भगवान बन जाने की कहानी सुना रहे थे। सनी के घर में एक आफत मची हुई थी। उसके माँ बाप यानि मिसेज और मि0 वर्मा बदहवास घर के एक कोने में दुबके हुए थे जबकि उनके घर का बाहरी दरवाज़ा जोर जोर से भड़भड़ाया जा रहा था। बाहर पब्लिक का एक रैला था जो षायद उनका दरवाज़ा तोड़कर अन्दर घुस जाना चाहती थी। आखिरकार कमज़ोर सा दरवाज़ा भीड़ की ताब न लाकर षहीद हो गया और पब्लिक तले ऊपर गिरती पड़ती अन्दर दाखिल हो गयी। भीड़ की स्थिति देखकर दोनों और सिमट गये।

‘‘द..देखो, हम कुछ नहीं जानते...हमें...’’ मिसेज वर्मा ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसी वक्त मलखान सिंह बोल उठे जो सबसे आगे मौजूद थे।

‘‘भाईयों यही हैं वह पवित्र हस्तियां जिन्होंने हमारे भगवान को जन्म दिया है।’’

मलखान सिंह का इतना कहना था कि पब्लिक मि0 एण्ड मिसेज वर्मा पर टूट पड़ी। कोई मि0 वर्मा के हाथ चूम रहा था तो कोई मिसेज वर्मा के पैरों पर गिरा जा रहा था। सब अपनी अपनी इच्छाएं भी मि0 और मिसेज वर्मा से बयान करने लगे थे ताकि वह अपने भगवान सुपुत्र से सिफारिष कर दें।

‘‘कृपा करके आप सनी से कह दें कि वह मेरा इनकम टैक्स का मामला क्लीयर कर दे।’’ नंबर दो का रुपया धड़ल्ले से कमाने वाले राजू मियां हाथ जोड़कर बोले जिनके घर में कुछ ही दिन पहले इनकम टैक्स की रेड पड़ी थी।’’

‘‘अबे ओये ऊपर वाला तेरे भेजे को खराब करे। तू भगवान को सनी सनी कहकर पुकारता है मानो वह तेरा खरीदा हुआ है।’’ मलखान सिंह राजू मियां की गर्दन पकड़ कर दहाड़े।

‘‘तो फिर हम सनी को और क्या बोलें?’’ मिनमिनाती आवाज में राजू मियां ने पूछा।

‘‘ओये तू अगर सनी को सनी देवता कह देगा तो क्या तेरी ज़बान घिस जायेगी?’’

‘‘लेकिन इससे तो कन्फ्यूज़न हो जायेगा मलखान भाई।’’ पंडित बी.एन.शर्मा पीछे से बोले।

‘‘ओये कैसा कन्फ्यूज़न पंडित।’’ मलखान ने इस बार बी.एन.शर्मा की तरफ देखकर आँखें तरेरीं।

‘‘हम लोग एक शनि देवता की पहले से ही पूजा करते हैं। हम इन्हें भी सनी देवता कहने लगे तो लोग डाउट में पड़ जायेंगे कि हम शनि देवता की बात कर रहे हैं या सनी देवता की।’’

‘‘हाँ यह बात तो है।’’ मलखान जी सर खुजलाने लगे। फिर बोले, ‘‘आईडिया। हम इन्हें पूरे नाम से बुलाते हैं यानि भगवान सुनील कुमार वर्मा।’’

‘‘हाँ यह ठीक है।’’ पंडित बी.एन.शर्मा ने सर हिलाया।

‘‘तो फिर बोलो तुम सब। भगवान सुनील कुमार वर्मा की - जय हो।’’ अब मलखान सिंह जी बाकायदा वहाँ सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कराने लगे थे।

लेकिन जितनी ज्यादा ये लोग जय जयकार करते थे मिस्टर और मिसेज वर्मा उतना ही ज्यादा अपने में दुबके जा रहे थे।

-------

सनी यानि सम्राट को ईष्वर मानने वालों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी। यह देखकर प्रषासन की आँखों में चिन्ता के भाव तैरने लगे थे। क्योंकि इस नये भगवान को मानने वालों और पुराने भगवानों को मानने वालों के बीच झगड़ों के आसार भी बढ़ते जा रहे थे। पुराने धर्मों को मानने वाले इस नये धर्म के भगवान को पाखंडी बता रहे थे। जवाब में सम्राट के अनुयायी उन्हें मरने मारने पर उतारू थे। हालांकि अभी कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी। लेकिन आगे क्या होगा इसकी आषंका सभी को थी।

पुलिस विभाग ने इस नये भगवान की तफ्तीष के लिये एक दरोगा को दो सिपाहियों के साथ भेजा।

‘‘यह तुमने क्या नाटकबाज़ी फैला रखी है!’’ सनी बने सम्राट के सामने पहुंचकर दरोगा ने आँखें तरेरीं। सम्राट इस समय ऊंचे चबूतरे पर विराजमान था। असली सनी बन्दर के जिस्म में उसकी बगल में बैठा हुआ था। अगर वह मानवीय षक्ल में होता तो कोई भी उसकी चेहरे की परेषानी आसानी से देख लेता। जिस चबूतरे पर वे लोग मौजूद थे उसके आसपास लगभग सौ लोगों का मजमा लगा हुआ था जो भगवान सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कर रहे थे।

‘‘यहाँ कोई नाटक नहीं फैला हुआ है। यहाँ तो षांति का साम्राज्य फैला हुआ है।’’ सम्राट ने षांत स्वर में जवाब दिया।

‘‘कौन षांति? सिपाहियों, देखो षांति किधर गायब है। ... दोनों को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो।’’ दरोगा सिपाहियों की तरफ घूमा।

सिपाही तुरंत षांति की तलाष में जुट गये।

उधर सम्राट का प्रवचन जारी था, ‘‘षांति, सुख और चैन की तलाष हर एक को होती है। लेकिन षांति तो तुम्हारे मन के अन्दर ही बसती है। लेकिन तुम उसे पहचान नहीं पाते। ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को जीवन भर ईष्वर की तलाष होती है। लेकिन अगर ईष्वर सामने आ जाये तो तुम उसे पहचान नहीं पाते और दीवाने बनकर इधर उधर चकराने लगते हो। ऐ दीवानों मुझे पहचानो। मैं ही ईष्वर हूं। मैं ही हूं इस सृष्टि का निर्माता।’’

‘‘इस दीवाने को ले चलकर हवालात में बन्द कर दो। जब दो डंडे पड़ेंगे तो अक्ल ठिकाने आ जायेगी। ससुर ईष्वर बना रहा है।’’ दरोगा ने व्यंगात्मक भाव में कहा। सिपाही सम्राट को पकड़ने के लिये आगे बढ़े लेकिन सम्राट के भक्तों ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।

‘‘उन्हें मत रोको। मेरे पास आने दो।’’ सम्राट ने षांत स्वर में कहा। सिपाही आगे बढ़े और जैसे ही उन्होंने सम्राट को हाथ लगाया। बुरी तरह उछलने कूदने लगे और साथ ही इस तरह हंसने लगे मानो कोई उन्हें गुदगुदा रहा है। पब्लिक और दरोगा हैरत से उन्हें देख रहे थे।

‘‘अबे उल्लुओं। ये क्या कर रहे हो तुम लोग। जल्दी से इसे पकड़ो और हवालात में बन्द करो।’’ दरोगा चीखा। लेकिन सिपाहियों ने मानो उसकी बात ही नहीं सुनी। वे उसी प्रकार उछलने कूदने और कहकहा मारने में व्यस्त थे।

‘‘नर्क में जाओ तुम लोग । मैं ही कुछ करता हूं।’’ दरोगा इस बार खुद सम्राट को गिरफ्तार करने आगे बढ़ा। सम्राट षांत भाव से उसे देख रहा था। जैसे ही दरोगा ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, सम्राट ने उसके चेहरे पर एक फूंक मारी। फौरन ही दरोगा दो कदम ठिठक कर पीछे हट गया। अचानक ही उसके चेहरे के भाव बदल गये। चेहरे की सख्ती गायब हो गयी और उसकी जगह ऐसा लगा मानो उसपर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। चेहरा कुछ इसी तरह उदास हो गया था।

फिर उसकी आँखें छलछला कर निर्मल धारा भी बहाने लगीं। और उसके मुंह से भर्राई हुई आवाज़ में निकला, ‘‘माँ, तुम कहां हो। मुझे छोड़कर किधर खो गयीं तुम। देखो तुम्हारी याद में तुम्हारे बबलू का क्या हाल हो गया है।’’

सम्राट के पास बैठे भक्त हैरत से दरोगा को देखने लगे थे।

‘‘बचपन में इसकी माँ एक मेले में गुम हो गयी थी। आज उसे उसकी याद आ रही है।’’ सम्राट ने बताया।

‘‘लेकिन अभी अचानक इसे कैसे माँ की याद आ गयी?’’ एक भक्त ने पूछा।

‘‘इसलिए क्योंकि अभी मैंने इसको इसकी माँ की आत्मा के दर्शन कराए हैं।’’

‘‘अरे वाह। भगवान, कृपा करके मुझे अपने बाप की आत्मा के दर्शन करा दीजिए। मुझे उससे उस गड़े धन का पता पूछना है जो उसने ज़मीन में कहीं छुपा दिया था। और फिर हमें बताने से पहले ही उसका दम निकल गया था।’’ भक्त ने आशा भरी नज़रों से भगवान की ओर देखा।

‘‘इसके लिये तुम्हारे बाप की आत्मा से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि करारे नोटों की शक्ल में जो धन उसने गाड़ा था, वह पूरे का पूरा दीमक चाट गयी है।’’ सम्राट ने भक्त की आशाओं पर तुरंत आरी चला दी।

उधर दरोगा अपनी माँ की याद में एक कोने में गुमसुम बैठ गया था, अतः अब सम्राट को रोकने वाला कोई नहीं था। अब तो वहां अच्छी खासी तादाद में न्यूज़ चैनल वाले भी पहुंच गये थे। और चीख चीखकर सुनील कुमार वर्मा के बारे में बहस कर रहे थे कि वह असली ईश्वर है या नक़ली। इन चैनलों के ज़रिये इस भगवान को पूरे देश में देखा जा रहा था। दूसरी तरफ बन्दर बना असली सुनील कुमार वर्मा यानि सनी अपने दाँत पीस रहा था और मन ही मन सम्राट को सबक सिखाने की तरकीबें सोच रहा था। सम्राट का ध्यान इस समय उसकी तरफ नहीं था। जल्दी ही सनी को उसे सबक सिखाने की तरकीब सूझ गयी। इस समय एक धूपबत्ती उसकी बगल में ही जल रही थी। उसने धीरे से उस धूपबत्ती को सम्राट की तरफ खिसकाना शुरू कर दिया।

सम्राट इस समय उपदेश देने में तल्लीन था। उसने सनी की हरकत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसे वैसे भी सनी की कोई चिन्ता नहीं थी। भला बन्दर के जिस्म में मौजूद सनी उसका बिगाड़ ही क्या सकता था।

अचानक सनी ने झपटकर जलती हुई धूपबत्ती सम्राट के पिछवाड़े लगा दी। दूसरे ही पल एक चीख मारकर सम्राट उछल पड़ा। उसने हैरत और गुस्से से बन्दर बने सनी की ओर देखा। पहली बार किसी ने उसे इस धरती पर चोट पहुंचायी थी।

‘‘ओह। तो तुम्हें भी अब सबक देने की ज़रूरत है।’’ उसने दाँत पीसकर कहा। उधर पूरी पब्लिक हैरत से दोनों की ओर देख रही थी। उन्होंने साफ साफ देखा था कि एक बन्दर ने उनके भगवान को चीख मारने पर मजबूर कर दिया है।

‘‘भगवान, आपका बन्दर तो बड़ा नटखट है।’’ एक भक्त ने प्यार से भगवान के बन्दर की ओर देखा।

‘‘हाँ। ये मुझे बहुत प्रिय है।’’ सम्राट ने ऊपरी तौर पर मुस्कुराहट सजाकर किन्तु भीतर ही भीतर पेचो ताब खाते हुए कहा।

‘‘अच्छा। अब यह सभा यहीं बर्खास्त की जाती है। मुझे अब ध्यान में लीन होना है।’’ सम्राट ने उठते हुए कहा।

‘‘किन्तु ईश्वर तो आप स्वयं हैं। फिर आप किसके ध्यान में लीन होंगे?’’ एक भक्त ने जो कुछ ज्यादा ही खुराफाती दिमाग का था सम्राट को टोक दिया।

‘‘मैं स्वयं के ध्यान में लीन होऊंगा। मैं ईश्वर हूं जिसकी सीमाएं अनन्त हैं। उस अनन्त के बोध हेतु ध्यान की ऊर्जा अति आवश्यक है ताकि मैं अनन्त सृजन कर सकूं।’’ सम्राट ने इस बार कठिन आध्यात्मिक भाषा का इस्तेमाल किया था जिसने भक्तों को भाव विह्वल कर दिया। उधर सम्राट ने बन्दर बने सनी को पकड़ा और हवा में तैरते हुए एक तरफ को निकल गया।

नीचे पब्लिक खड़ी हुई भगवान सुनील कुमार वर्मा की जय जयकार कर रही थी।

-------

अपने यान में सम्राट अपने साथियों के साथ मौजूद था। थोड़ी दूरी पर असली सनी भी दिखाई दे रहा था जिसका बन्दर का जिस्म हरे रंग की किरणों के घेरे में था।

‘‘हम काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब हो चुके हैं। बहुत जल्द पूरी दुनिया में हमारी पूजा शुरू हो जायेगी। हालांकि कुछ टेढ़े दिमाग वाले अभी भी हमारे रास्ते में टाँग अड़ाने की कोशिश कर रहे हें, लेकिन उनकी औकात कीड़े मकोड़ों से ज़्यादा नहीं।’’ सम्राट अपने साथियों से कह रहा था।

‘‘एक बार पूरी दुनिया के दिमागों पर हमारा कब्ज़ा हो जाये। फिर इस धरती पर हमारी हुकूमत होगी।’’ रोमियो ने खुश होकर कहा।

‘‘हां। यहाँ के लोग हमारे गुलाम होंगे। जो लोग अभी इस ज़मीन पर पहले दर्जे पर क़ाबिज़ है वह अब दूसरे दर्जे पर आ जायेंगे। हमेशा के लिये। लेकिन शायद उनके दिमाग में विद्रोह की भावना हमेशा रहेगी।’’ सम्राट ने कुछ सोचते हुए कहा।

‘‘ऐसा क्यों सम्राट?’’ सिलवासा ने चौंक कर पूछा।

‘‘क्योंकि इन लोगों ने हमेशा ही पृथ्वी पर शासन किया है। अब इस बन्दर को ही देख लो। उस लड़के का दिमाग इस बन्दर के जिस्म में आने के बाद भी अपनी हार कुबूल नहीं कर रहा है। कुछ देर पहले इसने मुझे परेशान कर दिया था।‘‘

‘‘तो फिर इसका पत्ता साफ कर देते हैं।’’ डोव ने क्रूरता के साथ कहा।

‘‘नहीं। हमें यहाँ मौजूद हर इंसान के दिमाग से अपने लिये विद्रोह की भावना निकालनी है। उनसे अपनी पूजा करानी है।’’

‘‘लेकिन कैसे?’’ सिलवासा ने पूछा।

‘‘उसके लिये हमें कुछ तजुर्बे करने होंगे। और इसके लिये यह बन्दर बना सनी काम आयेगा।’’

‘‘आप कैसा तजुर्बा करना चाहते हैं सम्राट?’’ सिलवासा ने पूछा।

‘‘मैं देखना चाहता हूं कि कोई इंसान कितनी बेबसी के हालात से गुज़रने के बाद हमारा गुलाम बन सकता है। अतः तुम लोग इसे ‘एम-स्पेस’ में भेज दो।’’ सम्राट की बात सुनकर वहां मौजूद सभी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी।

‘‘एम-स्पेस। वो तो मैथेमैटिकल समीकरणों का ऐसा चक्रव्यूह है जहां से निकलना लगभग नामुमकिन है। वहां पर तो ये नाचता रह जायेगा।’’ सिलवासा ने गहरी साँस लेकर कहा।

‘‘लेकिन मुझे एक डर है।’’ बहुत देर से खामोश मैडम वान ने अपनी ज़बान खोली।

‘‘शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा’’ सम्राट ने कहा।

मैडम वान ने सर हिलाया, ‘‘जी हाँ। क्योंकि एम स्पेस हमारा कण्ट्रोल रूम भी है। और उसी के द्वारा हमें अपने ग्रह से शक्तियां मिलती हैं।’’

‘‘यह नामुमकिन है कि पृथ्वी का कोई दिमाग एम-स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझ ले। और ये बच्चा तो बिल्कुल ही नहीं समझ सकेगा। क्योंकि मैं इसकी पूरी हिस्ट्री से वाकिफ हूं। गणित तो इसके लिये हमेशा एक हव्वे की तरह रही है। और बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता।’’

‘‘तो फिर ठीक है। हम इसे एम-स्पेस में डाल देते हैं।’’ कहते हुए मैडम वान ने डोव को इशारा किया और डोव जो कि यान के स्विच बोर्ड के पास था उसने एक स्विच दबा दिया। दूसरे ही पल यान में उस जगह का फर्श गोलाई में हट गया जहाँ पर बन्दर बना सनी मौजूद था। एक क्षण के अन्दर सनी का जिस्म उस रिक्त स्थान में गायब हो चुका था।

-------

जब सम्राट प्रिंसिपल के रूम में दाखिल हुआ तो वहाँ अग्रवाल सर पहले से मौजूद थे।

‘‘आओ सुनील कुमार!’’ प्रिंसिपल ने बड़े प्यार से सनी को बुलाया। सनी बना सम्राट आगे बढ़ा।

‘‘मुझे यह सुनकर खुषी हुई कि तुमने अग्रवाल सर को चैलेंज किया है कि तुम इन्हें गणित में हरा सकते हो।’’ प्रिंसिपल भाटिया ने अग्रवाल सर की ओर देखकर कहा। अग्रवाल सर सनी को व्यंगात्मक तरीके से देख रहे थे।

‘‘मैंने!’’ हैरत से सम्राट ने कहा। फिर तुरंत ही मामला उसकी समझ में आ गया। यानि गगन वगैरा ने अग्रवाल सर और प्रिंसिपल के कान भरे थे।

‘‘चलो अच्छा है। इससे मेरा ही मकसद हल होगा।’’ उसने सोचा।

‘‘जवाब दो सुनील कुमार।’’ प्रिंसिपल भाटिया ने उसे टोका।

‘‘मेरे दिल ने कहा था, इसलिए मैंने ऐसा चैलेंज किया।’’ सनी ने जवाब दिया।

अग्रवाल सर का चेहरा तपते लोहे की तरह लाल हो गया जबकि मैडम भाटिया अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचीं।

‘‘मैं इसका चैलेंज कुबूल करता हूँ।’’ अग्रवाल सर ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘लेकिन मेरी एक षर्त है।’’

‘‘कैसी षर्त?’’ प्रिंसिपल ने पूछा।

‘‘अगर ये सवाल नहीं हल कर पाया तो स्कूल के पीछे बह रहे गन्दे नाले में इसे डुबकी लगानी पड़ेगी।’’

‘‘यह तो बहुत सख्त सजा है अग्रवाल जी...!’’ प्रिंसिपल ने कहना चाहा किन्तु सनी बने सम्राट ने बीच में बात काट दी, ‘‘मुझे षर्त मंजूर है।’’

‘‘ठीक है। मैं क्वेष्चन पेपर सेट करता हूँ।’’ अग्रवाल सर उठ खड़े हुए।

-------

‘‘यह तुमने क्या किया सनी! माना कि तुम मैथ में तेज हो गये हो। लेकिन इतने भी नहीं कि अग्रवाल सर को चैलेंज कर दो। वो अपने जमाने के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं।’’ नेहा इस समय सनी से बात कर रही थी।

‘‘देखा जायेगा।’’ लापरवाही के साथ कहा सनी बने सम्राट ने।

‘‘सोचता हूँ, पीछे के नाले में एकाध बाल्टी सेन्ट डलवा दूं।’’ अचानक पीछे से एक आवाज उभरी। दोनों ने चौंक कर देखा गगन, अमित और सुहेल की तिकड़ी थोड़ी दूर पर मौजूद थी। यह जुमला अमित ने कहा था।

‘‘हाँ। वरना कोई बेचारा बदबू से मर जायेगा।’’ सुहेल ने जवाब दिया था।

‘‘चलो यहाँ से चलते हैं।’’ नेहा ने सनी का हाथ पकड़कर कहा। दोनों वहाँ से चलने को हुए। उसी समय गगन ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।

‘‘हाय नेहा!’’ उसने नेहा को मुखातिब किया।

‘‘हाय!’’ बोर अंदाज में जवाब दिया नेहा ने।

‘‘क्या बात है। आजकल तो लिफ्ट ही नहीं दे रही हो।’’ गगन ने षिकायत की।

‘‘लिफ्ट खराब हो गयी है। तुम सीढ़ियों का इस्तेमाल कर सकते हो।’’ गंभीर स्वर में नेहा ने जुमला उछाला। आसपास मौजूद दूसरे लड़कों ने मुस्कुराहट छुपाने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिए।

गगन कोई सख्त जुमला कहने जा रहा था। उसी समय मिसेज कपूर उधर से गुजरने लगीं। फिर इन लड़कों को भीड़ लगाये हुए देखा तो टोक भी दिया, ‘‘ऐ तुम लोगों ने यहाँ भीड़ क्यों लगा रखी है। जाओ अपनी क्लास में।’’

‘‘मैडम, आज आपके पास बहुत देर से फोन नहीं आया।’’ अमित ने टोक दिया। मिसेज कपूर इतिहास की षिक्षक थीं और मोबाइल पर बात करने के लिए बदनाम थीं। रांग नंबर भी लगता था तो फोन पर ही उसका पूरा इतिहास खंगाल डालती थीं।

‘‘क्या बताऊं।’’ मिसेज कपूर के चेहरे से उदासी झलकने लगी, ‘‘मेरे पास एक हथौड़ा है जिससे महान स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रषेखर आजाद ने अपनी बेड़ियां तोड़ी थीं। यह उस जमाने की बात है जब वह अंग्रेजों की जेल तोड़कर फरार हुए थे...।’’

‘‘मैडम मोबाइल की बात...।’’ सुहेल ने बीच में टोका।

‘‘वही बता रही हूँ नालायक।’’ मैडम कपूर ने उसे घूरा, ‘‘आज सुबह की बात है। मेरे भांजे ने वही हथौड़ा मेरी सेफ से निकाल लिया, और मेरे मोबाइल को उससे पीट डाला। तभी से उसकी आवाज गायब हो गयी है।’’ मैडम कपूर पर्स से मोबाइल निकालकर सबको दिखाने लगी।

‘‘मैं देखता हूँ।’’ सनी बने सम्राट ने मैडम कपूर के हाथ से मोबाइल ले लिया और उसे खोल डाला।

‘‘क्या करता है बे। क्या मैडम के फोन को कब्र में पहुंचा देगा।’’ सुहेल ने सनी को आँखें दिखाईं। मिसेज कपूर भी सकपका गयी थीं।

लेकिन इन सब से बेपरवाह सनी ने जेब से पेन निकाला और उसकी निब से मोबाइल के सर्किट से छेड़छाड़ करने लगा। चार पाँच सेकंड बाद उसने मोबाइल बन्द करके मिसेज कपूर की ओर बढ़ा दिया।

‘‘मोबाइल ठीक हो गया।’’

‘‘क्या!’’ मिसेज कपूर के साथ साथ वहाँ मौजूद सारे लड़के उछल पड़े।

मिसेज कपूर ने जल्दी जल्दी आने फोन को चेक किया।

‘‘ये तो चमत्कार हो गया। मेरा फोन बिल्कुल ठीक हो गया। जियो मेरे लाल।’’ मिसेज कपूर ने तड़ाक से सनी के गालों पर एक चुंबन जड़ दिया और सनी मुंह बनाकर अपना गाल सहलाने लगा।

‘‘कमाल है, हमें पता ही नहीं था कि ये लल्लू मैकेनिक भी है।’’ मिसेज कपूर के आगे बढ़ने के बाद अमित बोला।

इसके बाद वहां की भीड़ तितर बितर हो गयी, क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि प्रिंसिपल मैडम भाटिया राउंड पर निकल चुकी हैं।

-------

उधर असली सनी के सामने एक के बाद एक इस तरह मुसीबतें आकर गिर रही थीं जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते गिरा करते हैं। इतनी समस्याएं तो गणित के सवाल हल करने में नहीं झेलनी पड़ी थीं जितनी जीवन की उस पहेली को हल करने में दुष्वारियां आ रही थीं।

जिस छत पर भी वह पहुंचता था, वहीं से उसे खदेड़ दिया जाता था। पतंग की एक डोर उसकी नाक को भी घायल कर चुकी थी। दौड़ते भागते दोनों टाँगें बुरी तरह दुख रही थीं।

डार्विन ने कहा था इंसान के पूर्वज बंदर थे। लेकिन अगर ऐसा था तो इंसानों को बंदरों की इज्जत करनी चाहिए। लेकिन यहां इज्जत तो क्या मिलती उलटे मार पीट कर भगाया जा रहा था।

फिर एक छत पर पहुंच कर उसे ठिठक जाना पड़ा। उस छत की मुंडेर पर बैठी एक बंदरिया उसे प्रेमभरी नज़रों से देख रही थी।

बंदर बना सनी घबराकर साइड से कटने का रास्ता ढूंढने लगा। अब बंदरिया धीरे धीरे उसके करीब आ रही थी। और अपनी भाषा में कुछ कह भी रही थी। षायद किसी मुम्बईया फिल्म का रोमाण्टिक मीठा गीत गा रही थी।

लेकिन सनी के दिल से तो बेतहाषा मीठी मीठी गालियां ही निकल रही थीं।

बंदरिया ने उसपर छलांग लगाई और बंदर बना सनी परे हो गया। नतीजे में वह मुंह के बल गिरी धड़ाम से।

बंदरिया को षायद सनी से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसलिए वह थोड़ा गुस्से से और थोड़ा हैरत से सनी को देखने लगी। फिर उसने सोचा कि षायद यह षरारती बंदर उससे खेलना चाहता है। इसलिए इसबार उसने संभल संभल कर कदम बढ़ाना षुरू कर दिया।

इस बार भी सनी ने सरकना चाहा लेकिन बंदरिया ने झट से उसकी पूंछ पर पैर रख दिया। सनी ने उससे अपनी पूंछ छुड़ाने के लिए जो़र लगाना षुरू कर दिया। बंदरिया को भी षरारत सूझी और उसने झट से पूंछ पर से पैर उठा लिया। नतीजे में एक जोरदार झटके के साथ सनी सामने मौजूद खम्भे से टकरा गया और उसके सामने तारे नाच गये।

अब वह भी तैष में आ गया और उस नामाकूल बंदरिया को सबक सिखाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा।

बंदरिया ने झट से अपने मुंह पर हाथ रख लिया। पता नहीं डर की वजह से, या षरमा कर।

सनी ने उसे थप्पड़ जड़ने के लिए अपना हाथ उठाया, लेकिन बीच ही में किसी के द्वारा थाम लिया गया।

उसने घूम कर देखा, ये कौन हीरो बीच में टपक पड़ा था। देखकर उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह उससे भी तगड़ा बंदर था और इस तरह उसे घूर रहा था मानो अभी उसे कच्चा चबा जायेगा।

फिर उस बदमाष ने उसकी पिटायी षुरू कर दी। बगल में खड़ी बंदरिया उसकी इस दुर्दषा पर खी खी करके हंस रही थी।

-------

यह एक अनोखी परीक्षा थी, जिसमें परीक्षा देने वाला केवल एक था और परीक्षक भी केवल एक। लेकिन देखने वाले बेषुमार थे। सनी यानि की सम्राट एक कुर्सी पर बैठा हुआ अग्रवाल सर के आने का इंतिजार कर रहा था। उसके सामने नोटबुक खुली रखी थी। जिसमें उसे अग्रवाल सर के सवालों के जवाब लिखने थे।

उससे थोड़ी दूर पर बाकी छात्रों की भीड़ लगी हुई थी। उनके पास कुछ अध्यापकगण भी मौजूद थे।

अचानक सनी ने पेन उठाया और नोटबुक पर तेजी से कुछ लिखना षुरू कर दिया।

‘‘क्या लिख रहे हो सनी?’’ वहाँ मौजूद मिसेज कपूर ने टोका।

‘‘अग्रवाल सर के प्रष्नों के जवाब।’’ सनी ने जवाब दिया और वहाँ मौजूद सारे छात्र एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

‘‘लेकिन अग्रवाल सर तो अभी अपने सवाल लेकर आये ही नहीं।’’ हैरत से कहा फिज़िक्स के टीचर सक्सेना सर ने।

‘‘मैं जानता हूं वह कौन से प्रष्न लाने वाले हैं।’’ सनी ने अपना लिखना जारी रखा। सभी छात्र एक दूसरे से कानाफूसियां करने लगे थे। लग रहा था हाल में ढेर सारी मधुमक्खियां भिनभिना रही हैं।

‘‘तुम्हें किसने बताया उन प्रष्नों के बारे में ?’’ सक्सेना सर ने फिर पूछा।

‘‘किसी ने नहीं।’’ सनी का जवाब पहले की तरह संक्षिप्त था।

उसी समय वहाँ अग्रवाल सर ने प्रवेष किया। उनके हाथ में प्रष्न पत्र भी मौजूद था।

‘‘ये लो और लिखना षुरू करो।’’ अग्रवाल सर ने प्रष्नपत्र सनी की तरफ बढ़ाया।

जवाब में सनी ने नोटबुक अग्रवाल सर की तरफ बढ़ा दी।

‘‘ये क्या है?’’ अग्रवाल सर ने नोटबुक की तरफ नज़र की।

‘‘आपके प्रष्नों के जवाब।’’

‘‘क्या? लेकिन मैंने तो अभी प्रष्नपत्र दिया ही नहीं।’’ हैरत का झटका लगा अग्रवाल सर को।

‘‘मुझे मालूम था कि आप कौन कौन से प्रष्न पत्र देने वाले हैं। इसलिए वक्त न बरबाद करते हुए मैंने जवाब पहले ही लिख दिये।’’

अविष्वसनीय भाव से पहले अग्रवाल सर ने सनी का चेहरा देखा और फिर नोट बुक पढ़ने लगे। जैसे जैसे वह आगे पढ़ रहे थे उनकी आँखें फैलती जा रही थीं।

‘‘क्या बात है अग्रवाल साहब?’’ मिसेज कपूर ने पूछा।

‘‘यह कैसे हो सकता है!’’

‘‘क्या?’’ सक्सेना सर भी उधर मुखातिब हो गये।

‘‘इसने बिल्कुल सही जवाब लिखे हैं। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो इसकी किसी ने मदद की है या फिर..!’’

‘‘या फिर क्या अग्रवाल साहब?’’ सक्सेना सर ने पूछा।

‘‘या फिर इसके अंदर कोई दैवी षक्ति आ गयी है।’’

‘‘मुझे तो यही बात सही लगती है!’’ मिसेज कपूर आँखें फैलाकर बोली, ‘‘कल इसने मेरा मोबाइल चुटकियों में सही कर दिया था। इसमें जरूर कोई दैवी षक्ति घुस गयी है।’’

‘‘सनी तुम खुद बताओ, क्या है असलियत?’’ सक्सेना सर ने सनी की तरफ देखा।

सनी बना सम्राट कुछ नहीं बोला। बस मन्द मन्द मुस्कुराता रहा।

------

घण्टी की आवाज पर मिसेज वर्मा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने उनके पड़ोसी मलखान सिंह मौजूद थे। हाथ में मिठाई का डब्बा लिये हुए।

‘‘नमस्कार जी। लो जी मिठाई खाओ।’’ मलखान सिंह ने जल्दी से मिठाई का डब्बा मिसेज वर्मा की तरफ बढ़ाया।

मिसेज वर्मा ने इस तरह मलखान सिंह की तरफ देखा मानो उनकी दिमागी हालत पर षक कर रही हो। किसी को एक गिलास पानी भी न पिलाने वाले मक्खीचूस मलखान सिंह के हाथ में जो मिठाई का डब्बा था उसमें काफी मंहगी मिठाईयां थीं।

‘‘आपके यहां सब ठीक तो है?’’ मिसेज वर्मा ने हमदर्दी से पूछा।

‘‘अरे अपने तो वारे न्यारे हो गये। और सब तुम्हारे सुपुत्र की वजह से हुआ है।’’ मलखान जी खुषी से झूम रहे थे।

‘‘मैं कुछ समझी नहीं। ऐसा क्या कर दिया सनी ने।’’ चकराकर पूछा मिसेज वर्मा ने।

‘‘उसने परसों मुझे राय दी कि जॉली कंपनी के षेयर खरीद लो। फायदे में रहोगे। मैंने खरीद लिये। आज तीसरे दिन उसके षेयरों के भाव तीन गुना बढ़ चुके हैं। मैं तो मालामाल हो गया। कहाँ है वो, मैं उसको अपने हाथों से मिठाई खिलाऊँगा।’’

‘‘उसने जरूर आपको राय दी होगी। इधर कई दिनों से उसका दिमाग कुछ गड़बड़ चल रहा है। मैं तो उनसे भी कह चुकी हूं लेकिन वो कुछ सुनते ही नहीं।’’

‘‘बहन जी, आपके लड़के में ज़रूर कोई पुण्य आत्मा घुस गयी है।’’

‘‘मतलब उसके अंदर कोई भूत प्रेत घुस गया है। भगवान, तूने मुझे ये दिन भी दिखाना था।’’ फिर मिसेज वर्मा अपनी ही परेषानी में पड़ गयी और मलखान सिंह मौका देखकर वहां से खिसक लिए।

------

बंदर सनी इस समय एक पाइप के अंदर दुबका बैठा था। उसका पूरा जिस्म फोड़े की तरह दर्द कर रहा था। बंदरिया के उस पहलवान हमदर्द ने बुरी तरह उसकी पिटाई की थी और फिर दोनों बाहों में बाहें डाले वहां से कूद कर नज़दीक के पार्क में निकल गये थे। वह वहीं आंसू बहाता हुआ बैठा रह गया था। गणित से जी चुराने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी, यह तो उसने सोचा ही नहीं था।

जब उसे थोड़ा सुकून हुआ तो उसने पाइप के अंदर झांका। काफी लम्बा पाइप मालूम हो रहा था। उसे काफी दूर पर रोषनी दिखाई दी। ‘यानि वह पाइप का दूसरा सिरा है।’ उसने सोचा और धीरे धीरे दूसरी तरफ बढ़ने लगा।

जल्दी ही वह दूसरे सिरे पर पहुंच गया। यह सिरा एक गली में खुलता था। गली के उस पार एक और मकान दिखाई दे रहा था।

उसने छलांग लगाई और उस मकान की छत पर पहुंच गया।

‘‘यह मकान तो जाना पहचाना लगता है।’’ उसने चारों तरफ देखा, दूसरे ही पल उसके दिमाग को झटका सा लगा, ‘‘अरे ये तो मेरा ही घर है।’’

उसकी खुषी का ठिकाना न रहा। उसका मन चाहा दौड़कर नीचे जाये और अपने मम्मी पापा से लिपट जाये।

लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान आ गया कि वह इस समय सनी नहीं बल्कि एक बंदर है और इस हालत में दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं पहचान सकती। उसके माँ बाप भी नहीं। उसकी खुषियों पर ओस पड़ गयी और वह ठण्डी साँस लेकर वहीं कोने में बैठ गया।

------

यह अँधेरी सुरंग पता नहीं कितनी लंबी थी जिसमें सनी गिरता ही जा रहा था। उसे कुछ नहीं सुझाई दे रहा था। वह तो बस उस पल का इंतिज़ार कर रहा था जब वह किसी पक्के फर्श से टकरायेगा और उसके चिथड़े उड़ जायेंगे। उसने अपनी आँखें भी बन्द कर ली थीं। फिर उसे लगा कि उसके चारों तरफ रोशनी फैल गयी है। और उसी पल वह किसी नर्म स्थान पर गिरा था। क्योंकि उसे ज़रा भी चोट नहीं आयी थी।

उसने अपनी आँखें खोल कर देखा। यह तो किसी रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म मालूम हो रहा था। एक ऊँचा स्थान जिसकी साइड में रेलवे ट्रैक भी मौजूद था। जैसे ही उसने अपनी आँखें खोलीं, उस ट्रैक पर कहीं से एक ट्राली आकर रुक गयी। उस प्लेटफार्म पर उसके अलावा और कोई मुसाफिर नहीं था। अचानक वहाँ एक उद्घोषणा होने लगी। उसने सुना, उद्घोषणा उसी की भाषा में हो रही थी।

‘समस्त यात्रियों से अनुरोध है कि दस मिनट के अन्दर इस जगह से दो सौ किलोमीटर दूर चले जायें क्योंकि दस मिनट के बाद दो सौ किलोमीटर के दायरे में तेज़ाबी बारिश शुरू हो जायेगी। जिसमें हर व्यक्ति गल जायेगा।’ अनाउंसमेन्ट सुनते ही उसके होश उड़ गये। दस मिनट में दो सौ किलोमीटर कोई कैसे दूर जा सकता है? असंभव।

उसने देखा न तो प्लेटफार्म और न ही ट्राली के ऊपर कोई छत जैसी संरचना थी। जो उस बारिश से बचाने वाली होती। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया और वह दौड़कर ट्राली पर चढ़ गया। उसके चढ़ते ही ट्राली तेज़ गति से ट्रैक पर भागने लगी। उसने देखा सामने दो इंडिकेटर मौजूद हैं। पहला इंडिकेटर ट्राली की गति को बता रहा था, सौ किलोमीटर प्रति मिनट। जबकि दूसरा इंडिकेटर समय को बता रहा था। उसके फेफड़ों से इत्मिनान की एक गहरी साँस निकली। इस स्पीड से तो ट्राली दो मिनट में ही दो सौ किलोमीटर का रास्ता तय कर लेती। उसने खुश होकर कोई गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया। ये अलग बात है कि मुंह से केवल बंदर की खौं खौं ही निकल कर रह गयी। झल्लाकर उसने गाना बन्द कर दिया । और ट्राली के इंडिकेटर को देखने लगा। समय बताने वाले इंडिकेटर ने एक मिनट पूरा किया, और उसी समय ट्राली को एक झटका लगा। उसने चौंक कर देखा, अब ट्राली की स्पीड सौ से कम होकर पचास हो गयी थी।

‘कोई बात नहीं। दो मिनट न सही, तीन मिनट में तो ट्राली दो सौ किलोमीटर के दायरे से निकल ही जायेगी। तब भी सात मिनट रह जायेंगे।’ उसने अपने लड़खड़ाते दिल को संभाला। और आसमान की ओर देखा जहाँ अब अजीब से बादल छाने लगे थे। ये बादल पूरी तरह सुर्ख थे और शायद यही तेज़ाबी बारिश लाने वाले थे।

एक मिनट और बीता, और ट्राली को फिर एक झटका लगा। अब इंडिकेटर उसकी स्पीड पच्चीस किलोमीटर प्रति मिनट ही बता रहा था। अचानक एक विचार ने उसके दिल की धड़कनें फिर बढ़ा दीं। यानि हर मिनट ट्राली की स्पीड कम होकर आधी रही जा रही थी। इसका मतलब कि, वह मन ही मन कैलकुलेट करने लगा कि अगर इसी तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड आधी होती रही तो दो सौ मीटर दूर जाने में उसे कितना समय लगेगा। गणित में हमेशा फिसड्डी रहने वाला उसका दिमाग इस समय अपने को मुसीबत से घिरा देखकर बिजली की रफ्तार से चलने लगा था। जब उसने अपनी कैलकुलेशन का रिज़ल्ट देखा तो उसके होश उड़ गये। इस तरह तो अनंत समय तक चलने के बाद भी ट्राली कभी भी दो सौ मीटर के दायरे को पार नहीं कर सकती थी।

एक मिनट और बीत चुका था और अब ट्राली की स्पीड मात्र साढ़े बारह किलोमीटर प्रति मिनट ही रह गयी थी। उसने सोचा कि ट्राली से कूद जाये और दौड़ना शुरू कर दे। लेकिन उसकी कैलकुलेशन के अनुसार अभी भी 13 किलोमीटर का फासला बाकी था और ये फासला वह बचे हुए छः मिनट में हरगिज़ तय नहीं कर सकता था। वह ट्राली के फर्श पर बेचैनी से टहलने लगा।

आसमान में सुर्ख बादल लगातार गहरे होते जा रहे थे। और उसके दिल पर मायूसी भी उतनी ही गहरी होती जा रही थी। लेकिन फिर अचानक सम्राट की बात उसके ज़हन में गूंजी जिसने उसके दिल में रोशनी की किरण पैदा कर दी। उसने कहा था, ‘‘बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता।’’ और ट्राली की स्पीड का हर मिनट इस तरह कम होना भी यकीनन कोई गणितीय पहेली ही थी।

एक बार फिर उसने अपने दिमाग़ को दौड़ाना शुरू किया और आखिरकार उसे इस पहेली का हल मिल गया। यकीनन वह तेज़ाबी बारिश से बच सकता था। लेकिन उसे जो कुछ करना था वह आखिरी नौवें मिनट में ही करना था। जिस तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड कम हो रही थी उस आधार पर नौवें मिनट की समाप्ति पर ट्राली एक सौ निन्यानवे किलोमीटर और छः सौ मीटर की दूरी तय कर लेती। यानि अगर वह उस समय ट्राली से कूदकर आगे की तरफ भागना शुरू कर देता तो एक मिनट में ये बचे हुए चार सौ मीटर तय कर सकता था। अब वह इत्मिनान से बैठकर नौ मिनटों के खत्म होने का इंतिज़ार करने लगा।

वक्त गुज़र रहा था और ट्राली अब लगभग कछुए की रफ्तार से रेंगने लगी थी। सुर्ख बादलों ने पूरे वातावरण को ही सुर्ख कर दिया था। अजीब डरावना मंज़र था वह।

फिर नौवां मिनट भी खत्म हुआ और उसने फौरन ट्राली से छलांग लगा दी। अब वह जान छोड़कर आगे की तरफ भाग रहा था। इस समय उसका बन्दर का जिस्म काफी काम आ रहा था जिसमें बन्दरों की ही फुर्ती भरी हुई थी। बादलों में अब रह रहकर बिजलियां कड़क रही थीं।

दसवाँ मिनट खत्म होने में कुछ ही मिनट रह गये थे जब उसे आगे ज़मीन पर एक चमकदार पीली रेखा दिखाई दी। शायद ये दो सौ किलोमीटर की सीमा को दर्शा रही थी। उसकी एक लंबी छलांग ने उसे रेखा को पार करा दिया। उसी समय उसे अपने पीछे शोर सुनाई दिया। उसने घूमकर देखा, बारिश शुरू हो गयी थी। लेकिन वह बारिश रेखा के इस पर नहीं आ रही थी। लगता था मानो किसी ने वहाँ शीशे की दीवार खड़ी कर दी है। फिर उसने ये भी देखा कि चींटी की रफ्तार से रेंगती ट्राली धीरे धीरे उस पानी में पिघलती जा रही है। उसके बदन में सिहरन दौड़ गयी। अगर वह उस ट्राली पर होता तो उसका भी यही अंजाम होता। उसने एक इत्मिनान की गहरी साँस ली और आगे बढ़ने लगा।

आगे बढ़ते हुए उसे लग रहा था कि वह किसी जंगल के अन्दर घुस रहा है। क्योंकि पहले इक्का दुक्का मिलने वाले पेड़ धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। जल्दी ही वह एक घने जंगल में पहुंच गया। इस जंगल में साँप बिच्छू भी हो सकते थे, अतः वह एहतियात के साथ अपने कदम बढ़ाने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि उसका जिस्म तो बन्दर का है। उसने फौरन छलांग लगाकर एक पेड़ की डाल पकड़ ली और फिर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए वह आगे बढ़ने लगा। फिर उसे भूख का एहसास हुआ जो इस धमाचौकड़ी का नतीजा थी।

सनी ने एक डाल पर ठिठककर पेड़ों की तरफ देखा। उसे तलाश थी ऐसे फलों की जो उसकी भूख मिटा सकें। यह देखकर उसकी बांछें खिल गयीं कि पेड़ तो तरह तरह के फलों से लदे हुए थे। उसने फौरन फलों के नज़दीकी गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन उसी समय एक महीन आवाज़ उसके कानों में पड़ी, ‘मर जायेगा, मर जायेगा’ उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया और इधर उधर देखने लगा कि ये आवाज़ किधर से आयी।

उसने फिर गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया और वही आवाज़ फिर आने लगी। अब उसने ध्यान दिया कि आवाज़ उसी गुच्छे में से आ रही है। यानि कि ये फल ही इंसानों की तरह बोल रहे थे, और शायद ज़हरीले थे, तभी तोड़ने वाले को वार्निंग दे रहे थे।

सनी ने दूसरे पेड़ की ओर देखा। उसकी डालियां भी फलों से लदी हुई थीं। वह फल भी दूसरी तरह के थे। वह छलांग लगाकर उस पेड़ पर पहुंच गया और फल तोड़ने के लिये हाथ बढ़ाया।

‘मरा मरा मरा....’ इस फल से भी लगातार आवाज़ें लगीं और उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया। यानि कि इस फल का तोड़ना भी खतरनाक था।

‘ऐसा तो नहीं कि ये फल अपने को बचाने के लिये इस तरह की आवाज़ लगा रहे हैं।’ उसके दिमाग में विचार आया और उसने तय किया कि इस बार ये फल कुछ भी बोलें, वह उन्हें तोड़ लेगा। उसने फल की तरफ हाथ बढ़ाया और उसकी वार्निंग के बावजूद उसे तोड़ लिया। तोड़ते ही फल से आवाज़ आनी बन्द हो गयी। फिर उसने उसे खाने के लिये मुंह की तरफ बढ़ाया, लेकिन उसी समय किसी ने झपट्टा मारकर उसके हाथ से उस फल को लपक लिया। उसने भन्नाकर लुटेरे को देखा। वो भी एक बन्दर ही था, लेकिन असली।

फिर उस बन्दर ने जल्दी जल्दी उस फल को खाना शुरू कर दिया और साथ ही सनी को इस तरह देखता भी जा रहा था जैसे ठेंगा दिखा रहा हो। सनी ने तय किया कि उसे सबक सिखाये और इसके लिये उसने किसी मज़बूत डण्डे की तलाश में इधर उधर नज़रें दौड़ायीं। लेकिन उसी वक्त उसने देखा कि बन्दर अपना पेट पकड़कर तड़पने लगा था। फिर तड़पते तड़पते वह ज़मीन पर गिर गया और कुछ ही पलों में वह ठण्डा हो चुका था। सनी जल्दी से उसके पास पहुंचा और हिला डुलाकर देखने लगा। लेकिन उसे यह देखकर निराशा हुई कि बन्दर मर चुका था। इसका मतलब कि फलों की वार्निंग सही थी। वे वाक़ई ज़हरीले थे।

अगर वह उस फल को खा लेता तो? वह अपने अंजाम को सोचकर काँप गया। उसने तय कर लिया कि वह वहाँ की कोई चीज़ नहीं खायेगा। लेकिन कब तक? भूख उसकी आँतों में ऐंठन पैदा कर रही थी। अगर वह कुछ नहीं खाता तो भले ही कुछ समय तक जिंदा रह जाता लेकिन ज़्यादा समय तक तो नहीं।

अचानक उसके दिल में फिर उम्मीद की किरण जागी। जैसा कि सम्राट ने कहा था कि इस दुनिया में हर तरफ गणितीय पहेलियां बिखरी हुई हैं। और उन्हें हल करके सलामती की उम्मीद की जा सकती है। तो इन ज़हरीले फलों के बीच जीवन देने वाले फल भी मौजूद होने चाहिए जो शायद किसी गणितीय पहेली को हल करने पर मिल जायें।

यह विचार दिमाग में आते ही वह उठ खड़ा हुआ और पेड़ों पर लदे फलों पर गौर करने लगा। यहाँ पर जिंदगी और मौत का सवाल था। अतः उसका दिमाग अपनी पूरी क्षमता झोंक रहा था। इसके नतीजे में जल्दी ही वह एक नतीजे पर पहुंच गया। उसने देखा कि एक पेड़ पर फलों के जितने भी गुच्छे लगे हुए थे, उनमें फलों की संख्या निश्चित थी।

जिस पेड़ के नीचे वह खड़ा था उसमें हर गुच्छे में पाँच पाँच फल लगे हुए थे। जबकि उसके पड़ोसी पेड़ में सात सात फलों के गुच्छे थे। उसने आसपास के सारे पेड़ देख डाले। किसी में हर गुच्छे में पाँच फल थे, किसी में दो, किसी में तीन तो किसी में सात फल थे। कहीं कहीं ग्यारह फल भी दिखाई दिये। उसने इन गिनतियों को वहीं कच्ची ज़मीन पर एक डंडी की सहायता से लिख लिया और उनपर गौर करने लगा। जल्दी ही ये तथ्य उसके सामने ज़ाहिर हो गया कि ये सभी संख्याएं अभाज्य थीं। यानि किसी दूसरी संख्या से विभाजित नहीं होती थीं। तो अगर कोई गुच्छे के फल को तोड़ता तो वह एक अभाज्य संख्या को विभाजित करने की कोशिश करता जो की असंभव था। इसीलिए फलों का ज़हर उसका काम तमाम कर देता।

इस नतीजे पर पहुंचते ही वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। अब उसे ऐसे पेड़ की तलाश थी जिसके गुच्छे में विभाज्य संख्या में यानि चार, छः, आठ इत्यादि संख्या में फल लगे हों। थोड़ी दूर जाने पर आखिरकार उसे ऐसा पेड़ मिल गया। इस पेड़ के हर गुच्छे में छः फल लगे हुए थे। वह फुर्ती के साथ पेड़ पर चढ़ गया और एक गुच्छे की तरफ डरते डरते अपना हाथ बढ़ाया।

जब उसका हाथ गुच्छे के पास पहुंचा तो उसके फलों से आवाज़ आने लगी - ‘आओ...आओ।’

इसका मतलब उसका निष्कर्ष सही था। ये फल खाने के लायक़ थे। उसने उन फलों को तोड़ा और खाना शुरू कर दिया। काफी स्वादिष्ट और चमत्कारी फल थे। न केवल उसकी भूख मिटी थी बल्कि प्यास और थकान भी मिट गयी थी। सनी अपने को पूरी तरह तरोताज़ा महसूस कर रहा था।

‘अब आगे जाने की ज़रूरत ही क्या है। इसी जंगल में बाकी जिंदगी गुज़ार देता हूं। आखिर पुराने ज़माने में सन्यास लेने के बाद साधू सन्यासी यही तो करते थे।’ उसके ज़हन में आया और वह वहीं एक डाल पर पसर गया। लेकिन थोड़ी देर बाद फिर उसके विचारों ने पलटा खाया और वह उठकर बैठ गया।

‘नहीं नहीं। इस दुनिया का कोई भरोसा नहीं कब पलटा खा जाये।’ उसके अब तक के तजुर्बे ने उससे कहा और उसने फिर आगे बढ़ने के लिये कमर कस ली। उस घने जंगल में पेड़ों की डालों की सहारे ही वह आगे बढ़ने लगा। उसके बन्दर वाले जिस्म के लिये डालों पर कूदना ज़्यादा आसान था बजाय इसके कि वह ज़मीन पर पैदल चलता। जंगल में उस एक बन्दर के अलावा उसे कोई भी जानवर नहीं मिला था। शायद वह इसीलिए भेजा गया हो कि उसे ज़हरीले फल को खाने से बचा ले।

लगभग आधा घण्टा चलने के बाद अचानक जंगल खत्म हो गया।

लेकिन ये खात्मा सुनील कुमार के लिये किसी खुशी का संदेश नहीं था, बल्कि सामने मौजूद आसमान छूते पहाड़ों ने उसे नयी मुश्किल में डाल दिया था। अब तो आगे बढ़ने का रास्ता ही नहीं था।

पहाड़ भी अजीब से थे। बिल्कुल सीधे सपाट। ऐसा लगता था किसी ने पत्थर के बीसियों विशालकाय त्रिभुज बनाकर एक दूसरे से जोड़ दिये हों। उनका रंग भी अजीब था। कुछ संगमरमर जैसे सफेद थे और बाकी कोयले जैसे काले। काफी देर देखने के बाद भी सनी को उनके बीच कोई ऐसी दरार नज़र नहीं आयी जिसे रास्ता बनाकर वह उन पहाड़ों में घुस सकता था।

‘लगता है यहाँ भी कोई गणितीय पहेली छुपी हुई है।’ सनी ने मन में सोचा। और गौर से पहाड़ों को देखने लगा। उसे उनके रंग में ही कोई खास बात छुपी मालूम हो रही थी। लेकिन वह खास बात क्या है उस तक उसका दिमाग नहीं पहुंच पा रहा था। वह घूम घूमकर पहाड़ों की उन काली व सफेद त्रिभुजाकार रचनाओं को देख रहा था जिनके बीच से आगे जाने का कहीं कोई रास्ता नहीं था। तमाम काले व सफेद त्रिभुज कुछ इस तरह साइज़ व आकार में एक जैसे थे कि उन्हें अगर एक के ऊपर एक रख दिया जाता तो सब बराबर से फिट हो जाते। अचानक उसके ज़हन में एक झमाका हुआ और उसे अग्रवाल सर की एक बात याद आ गयी जो उन्होंने निगेटिव नंबरों के अध्याय की शुरूआत करते हुए बतायी थी।

‘‘अगर बराबर की निगेटिव व पाज़िटिव संख्या ली जाये तो उसका जोड़ हमेशा ज़ीरो होता है।’’ अगवाल सर का ये जुमला लगातार उसके दिमाग में उछलने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि पहाड़ों के ये त्रिभुज भी निगेटिव व पाज़िटिव ही मालूम हो रहे थे। और वह भी बराबर के साइज़ के। अगर उन्हें बराबर से एक दूसरे से मिला दिया जाये तो? लेकिन फिर उसे अपनी इस सोच पर हंसी गयी। भला इन विशालकाय पहाड़ों को कौन हिला सकता था। लेकिन फिर उसके दिमाग में एक और विचार आया। आजकल के ज़माने में मात्र कुछ स्विच दबाकर भारी भरकम मशीनों को कण्ट्रोल किया जाता है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इन पहाड़ों में रास्ते के लिये भी कोई स्विच दबाना पड़ता हो।

अब वह एक बार फिर पहाड़ के आसपास चक्कर लगाने लगा। उसे तलाश थी किसी स्विच की।

थोड़ी देर वह पहाड़ों के ही समान्तर एक दिशा में चलता रहा। इससे पहले वह दूसरी दिशा में काफी दूर तक जा चुका था। फिर एकाएक वह ठिठक गया। यह एक छोटा सा चबूतरा था।

लेकिन चबूतरे ने उसे आकर्षित नहीं किया था बल्कि उसके ऊपर मौजूद दो मूर्तियों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा था। उनमें से एक मूर्ति पूरी तरह सफेद संगमरमर की बनी थी और उसका खूबसूरत चेहरा किसी फरिश्ते का मालूम हो रहा था। उसके शरीर पर दो पंख भी लगे हुए थे। जबकि दूसरी मूर्ति जो काले पत्थर की बनी हुई थी वह किसी शैतान की मालूम हो रही थी। जिसके सर पर दो सींग मौजूद थे। दोनों मूर्तियां एक दूसरी को घूरती हुई मालूम हो रही थीं।

‘यहाँ भी पाज़िटिव और निगेटिव। हो न हो इन मूर्तियों का पहाड़ों से कोई न कोई सम्बन्ध ज़रूर है।’

उसने आगे बढ़कर फरिश्ते की मूर्ति को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। फिर उसने शैतान की मूर्ति को भी उठाने की कोशिश की। लेकिन वह भी मज़बूती के साथ चबूतरे पर जड़ी हुई थी। काफी देर तक वह उनके साथ तरह तरह की हरकतें करता रहा लेकिन न तो मूर्तियों में कोई परिवर्तन आया और न ही पहाड़ों में कोई हरकत हुई। वह थक कर चूर हो गया था अतः चबूतरे पर चढ़ गया और फरिश्ते की मूर्ति के सामने पहुंचकर अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मानो वह उससे प्रार्थना कर रहा था। ये अलग बात है कि इस समय उसके दिल में पूरी दुनिया के लिये निहायत बुरे शब्द गूंज रहे थे।

उसी समय उसे अपने पीछे गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनाई देने लगी। उसने घबराकर आँखें खोल दीं और पीछे मुड़कर देखा। उसे हैरत का झटका लगा क्योंकि शैतान की मूर्ति तेज़ गड़गड़ाहट के साथ खिसकती हुई उसी की ओर आ रही थी। वह घबराकर जल्दी से चबूतरे के नीचे कूद गया। शैतान की मूर्ति लगातार फरिश्ते की मूर्ति की ओर खिसकती जा रही थी। और कुछ ही देर बाद वह उससे जाकर मिल गयी। इसी के साथ वहां इस तरह का हल्की रोशनी के साथ धमाका हुआ मानो कोई शार्ट सर्किट हुआ हो। सनी ने देखा, दोनों मूर्तियां धुआं बनकर हवा में विलीन हो रही थीं। अभी वह उस धुएं को देख ही रहा था कि उसे अपने पीछे बहुत तेज़ बादलों जैसी गरज सुनाई पड़ने लगी। वह पीछे घूमा और वहाँ का नज़ारा देखकर उसका मुंह खुला रह गया।

विशालकाय त्रिभुजाकार पहाड़ तेज़ी के साथ एक दूसरे की ओर खिसक रहे थे। और काले त्रिभुज सफेद त्रिभुजों के पीछे छुप रहे थे। इस क्रिया में ही बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हो रही थी। सनी को अपने नीचे की ज़मीन भी हिलती हुई मालूम हो रही थी। लगता था जैसे भूकम्प आ गया है। उसने डर कर अपनी आखें बन्द कर लीं। उसे लग रहा था कि आज उसका अंतिम समय आ गया है। अभी ज़मीन फटेगी और वह उसमें समा जायेगा।

गरज की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी और बन्द आँखों से ही सनी महसूस कर रहा था कि अब वहाँ बिजलियां भी चमक रही हैं। और उस चमक में इतनी तेज़ रोशनी पैदा हो रही थी कि बन्द आँखों के बावजूद सनी को उसकी चुभन महसूस हो रही थी। लगता था उसके सामने सूरज चमक रहा है।

लगभग पन्द्रह मिनट की गरज व चमक के बाद अचानक वहाँ सन्नाटा छा गया। उसने डरते डरते आँखें खोलीं और एक बार फिर उसका मुंह खुला रह गया।

वह ऊंचे ऊंचे पहाड़ तो अपनी जगह से नदारद थे और उनकी जगह एक उतना ही विशालकाय महल नज़र आ रहा था। उस महल की दीवारों पर सफेद व काले रंग के पत्थर जड़े हुए थे। महल में सामने एक विशालकाय दरवाज़ा भी मौजूद था जो कि फिलहाल बन्द था।

‘अरे वाह। लगता है मैं अपनी मंज़िल पर पहुंच गया। ये महल यकीनन इस तिलिस्म को तोड़ने के बाद आराम करने के लिये बना है।’ ऐसा सोचते हुए सनी महल के दरवाज़े की ओर बढ़ा।

जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुंचा, दरवाज़े के दोनों पट अपने आप खुल गये। एक पल को सनी ठिठका लेकिन फिर अन्दर दाखिल हो गया। उसके अन्दर दाखिल होते ही दरवाज़ा अपने आप बन्द भी हो गया। लेकिन अब सनी के पास पछताने का भी मौका नहीं था।

क्योंकि महल अन्दर से एक विशालकाय हॉल के रूप में था। और उस हॉल के फर्श पर हर तरफ साँप बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे। वह चिहुंक कर जल्दी से उछला और छत से जड़े एक फानूस को पकड़ कर लटक गया। हॉल के फर्श पर मौजूद ज़हरीले कीड़ों ने उसकी बू महसूस कर ली थी और अब रेंगते हुए उसी फानूस की तरफ आ रहे थे। हालांकि फानूस काफी ऊंचाई पर था और जब तक वह उससे लटक रहा था, कोई खतरे की बात नहीं थी। लेकिन कब तक? एक वक्त आता जब उसके हाथ थक जाते और वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरता। और ये भी तय था कि गिरते ही साँप बिच्छुओं के खतरनाक ज़हर में उसकी बोटी बोटी गल जाती।

वक्त बीतता जा रहा था। लेकिन सनी के लिये ये वक्त बहुत ही सुस्त रफ्तार से गुज़र रहा था। एक एक सेकंड उसके लिये पहाड़ की तरह साबित हो रहा था। उसके हाथ अब अकड़ने लगे थे लेकिन फानूस से लटकने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह मायावी दुनिया अजीब थी। वह पूरे जंगल को पार करके आया था और उसमें उसे किसी खतरनाक जानवर की झलक तक नहीं दिखी थी। दूसरी तरह यह महल था जहाँ उसे उम्मीद थी कि खूबसूरत बेड्स पर नर्म गद्दे लगे मिलेंगे, वहाँ ऐसे खतरनाक कीड़े मकोड़े व साँप बिच्छू।

उसने बेबसी से फर्श की तरफ देखा जहाँ बहुत से साँप बिच्छू उसके ठीक नीचे मुंह फैलाकर खड़े हो गये थे और उसके टपकने का इंतिज़ार कर रहे थे। उसने जल्दी से फर्श पर से नज़रें हटा लीं और दीवार की ओर देखने लगा। लेकिन दीवार के नज़ारे ने उसकी हालत और खराब कर दी। उसपर इस डरावनी हक़ीकत का इज़हार हुआ कि वहाँ कुछ ऐसे कीड़े व साँप भी मौजूद थे जो दीवार पर चढ़ सकते थे। और वो आफतें दीवार पर चढ़कर लगभग छत तक पहुंचने वाली थीं और उसके बाद उस फानूस तक जिससे वह लटका हुआ था।

यानि बचने का कोई रास्ता नहीं था। हाँ मरने के उसके पास दो रास्ते थे। या तो वह फानूस को छोड़ देता। ऐसी दशा में नीचे की कीड़े मकोड़े फौरन ही उससे चिमटकर उसका काम तमाम कर डालते, या फिर वह उन कीड़ों का इंतिज़ार करता जो छत से रेंगकर उसके पास आने वाले थे।

‘क्या यहाँ भी बचने का कोई गणितीय फार्मूला मौजूद है?’ उसके दिमाग़ में ये विचार पैदा हुआ। और इस विचार के साथ ही उसके दिल में उम्मीद की किरण फिर पैदा हो गयी। वह हाल में चारों तरफ नज़रें दौड़ाने लगा और गौर से एक एक चीज़ को देखने लगा। फिर उसकी नज़र छत से लटकते एक छल्ले पर जम गयी।

वैसे तो हाल की छत से बहुत से फानूस लटक रहे थे। और उनका लटकना कोई हैरत की बात नहीं थी। लेकिन उन फानूसों के बीच में एक छल्ले का लटकना ज़रूर अजीब था। फिर उसने फर्श पर रेंगते कीड़ों और साँप बिच्छुओं को भी जब गौर से देखा तो उसे उनमें एक खास बात नज़र आयी।

वह सभी कीड़े मकोड़े साँप व बिच्छू रेंगते हुए किसी न किसी गणितीय अंक के आकार को बना रहे थे। मसलन एक साँप इस तरह टेढ़ा होकर रेंग रहा था कि उससे 5 का अंक बन रहा था। कुछ बिच्छू इस तरह सिमटे थे कि उनसे 3 का अंक बना दिखाई दे रहा था। एक कीड़ा 8 के अंक के आकार में था तो दूसरा 9 के अंक के आकार में। जब ये कीड़े एक दूसरे के समान्तर रेंगते थे तो उनसे बनी संख्याएं भी साफ दिख जाती थीं। फर्श पर कहीं 1512 संख्या रेंगती हुई दिख रही थी तो कहीं 5234। कहीं कहीं तो पन्द्रह बीस अंकों की बड़ी संख्याएं भी दिख रही थीं।

‘‘कमबख्तों ये जो तुम लोग इतनी बड़ी बड़ी संख्याएं बना रहे हो। अगर मुझे कहीं से ज़ीरो मिल जाये तो तुम सब को उससे गुणा करके ज़ीरो कर दूं।’’ सुनील कुमार ने दाँत पीसकर कहने की कोशिश की और इसी के साथ उसकी आँखों ने हॉल में मौजूद ज़ीरो को पहचान भी लिया। छत में फानूसों के साथ लटकता वह स्पेशल छल्ला ठीक किसी ज़ीरो की तरह ही दिख रहा था।

जिस फानूस से वह लटक रहा था उससे चार फानूस आगे जाकर वह छल्ला मौजूद था। लेकिन वहाँ तक पहुंचना भी अत्यन्त मुश्किल था। फर्श पर तो वह चल ही नहीं सकता था वरना ज़हरीले साँप बिच्छू फौरन ही उससे चिमट जाते। केवल एक ही रास्ता उसके सामने था। कि वह अपने फानूस से छलांग लगातार दूसरे फानूस तक पहुंचता और फिर तीसरे तक। इस तरह वह उस ज़ीरो नुमा छल्ले तक पहुंच सकता था। ये काम बहुत ही मुश्किल था लेकिन और कोई चारा भी नहीं था।

‘मरना तो हर हाल में है। फिर कोशिश करके क्यों न मरा जाये।’ उसने सोचा और आगे वाले फानूस की तरफ छलांग लगा दी। उसकी ये छलांग कामयाब रही। वह आगे के फानूस पर पहुंच चुका था। पहली बार उसे अपने बन्दर के जिस्म पर गर्व महसूस हुआ। अगर उसके पास मानव शरीर होता तो इस छलांग में फानूस टूट भी सकता था और ये भी ज़रूरी नहीं था कि वह दूसरे फानूस तक पहुंच ही जाता।

इस कामयाबी ने उसका उत्साह दोगुना कर दिया और उसने फौरन ही दूसरी छलांग लगा दी। हालांकि इसमें वह थोड़ी जल्दी कर गया था और तीसरा फानूस उसके हाथ से छूटते छूटते बचा था। उसके दिल की धड़कनें एक बार फिर बढ़ गयीं।

अभी भी वह ज़ीरो नुमा छल्ला उससे दो फानूस आगे था। इसबार उसने संभल कर छलांग लगायी और एक फानूस और कामयाबी के साथ पार कर लिया। फिर अगला फानूस पार करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई। अब उसकी आँखें सिर्फ उस चमकदार छल्ले को देख रही थीं।

‘बस एक छलांग और फिर ये ज़ीरो मेरे हाथों में होगा।’ उसने एक पल में सोचा और दूसरे पल में छल्ले की ओर छलांग लगा दी। लेकिन जैसे ही उसके हाथों ने छल्ले को पकड़ा। छत से लटकते छल्ले की ज़ंज़ीर टूट गयी और वह छल्ले को लिये दिये फर्श पर आ गया।

जैसे ही वह फर्श पर आया पचासों साँप बिच्छू और कीड़े एक साथ उसकी तरफ बढ़े, उनसे बचाव के लिये अनायास ही उसके दोनों हाथ सामने आ गये। उनमें से एक हाथ में छल्ला भी था। फिर उसने एक चमत्कार देखा।

जैसे ही छल्ला उन खतरनाक प्राणियों के पास पहुंचा, रोशनी का हल्का सा झमाका हुआ और वहाँ से साँप बिच्छू व दूसरे कीड़े मकोड़े इस तरह गायब हो गये मानो हवा उन्हें निगल गयी। ये देखते ही सनी जोश में भर गया और छल्ले को चारों तरफ घुमाने लगा। हाल के ज़हरीले कीड़े छल्ले के सम्पर्क में तेज़ी से आने लगे और उसी तेज़ी के साथ हवा में विलीन होने लगे। अब सनी पूरे हॉल में दौड़ दौड़कर उन ज़हरीले प्राणियों को खत्म कर रहा था।

थोड़ी ही देर में पूरा हॉल उन ज़हरीले प्राणियों से साफ हो चुका था। सुनील कुमार ने चैन की गहरी साँस अपने फेफड़ों के अन्दर खींची और वहीं फर्श पर बैठ गया। लेकिन उसका ये चैन ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रह सका। क्योंकि उसकी आँखों ने हॉल की दीवारों की उस खतरनाक हरकत को देख लिया था। हॉल की चारों तरफ की दीवारे आहिस्ता आहिस्ता अन्दर की तरफ सिमट रही थीं। उनकी ये क्रिया शायद उसी समय शुरू हो गयी थी जब वह छल्ला छत से अलग हुआ था।

हालांकि दीवारों के खिसकने की रफ्तार बहुत ही धीमी थी लेकिन फिर भी वह वक्त आ ही जाता जब वह दीवारें आपस में मिल जातीं। और फिर उनके बीच सुनील कुमार का जो हाल होता उसे कोई भी समझ सकता था।

उसने किसी दरवाज़े की तलाश में नज़रें दौड़ायीं। लेकिन अब हॉल में कहीं कोई दरवाज़ा नज़र नहीं आ रहा था। यहाँ तक कि वह जिस दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ था, वह भी गायब था। चारों तरफ सिर्फ सपाट दीवारें थीं जिनमें कहीं कोई खिड़की दरवाज़ा नहीं था। उसका मन हुआ कि घुटनों में सर देकर बैठ जाये और ज़ोर ज़ोर से फूट फूटकर रोने लगे।

लेकिन फिर यह सोचकर उसकी हिम्मत बंधी कि जिस तरह पिछली बहुत सी मुसीबतों से बचने का तरीका उसे सूझ गया था उसी तरह इस नयी मुसीबत से बचने का भी कोई न कोई तरीका निश्चित ही होना चाहिए था। और उस तरीके को ढूंढकर वह इस मुसीबत को भी दूर कर सकता था। एक बार फिर उसने गौर से चारों तरफ देखना शुरू किया।

लेकिन इस बार देर तक देखने के बावजूद उसे कोई ऐसा क्लू नहीं मिला जिसके सहारे वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने की तरकीब तक पहुंच सकता था। चारों दीवारें सपाट थीं जिनपर कहीं कोई निशान नहीं था और न ही फर्श पर ही कोई निशान मौजूद था। छत पर फानूस पहले की तरह मौजूद थे। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया। अगर दीवारें पास आयेंगी तो छत पर लटके फानूसों का क्या होगा?

उसने दीवार के सबसे पास वाले फानूस पर नज़रें गड़ायीं। जो कि धीरे धीरे खिसकती दीवार के पास हो रहा था। जैसे ही दीवार उस फानूस के पास पहुंची, फानूस इस तरह हवा में विलीन हो गया जैसे वहाँ था ही नहीं। सुनील कुमार ने एक गहरी साँस ली। लटकते फानूस भी कोई क्लू देने से लाचार ही सिद्व हुए थे।

लेकिन नहीं। क्लू तो मौजूद था। सभी फानूस छत में इस तरह लगे हुए थे कि उनसे एक के भीतर एक कई वर्ग बन रहे थे। उसने दीवारों की तरफ देखा। हर दीवार आयताकार थी जबकि फर्श व छत वर्गाकार। उसने जब आगे गौर किया तो एक बात और समझ में आयी। चारों दीवारों के क्षेत्रफल को अगर जोड़ दिया जाता तो यह जोड़ फिलहाल फर्श के क्षेत्रफल से ज़्यादा ही निकल कर आता। लेकिन जिस तरह दीवारें सिमट रही थीं बहुत जल्द ये क्षेत्रफल फर्श के बराबर हो जाना था।

फिर उसने मन ही मन गणना करनी शुरू की। और जल्द ही उसे वह स्पाट मिल गया जहाँ पर अगर दीवार पहुंच जाती तो दीवारों का कुल क्षेत्रफल फर्श के क्षेत्रफल के बराबर हो जाता। उसने सर उठाकर छत की तरफ देखा तो वहाँ के फानूस उसे बाकी फानूसों से रंग व रूप में अलग नज़र आये। जहाँ सारे फानूसों में सुर्खी लिये हुए गहरा पीलापन झलक रहा था वहीं इन फानूसों में हरापन था। इसका मतलब कि इन फानूसों में ही दीवार रोकने का और इस मुसीबत से बाहर निकलने का राज़ था। लेकिन वह राज़ क्या था?

इस बारे में सनी को कोई आईडिया नहीं था। फिर उसकी नज़र अपने हाथ पर गयी जिसमें ज़हरीले साँपों व कीड़े मकोड़ों को मारने वाला गोल ज़ीरोनुमा हथियार अब भी मौजूद था। उसने एक दाँव फिर खेलने का निश्चय किया और उस ज़ीरोनुमा हथियार को हरे फानूस की तरफ उछाल दिया। जैसे ही उसका हथियार फानूस से टकराया वह फानूस हलकी चमक के साथ ग़ायब हो गया। इसका मतलब उसका ज़ीरोनुमा हथियार किसी भी चीज़ का अस्तित्व मिटा सकता था।

उसने यह क्रिया सारे हरे फानूसों के साथ की और थोड़ी ही देर में वह सब फानूस ग़ायब हो चुके थे, और उनकी जगह पर सपाट वर्ग बन चुका था। अब उसने दीवार की तरफ नज़र की। लेकिन यह देखकर उसका दिल डूबने लगा कि दीवारें अभी भी उसकी तरफ खिसक रही थीं।

‘हो सकता है यह ज़ीरो दीवारों का अस्तित्व भी मिटा दे।’ ऐसा सोचकर वह एक दीवार के पास पहुंचा और ज़ीरो को उससे टच करा दिया। लेकिन दीवार पर कोई भी असर नहीं हुआ। गहरी निराशा से उसका दिल भर गया। यानि अब उसका अंतिम समय आ चुका था। वह जाकर चुपचाप हॉल के बीचोंबीच लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। हो सकता है सोते में मौत का एहसास ही न हो। लेकिन जब दिमाग में अफरातफरी मची हो तो कैसी नींद - कहाँ की नींद?

दीवारें पास आ रही थीं और उनके सम्पर्क में आने वाले फानूस गायब हो रहे थे। अब दीवारें उस जगह के काफी पास पहुंच गयी थीं जहाँ पहले हरे फानूस मौजूद थे। लगभग पाँच मिनट बाद दीवारें उस जगह पहुंच गयीं। फिर सनी यह देखकर उछल गया कि उस जगह पहुंचते ही दीवारें भी फानूस ही की तरह हवा में विलीन हो गयीं।

सनी ने देखा बिना दीवारों के सपोर्ट के छत नीचे गिर रही थी। हालांकि उसके गिरने की रफ्तार धीमी थी। उसने छलांग लगायी और छत की सीमा से बाहर आ गया। छत फर्श से टकरायी और फिर ज़मीन में सुराख बनाती हुई नीचे जाने लगी। उसने आगे झांक कर देखा, फर्श अब बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा था और ज़मीन में एक गहरी अँधेरी सुरंग बनती जा रही थी। वह पीछे हट गया और चारों तरफ देखने लगा। घना जंगल हर तरफ फैला हुआ था।

धीरे धीरे रात के अँधेरा उस जंगल को अपनी आगोश में ले रहा था और सनी महसूस कर रहा था कि नयी मुसीबत उसके सामने आने वाली है। क्योंकि हो सकता था अभी तक न दिखने वाले जंगली जानवर अँधेरे में अपने अपने ठिकानों से निकल आये। ऐसे वक्त में उनसे बचना मुश्किल होता। एक हल्की सी आवाज़ वहाँ गूंज रही थी जो शायद फर्श के नीचे जाने की आवाज़ थी। फिर अचानक वह आवाज़ बन्द हो गयी। सुनील कुमार एक बार फिर ज़मीन में बने उस वर्गाकार सूराख में झाँकने लगा। बहुत नीचे जाकर फर्श रुक गया था।

सनी फिर पलट आया। लेकिन फिर उसकी आँखों में चौंकने के लक्षण पैदा हुए। अगर फर्श बहुत नीचे था तो अँधेरे में उसे दिखाई कैसे दिया? उसने दोबारा वहाँ झाँका तो मालूम हुआ कि नीचे हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। जो फर्श की साइड से निकल रही थी। और उस साइड में शायद कोई दरवाज़ा मौजूद था, जिसके भीतर से वह रोशनी आ रही थी। उसने और गौर किया तो ये भी समझ में आ गया कि वह उस दरवाज़े तक पहुंच सकता था।

हालांकि गहराई काफी थी, लेकिन नीचे उतरने के लिये उस चौकोर कुएं नुमा सुरंग की दीवारों में छोटे छोटे सूराख बने हुए थे जो कि नीचे तक गये थे। उन सूराखों में हाथ व पैर फंसाकर वह आसानी से नीचे उतर सकता था। लेकिन इस उतरने में रिस्क भी था। वह महल के अन्दर बिना सोचे समझे दाखिल होने का अंजाम देख चुका था। ऐसा न हो कि नीचे मौजूद दरवाज़े के अन्दर कोई नयी मुसीबत उसका इंतिज़ार कर रही हो।

वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और अगले कदम के बारे में ग़ौर करने लगा। उसके सामने दो रास्ते थे। या तो वापस जंगल की तरफ चला जाता या फिर उस कुएं में उतर जाता। लेकिन शायद जंगल में प्रवेश करने पर वह वहीं जिंदगी भर भटकता रहा जाता, जबकि उस कुएं का दरवाज़ा इस मायावी दुनिया में आगे बढ़ने का शायद कोई नया रास्ता था। और इस तरह नये रास्ते की दरियाफ्त करते करते शायद वह एक दिन इस तिलिस्मी दुनिया से बाहर आने में कामयाब हो जाता।

उसे सम्राट का मैडम वान से कहा जुमला याद आ गया, ‘‘शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा।’’ यानि अगर वह इस मायावी दुनिया यानि एम-स्पेस को पार करने में कामयाब हो जाता तो न सिर्फ खुद आज़ाद होता बल्कि सम्राट व उसके साथियों को भी सबक़ सिखा सकता था। अब तक की कामयाबियों ने उसके आत्मविश्वास में काफी बढ़ोत्तरी कर दी थी। उसने नीचे उतरने का निश्चय किया।

हाथ में पकड़े ज़ीरो को उसने दाँतों में दबाया और दीवार में बने सूराखों के सहारे वह नीचे उतरने लगा। यह चमकदार ज़ीरो काफी काम का है इतना तो वह देख ही चुका था। जल्दी ही वह नीचे पहुंच गया। जिस जगह से वह रोशनी फूट रही थी वह वास्तव में एक दरवाज़ा ही था। एक सुनहरे रंग का चमकता हुआ दरवाज़ा। रोशनी उसी चमक की थी।

उसने आगे बढ़कर दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा आसानी से खुल गया । एक पल को वह अन्दर जाने से ठिठका। क्योंकि इससे पहले वह दरवाज़ें से अन्दर दाखिल होने का अंजाम भुगत चुका था। लेकिन फिर सारी आशंकाओं को किनारे फेंककर वह अन्दर दाखिल हो गया। अन्दर उसे एक बार फिर हैरतज़दा करने वाला नया मंज़र नज़र आया।

यह एक गोल कमरा था। जिसकी दीवारों पर हर तरफ बड़े बड़े टीवी स्क्रीन लगे हुए थे। और हर स्क्रीन पर पृथ्वी के किसी न किसी हिस्से का सीन नज़र आ रहा था। कहीं बर्फ से ढंके हिमालय के पहाड़ दिख रहे थे, कहीं ब्राज़ील के घने जंगल, कहीं टोकियो शहर की भरी पूरी सड़क का ट्रैफिक तो कहीं भारत के किसी भरे बाज़ार का सीन दिखाई दे रहा था। लेकिन उन सब से भी ज़्यादा आश्चर्यजनक कमरे के बीचों बीच रखी छोटी सी गोल मेज़ थी जिसपर किसी बहुत बूढ़े व्यक्ति की कटी हुई गर्दन रखी थी। उसके लंबे सफेद बाल मेज़ पर फैले हुए थे। गर्दन हालांकि दिखने में ताज़ी थी लेकिन इसके बावजूद उसके आसपास कहीं खून गिरा नहीं दिखाई दे रहा था।

‘ऐसा लगता है कि यहाँ से पूरी पृथ्वी को देखा जा सकता है और उसकी घटनाओं को कण्ट्रोल किया जा सकता है। तो क्या मैं कथित एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम में पहुंच गया हूं?’ उसके दिमाग में यह विचार आया। लेकिन उसी वक्त एक आवाज़ ने उसके विचारों को भंग कर दिया।

‘तुम गलत सोच रहे हो।’ उसने देखा यह आवाज़ उस कटे सर से आ रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे। ऐसे .दृश्य को देखकर सनी की उम्र का कोई भी लड़का भूत भूत चिल्लाते हुए भाग निकलता। लेकिन इस दुनिया के पल पल बदलते रंगों में सनी पहले ही इतना हैरतज़दा हो चुका था कि अब कोई नयी घटना उसके ऊपर अपना प्रभाव नहीं डालती थी। वह उस कटे सर के पास पहुंचा।

‘‘मैं क्या गलत सोच रहा हूं?’’ उसने उस सर से पूछा। इतना तो उसे एहसास हो ही गया था कि यह सर मायावी एम-स्पेस की कोई नयी माया है।

‘‘जिस जगह तुम खड़े हो वह एम-स्पेस का कण्ट्रोल रूम नहीं है। लेकिन कण्ट्रोल रूम तक जाने का रास्ता ज़रूर है।’’ उस सर ने कहा।

‘‘वह रास्ता किधर है?’’

‘‘मैं मजबूर हूं नहीं बता सकता। वरना मेरी मौत हो जायेगी। वह रास्ता तुम्हें खुद ढूंढना होगा।’’

‘‘लेकिन तुम्हारे कटे सर से तो यही मालूम हो रहा है कि तुम मर चुके हो। फिर अब कैसा मरना?’’

‘‘एम-स्पेस की एक तकनीक ने मेरे सर को धड़ से जुदा कर दिया है। लेकिन मैं जिंदा हूं।’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं कण्ट्रोल रूम पहुंच गया?’’ सनी ने फिर पूछा। उसके मुंह से हालांकि बन्दर की ही खौं खौं की भाषा निकल रही थी लेकिन वह कटा सर उस भाषा को बखूबी समझ रहा था। सनी की बात के जवाब में वह सर बोला, ‘‘जिस जगह तुम मेरा कटा हुआ धड़ देखोगे वही जगह होगी कण्ट्रोल रूम।’’

‘‘लेकिन तुम हो कौन?’’

‘‘मैं कौन हूं, इसका पता तुम्हें उसी वक्त चलेगा जब तुम कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो जाओगे। और अब होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज़्यादा मुश्किल है।’’

सनी ने सर हिलाया और चारों तरफ देखने लगा। अब इससे ज़्यादा मुश्किल और क्या होगी कि वह तेज़ाबी बारिश और साँप बिच्छुओं का सामना करके आ चुका था। वैसे उस सर ने काफी हद तक उसका मार्गदर्शन कर दिया था। यानि एम स्पेस के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये कण्ट्रोल रूम तक पहुंचना ज़रूरी था। उसे तलाश थी अब कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने के रास्ते की। जिसके बाद न सिर्फ उसकी जान बच जाती बल्कि वह सम्राट की साज़िशों को भी बेनक़ाब कर देता जो कि ईश्वर बनकर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहा था। उसके मकसदों पर पानी फेरने के लिये इस दुनिया के तिलिस्म को तोड़ना ज़रूरी था।

वह आगे के रास्ते की तलाश में पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगा। फिलहाल कहीं कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। दीवारों पर तो टीवी स्क्रीन लगे हुए थे जबकि फर्श व छत बिल्कुल सपाट थी। एक गोल मेज़, जिसपर कटा सर रखा हुआ था, उसके अलावा कमरे में कोई सामान भी नहीं था।

‘लेकिन रास्ता यकीनन है यहाँ पर।’ सनी ने अपने मन में कहा। और उस गुप्त रास्ते का सम्बन्ध या तो मेज़ से है या फिर टीवी स्क्रीनों से। इन दोनों के अलावा और कोई वस्तु तो यहाँ पर है नहीं।’

उसने मेज़ से शुरूआत करने का इरादा किया। पहले उसने मेज़ को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह फर्श से जड़ी हुई थी, अतः टस से मस नहीं हुई। मेज़ को किसी भी तरह हिलाने डुलाने की उसकी कोशिश नाकाम रही। उसने हाथ में पकड़े करिश्मायी ज़ीरो से भी मेज़ को टच किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर उसने फर्श को भी जगह जगह अपने ज़ीरो से टच करके देखा लेकिन कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने टीवी स्क्रीनों के आसपास कोई स्विच ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसकी ये कोशिश भी कामयाब न हो सकी।

थक हार कर वह वहीं फर्श पर बैठ गया। और स्क्रीन पर पल पल बदलते दृश्यों को देखने लगा। कुछ देर उन दृश्यों को देखने के बाद उसपर एक नया रहस्योद्घाटन हुआ। टीवी स्क्रीन थोड़ी देर विभिन्न दृश्य दिखाने के बाद एक सेकंड के लिये बन्द हो जाती थी।

वहाँ पर कुल पाँच टीवी स्क्रीनें उस गोलाकार दीवार पर एक के बाद एक मौजूद थीं और सभी में यह बात दिखाई दे रही थी। हालांकि उनके बन्द होने का वक्त अलग अलग था।

‘लगता है इनके बन्द होने के वक्त में ही कोई गणितीय पहेली मौजूद है।’ ऐसा सोचकर उसने एक स्क्रीन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जब उसने मन ही मन हिसाब लगाया तो उसे अंदाज़ा हुआ कि हर पाँच सेकंड के बाद ये स्क्रीन बन्द हो जाती थी। फिर उसने दूसरी स्क्रीन को देखा तो मालूम हुआ कि छः सेंकड बाद वह स्क्रीन बन्द होती थी। तीसरी स्क्रीन दस सेंकड बाद बन्द हो रही थी जबकि चौथी बारह सेकंड बाद। सबसे ज़्यादा देर पाँचवीं स्क्रीन में लग रही थी। वह पद्रह सेंकड बाद बन्द हो रही थी।

क्या इन गिनतियों में कोई सम्बन्ध है? थोड़ी देर विचार करने के बाद उसे इसका जवाब न में मिला। इन गिनतियों में न तो कोई खास क्रम था और न ही कोई सम्बन्ध। फिर उसने एक बात और सोची।

‘वह कौन सी सबसे छोटी संख्या है जिसे ये सभी संख्याएं विभाजित कर देती हैं? इसे निकालना आसान था क्योंकि अग्रवाल सर ने क्लास में एल.सी.एम. निकालना काफी अच्छी तरह समझाया था। थोड़ी देर की गणना के बाद उसे मालूम हो गया कि यह संख्या साठ है।

मतलब ये कि साठ सेंकड अर्थात हर एक मिनट के बाद सभी टीवी स्क्रीनें एक साथ बन्द हो जाती थीं। उसने एक बार फिर टीवी स्क्रीनों पर दृष्टि केन्द्रित कर दी। उसे ये देखना था कि जब सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द होती हैं तो उसके बाद उनपर कौन से दृश्य सबसे पहले आते हैं।

उसे ज़्यादा इंतिज़ार नहीं करना पड़ा। जल्दी ही सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द हुईं और एक सेंकंड बाद फिर चालू हो गयीं। और उनके चालू होने के बाद जो पहला दृश्य आया वह सनी के लिये आशाजनक साबित हुआ।

क्योंकि वह दृश्य उसी कमरे के एक भाग का था। सभी स्क्रीनें एक ही दृश्य दिखा रही थीं और वह दृश्य कमरे में मौजूद मेज़ के एक पाये का था। यह पाया मेज़ पर रखे सर के पीछे की ओर दायीं तरफ था। सभी स्क्रीनें उस पाये के निचले हिस्से को दिखा रही थीं।

लगभग एक सेकंड तक वह पाया दिखाई दिया फिर सभी स्क्रीनों के दृश्य बदल गये। सनी के लिये इतना इशारा काफी था। वह उस पाये के पास आया और उसका व उसके आसपास का गौर से निरीक्षण करने लगा। जल्दी ही उसे पाये से टच करता हुआ वह पत्थर नज़र आ गया जिसका रंग दूसरे पत्थरों से हल्का सा अलग था। जहाँ दूसरे पत्थर गुलाबी रंग के थे वहीं इस पत्थर के गुलाबीपन में बैंगनी रंग की भी झलक मिल रही थी। हालांकि यह झलक इतनी नहीं थी कि कोई आसानी से उसे नोटिस कर सकता।

उसने पाये को उस पत्थर से हटाने की कोशिश की, लेकिन पाया पूरी तरह जाम था। उसने पत्थर को भी ठोंक बजाकर देखा लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर उसे अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो नुमा यन्त्र का ख्याल आया जिसने इससे पहले भी उसकी कई बार मदद की थी। उसने उस यन्त्र को पत्थर से लगा दिया।

परिणाम इस बार पाज़िटिव था। जैसे ही पत्थर यन्त्र के सम्पर्क में आया, शूँ की आवाज़ के साथ वह हवा में विलीन हो गया। और उसके गायब होते ही उससे मिले सारे पत्थर एक एक करके गायब होने लगे। मज़े की बात ये थी कि एक तरफ तो फर्श के पत्थर गायब हो रहे थे और दूसरी तरफ वह मेज़ जिसपर कटा सर रखा था वह हवा में धीरे धीरे ऊपर उठती छत की ओर जा रही थी।

फिर वह पत्थर भी गायब हो गया जिसके ऊपर सनी खड़ा था। अब क़ायदे से उसे नीचे बने हुए गड्ढे में गिर जाना चाहिए था लेकिन वह वहीं हवा में टिका रहा। उसे लग रहा था कि इस जगह का गुरुत्व पूरी तरह खत्म हो गया है। वह अब किसी नयी मुसीबत के लिये अपने को तैयार कर रहा था जो कि शायद ज़्यादा ही मुश्किल थी, जैसा कि उस सर ने बताया था।

सर जिस मेज़ पर रखा था वह मेज़ छत को फाड़कर बाहर निकल चुकी थी, और उसके बाद छत फिर से बराबर हो गयी थी। अचानक उसे अपने पैरों पर नमी सी महसूस हुई। उसने झुककर देखा तो उसे अपने पैरों के पास छोटे छोटे गुलाबी रंग के बादल नज़र आये जो धीरे धीरे घने हो रहे थे। साथ ही यह बादल उसके पैरों से ऊपर भी उठकर पूरे कमरे में फैल रहे थे।

कमरे का मौसम अचानक बदल गया था। ठंडी ठंडी हवाएं चलने लगी थीं। और उसे कुछ ऐसी ही महक महसूस हो रही थी जैसे बारिश के मौसम में पहली बारिश के ठीक बाद होती है। उसे लग रहा था जैसे वह किसी बाग़ में बैठा हुआ है और मौसम की पहली बारिश शुरू हो गयी है।

बादल इतने घने हो गये थे कि उसे कमरे की दीवारें और उनपर लगे टीवी स्क्रीन मुश्किल से ही नज़र आ रहे थे। फिर वह दीवारें दिखाई देना बिल्कुल ही बन्द हो गयीं। अब तो उसका पूरा शरीर भी बादलों में छुप गया था। लगभग दस मिनट तक वह बादल उसे घेरे रहे, फिर एकाएक वह सभी बादल गायब हो गये। लेकिन अब वह कमरा भी नज़र नहीं आ रहा था जिसमें वह मौजूद था।

बल्कि यह तो बहुत ही खूबसूरत एक बाग़ था जिसमें तरह तरह के फल लगे हुए थे। थोड़ी दूर पर एक तालाब भी था। और वह खुद उस बाग़ में पड़े एक झूले पर विराजमान था। अचानक उसे लगा कि उस बाग़ में उसके अलावा कोई और भी है। क्योंकि उसे अपने पीछे हल्की सी आहट महसूस हुई थी। उसने घूमकर देखा तो एक और झूला नज़र आया। और उस झूले पर कोई लड़की बैठी हुई हौले हौले झूल रही थी। उस लड़की की पीठ सनी की तरफ थी।

सनी ने सुकून की एक साँस ली। क्योंकि पहली बार एम-स्पेस में कोई सही सलामत इंसान नज़र आया था। वह जल्दी से अपने झूले से नीचे कूद गया और उस लड़की की तरफ बढ़ा। उसी वक्त लड़की भी उसकी आहट महसूस करके उसकी ओर घूमी और उसका चेहरा देखते ही सनी की मुंह से हैरत से भरी हुई चीख निकल गयी।

वह लड़की नेहा थी। सनी बेसब्री से उसकी ओर बढ़ा।

‘‘नेहा! तुम तुम यहाँ?’’ नेहा कुछ नहीं बोली। एक मधुर मुस्कान के साथ वह बस उसकी तरफ देखे जा रही थी। दो तीन छलांगों में सनी उसके ठीक सामने पहुंच गया।

‘‘नेहा! तुम यहाँ एम-स्पेस में क्या कर रही हो?’’

‘‘मैं तुम्हें यहाँ से बाहर निकालने आयी हूं। चलो मेरे साथ।’’ उसने जवाब दिया। और झूले से नीचे कूद गयी।

‘‘लेकिन तुम यहाँ पहुंचीं कैसे ? क्या सम्राट ने तुम्हें भी कैद कर दिया?’’

‘‘मुझे कौन कैद कर सकता है। उसे तो मेरा आभास भी नहीं हो सकता।’’ नेहा ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा।

‘‘समझा यानि तुम्हारे पास भी कोई अनोखी शक्ति आ चुकी है।’’ सनी ने अंदाज़ा लगाया।

‘‘अब बातों में वक्त न बरबाद करो और मेरे साथ आओ। हमें यहाँ से बाहर निकलना है।’’ वह आगे बढ़ गयी। सनी भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। उसे लग रहा था कि भगवान ने नेहा के रूप में उसके पास मदद भेजी है। लेकिन नेहा यहाँ तक पहुंची कैसे यह सवाल किसी पहेली से कम नहीं था।

जल्दी ही वे बाग़ के किनारे पहुंच गये जहाँ सामने एक ऊंची बाउण्ड्री वाल नज़र आ रही थी।

‘‘आगे तो रास्ता ही बन्द है। भला इस ऊंची दीवार को कौन पार कर पायेगा।’’ सनी बड़बड़ाया।

‘‘दीवार के बीच में एक दरवाज़ा भी है। वह देखो उधर।’’ नेहा ने जिस तरफ इशारा किया था जब उधर सनी ने नज़र की तो अजीबोगरीब संरचना दिखाई दी। ये संरचना नीचे से ठोस घनाकार थी और सफेद संगमरमर जैसे किसी पत्थर की बनी हुई थी। वह घन दीवार में फिट था और आगे की ओर निकला हुआ था। उस घन के ऊपर एक काले रंग का वर्ग बना हुआ था। फिर उस वर्ग के ऊपर भी सफेद रंग की छड़ निकल कर और ऊपर गई हुई थी, और उस छड़ के ऊपर काले रंग से 1 लिखा हुआ स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

उस संरचना से सफेद रंग की अलग ही रोशनी निकल रही थी जो बाग़ में फैली रोशनी से थोड़ी अलग थी और उस संरचना को स्पष्ट देखने में मदद कर रही थी। लेकिन नेहा ने जो कहा था कि वहाँ पर एक दरवाज़ा है तो ऐसे दरवाज़े का कहीं दूर दूर तक पता नहीं था।

‘‘लेकिन दरवाज़ा कहाँ है? वहाँ पर तो मुझे ठोस संरचना दिखाई दे रही है।’’ सनी ने पूछ ही लिया।

‘‘जिस संरचना को तुम देख रहे हो वही तो दरवाज़ा है बाहर जाने का। तुम चलो तो सही।’’ नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा। अचानक सनी के दिमाग़ में ख्याल आया कि जिस तरह यहाँ कदम कदम पर गणितीय पहेलियों के दर्शन हो रहे हैं, और उस संरचना के ऊपर भी एक संख्या लिखी हुई है तो हो सकता है कि वह संरचना वाकई आगे जाने का दरवाज़ा ही हो और किसी तकनीक से खुलता हो। ऐसा सोचकर उसने आगे कदम बढ़ाया।

अब दोनों लगभग उस संरचना के पास पहुंच चुके थे। अचानक पीछे से कोई चिल्लाया, ‘‘रुक जाओ सनी बेटा।’’ जानी पहचानी आवाज़ सुनकर सनी फौरन पीछे घूम गया।

‘‘माँ, तुम यहाँ।’’ वह चीखा। यकीनन वह उसकी माँ थी जो हाथ फैलाये हुए उसकी तरफ बढ़ रही थी। उसने भी उससे मिलने के लिये आगे बढ़ना चाहा लेकिन उसी समय नेहा उसके सामने आ गयी।

‘‘कहाँ जा रहे हो सनी। वह तुम्हारी माँ नहीं है। वह केवल एक धोखा है।’’

उसी समय उसकी माँ ने उसे आवाज़ दी, ‘‘सनी, उस डायन के साथ आगे मत जाना वरना हमेशा के लिये कैद हो जाआगे। अगर तुम्हें यहाँ से बाहर निकलना है तो मेरे साथ चलो।’’

अब तक उसकी माँ उसके काफी पास आ चुकी थी और सनी देख रहा था कि वह वाकई उसकी माँ थी, न कोई धोखा थी और न कोई और उसके मेकअप में था। लेकिन दूसरी तरफ नेहा भी कोई डायन तो मालूम नहीं हो रही थी।

‘‘सनी इस बुढ़िया की बातों में मत आना वरना कभी एम-स्पेस से बाहर नहीं निकल सकोगे। वह एक फरेब है जो तुम्हारी माँ की शक्ल में है।’’ नेहा ने फिर उसे सावधान किया।

‘‘फरेब तो तू है डायन! जो मेरे भोले भाले बेटे को अपने साथ ले जाकर हमेशा के लिये कैद कर देना चाहती है।’’ उसकी माँ ने दाँत पीसकर कहा, फिर सनी से मुखातिब हुई , ‘‘बेटा मैंने तुझे अपना दूध पिलाया है। क्या तू मुझे नहीं पहचान रहा। अपनी सगी माँ को नहीं पहचान रहा।’’ सनी ने देखा उसकी माँ आँचल से अपने आँसू पोंछ रही थी। वह तड़प गया।

‘‘नहीं माँ, मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। पूरी दुनिया धोखा दे दे लेकिन माँ कभी नहीं धोखा देती।’’ वह उसकी तरफ बढ़ा लेकिन उसी समय पास के एक घने पेड़ से कोई धप से ज़मीन पर कूदा।

सनी ने देखा, यह निहायत काला भुजंग मोटा सा व्यक्ति था जिसके सर पर एक सींग भी मौजूद था। इस कुरूप व्यक्ति के चेहरे पर निहायत वीभत्स मुस्कुराहट सजी हुई थी।

‘‘किधर जा रहा है रे। बहुत बड़ा धोखा खायेगा तू।’’ वह राक्षस अपनी खौफनाक मुस्कुराहट के साथ बोला।

‘‘राक्षस दूर हो जा यहाँ से। मैं अपने बेटे को इस जगह से निकालने के लिये आयी हूं।’’ उसकी माँ ने गुस्से से उस वीभत्स राक्षस को लताड़ा।

‘‘तू इसे निकालेगी या और फंसा देगी। इसे यहाँ से सुरक्षित सिर्फ मैं निकाल सकता हूं।’’ फिर वह सनी से मुखातिब हुआ, ‘‘देख क्या रहा है। मेरे साथ आ। मैं तुझे यहाँ से निकालता हूं।’’

वह कुरूप राक्षस सनी की तरफ बढ़ा। सनी के दिमाग़ की चूलें इस वक्त हिली हुई थीं। उसका मन कर रहा था कि अपने सर के सारे बाल नोच डाले।

‘‘वहीं रूको। मैं खुद ही यहाँ से बाहर निकल जाऊंगा।’’ उसने चीख कर कहा और उस संरचना की ओर तेज़ तेज़ कदमों से जाने लगा जिसे नेहा ने दरवाज़े का नाम दिया था। वह उस विशाल संरचना के सामने पहुंचा और उसमें किसी दरवाज़े का निशान ढूंढने की कोशिश करने लगा। लेकिन उस संरचना में कहीं कोई दरार भी नहीं दिखाई दी।

उसने घूमकर देखा। नेहा, उसकी माँ और वह राक्षस अपनी जगह चुपचाप खड़े उसी की तरफ देख रहे थे। उसने अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो को उस संरचना से टच कराया। टच कराते ही उस संरचना से बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हुई जो कि शब्दों में बदल गयी।

उस संरचना से आने वाली आवाज़ कह रही थी, ‘‘मेरे अन्दर आने के लिये तुम्हें उन तीनों में से एक को साथ लाना पड़ेगा।’’ इतना कहकर आवाज़ बन्द हो गयी। सनी ने दोबारा अपना ज़ीरो उससे टच कराया और संरचना ने फिर यही शब्द दोहरा दिये।

यानि सनी के पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था कि वह उन तीनों में से किसी एक को साथ लेकर आता। लेकिन किसको? उन तीनों की आपसी सर फुटव्वल से यही ज़ाहिर हो रहा था कि उनमें से दो गलत हैं और एक ही सही है। गलत का साथ पकड़ने का मतलब था कि वह हमेशा के लिये किसी अंजान जगह पर कैद हो जाता।

लेकिन उनमें सही कौन था इसे ढूंढ़ना टेढ़ी खीर था। वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और इस नयी पहेली को सुलझाने की कोशिश करने लगा। लेकिन बहुत देर सर खपाने के बाद भी इस पहेली का कोई हल उसे समझ में नहीं आया। एक तरफ नेहा थी, उसकी स्कूल की दोस्त। जिसने अक्सर मैथ के सवाल हल करने में उसकी मदद की थी। और उससे पूरी हमदर्दी रखती थी। दूसरी तरफ माँ थी जिसने उसे जन्म दिया था, उसकी हमेशा हर ख्वाहिश को पूरा किया था और जब जब वह किसी मुश्किल में पड़ा तो उसकी माँ ने आसानी से उसे उस मुश्किल से उबार लिया। फिर तीसरा वह राक्षस था जो खुद ही कोई नयी मुसीबत मालूम हो रहा था। लेकिन इस मायावी दुनिया का कोई भरोसा नहीं। वही वास्तविक मददगार भी हो सकता था।

बहुत देर सर खपाने के बाद भी जब वह कोई नतीजे पर नहीं पहुंच सका तो उसने अपने सामने मौजूद संरचना पर दृष्टि की और सोचने लगा कि आखिर इस तरह की संरचना क्या सोचकर बनायी गयी। एकाएक उसकी अक्ल का बल्ब रोशन हो गया। उसे अफसोस हुआ कि उसने इस संरचना पर पहले गौर क्यां नहीं किया। यह संरचना तो खुद ही सही मददगार की ओर इशारा कर रही थी।

दरअसल यह संरचना एक गणितीय समीकरण को बता रही थी। वह समीकरण क्यूबिक इक्वेशन थी। अगर उस अज्ञात दरवाज़े को एक्स माना जाता तो नीचे का सफेद क्यूब पाज़िटिव एक्स क्यूब बना। फिर उसके ऊपर काला स्क्वायर निगेटिव एक्स स्क्वायर हो गया। उसके ऊपर सफेद छड़ पाज़िटिव एक्स को बता रही थी और फिर सबसे ऊपर निगेटिव वन था। इस तरह यह क्यूबिक समीकरण मुकम्मल हो रही थी। अब जहाँ तक सनी को जानकारी थी कि इस क्यूबिक समीकरण के दो हल तो काल्पनिक मान रखते हैं और एक ही हल वास्तविक होता है और इस वास्तविक हल का मान वन के बराबर होता है।

इसका मतलब ये हुआ कि बाग़ में मौजूद तीनों प्राणी इस क्यूबिक समीकरण के तीन हल थे। और इस समीकरण को ज़ीरो करने के लिये यानि दरवाज़े को खोलने के लिये उनमें से एक को साथ लाना ज़रूरी था। लेकिन अगर सनी गलती से काल्पनिक मान को ले आता तो समीकरण रूपी संरचना के अन्दर जाते ही वह खुद भी काल्पनिक बन जाता और उसका वास्तविक दुनिया से हमेशा के लिये नाता टूट जाता। जबकि वास्तविक मान को साथ में लाकर वह दरवाज़ा भी खोल लेता और वास्तविक दुनिया में भी मौजूद रहता।

अब वह सोचने लगा कि उन तीनों में से कौन से दो मान काल्पनिक हो सकते हैं थोड़ा दिमाग लगाने पर यह राज़ भी उसपर खुल गया। थोड़ी देर पहले नेहा ने उससे कहा था, ‘‘मुझे कौन कैद कर सकता है। उसे तो मेरा आभास भी नहीं हो सकता।’’

इसका मतलब कि नेहा एक काल्पनिक मान के रूप में यहाँ मौजूद थी। क्योंकि काल्पनिक मान का वास्तविक दुनिया में आभास नहीं होता। और अगर नेहा काल्पनिक थी तो उसकी माँ भी काल्पनिक थी। वैसे भी दोनों का इस दुनिया में मौजूद रहना अक्ल से परे था। क्योंकि वह खुद तो सम्राट द्वारा वहाँ लाया गया था जबकि उन दोनों की वहाँ मौजूदगी का कोई कारण नहीं दिखाई देता था।

वह दोबारा उन तीनों की ओर बढ़ने लगा। नेहा और उसकी माँ मुस्कुराने लगीं क्योंकि दोनों को लग रहा था कि सनी उनके ही पास आ रहा है। जबकि राक्षस के चेहरे पर पहले की तरह वीभत्स मुस्कान सजी हुई थी।

सनी वहाँ पहुंचा और उसने राक्षस का हाथ थाम लिया।

‘‘सनी!’’ नेहा ने गुस्से में भरी एक चीख मारी जबकि उसकी माँ अपना आँचल आँखों पर रखकर सिसकियां लेने लगी। सनी का दिल एक पल को मचला लेकिन उसे इस वक्त अपने दिमाग से काम लेना था। राक्षस ने उसका हाथ थाम लिया और दरवाज़े की ओर बढ़ा।

‘‘रुक जा मेरे लाल। वह राक्षस तुझे खत्म कर देगा।’’ उसकी माँ ने पीछे से पुकार लगाई।

एक पल को सनी ठिठका। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। कहीं उसका डिसीज़न गलत तो नहीं। अगर ऐसा होता तो वह कहीं का नहीं रहता। फिर उसने अपने दिल को दिलासा दिया और माँ व नेहा की पुकार अनसुनी करके आगे बढ़ गया।

अब वह उस संरचना के ठीक आगे पहुंच चुका था। उसने घूमकर देखा माँ और नेहा दोनों ही उसे तेज़ी से हाथ हिला हिलाकर बुला रही थीं। उसने राक्षस की ओर देखा।

‘‘अभी मौका है तुम्हारे पास। वापस भी जा सकते हो तुम।’’ राक्षस ने डरावनी आवाज़ में कहा।

‘‘नहीं। मैंने तय कर लिया है। वापस नहीं जाऊंगा।’’ सनी ने दृढ़ता के साथ कहा। उसके इतना कहते ही राक्षस ने उस समीकरण रूपी संरचना पर हाथ रख दिया। दूसरे ही पल उस क्यूब का आगे का हिस्सा गायब हो गया और राक्षस उसे लेकर अन्दर प्रवेश कर गया।

जैसे ही दोनों अन्दर पहुंचे आगे का हिस्सा फिर बराबर हो गया। सनी ने देखा कि आगे का हिस्सा साफ शीशे की तरह बाहर बाग़ का दृश्य दिखा रहा था। जहाँ नेहा और उसकी माँ दोनों का जिस्म धीरे धीरे पारदर्शी हो रहा था। और फिर दोनों के जिस्म बिल्कुल ही दिखना बन्द हो गये।

सनी ने एक गहरी साँस ली और बड़बड़ाया, ‘‘इसका मतलब कि मेरा अंदाज़ा सही था।’’

‘‘अगर तुम उन दोनों में से किसी के साथ आते तो तुम भी उनही की तरह गायब हो जाते हमेशा के लिये।’’ राक्षस ने कहा।

‘‘उस सर ने ठीक कहा था कि होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज़्यादा मुश्किल है। इससे पहले तो सिर्फ शारीरिक कष्ट ही झेलना पड़ता था। लेकिन इस बार तो दिमाग़ की भी चूलें हिल गयीं।’’ सनी ने एक गहरी साँस ली और इधर उधर देखने लगा।

फिर उसे एहसास हुआ कि वह एक ऐसे बक्से में मौजूद है जिससे बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं। सामने शीशे की दीवार से सामने बाग़ का मंज़र दिखाई दे रहा था जबकि बाकी तीन तरफ की दीवारें, छत और फर्श सभी स्टील की मोटी चादर के बने मालूम हो रहे थे।

‘‘कहीं तुमने मुझे कैद में लाकर तो नहीं फंसा दिया है?’’ सनी ने उस राक्षस को घूर कर देखा।

‘‘तुमने ऐसा क्यों सोचा?’’ राक्षस के चेहरे पर हमेशा की तरह यान्त्रिक मुस्कुराहट बनी हुई थी।

‘‘अगर मैं कैद में नहीं हूं तो आगे बढ़ने का रास्ता किधर है?’’

‘‘इस समय तुम जिस कमरे में हो यही कमरा तुम्हें आगे ले जायेगा।’’

‘‘वह कैसे? यह तो शायद अपनी जगह पर जाम है।’’ सनी ने उसकी ओर बेयकीनी से देखा।

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं। लेकिन इसके लिये तुम्हें अपना ज़ीरो मुझे सौंपना होगा।’’ राक्षस ने उसकी ओर हाथ फैलाया।

सनी एक बार फिर ज़हनी कशमकश में फंस गया। उस ज़ीरो ने कई बार उसकी मदद की थी। फिर उसे वह उस राक्षस को कैसे सौंप देता। शायद राक्षस ने अभी तक इसीलिए उसे नुकसान नहीं पहुंचाया था क्योंकि वह करिश्माई ज़ीरो उसके हाथ में था। लेकिन ज़ीरो को अपने से अलग करते ही वह ज़रूर किसी न किसी नयी मुसीबत में फंस जाता।

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ उसे यूं विचारों में गुम देखकर राक्षस ने पूछा।

‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि तुम ज़ीरो लेने के बाद मुझे धोखा नहीं दोगे।’’ सनी ने उसी से पूछ लिया।

‘‘गारंटी तो कोई नहीं। लेकिन जब तक ज़ीरो मेरे पास नहीं आता मैं कुछ नहीं कर सकता।’’ राक्षस ने सनी को और उलझन में डाल दिया था।

‘‘तुम्हें कम्प्यूटर के बाइनरी सिस्टम के बारे में सोचना चाहिए।’’ थोड़ी देर बाद राक्षस फिर इतनी सी बात बोला और चुप हो गया।

‘भला यहाँ कम्प्यूटर का बाइनरी सिस्टम कहाँ से टपक पड़ा।’ सनी ने झल्लाकर कहा। यह राक्षस भी पहेलियों में बातें कर रहा था। सनी बेचैनी से इधर उधर टहलने लगा। जबकि राक्षस अपनी जगह हाथ बाँधे हुए खड़ा था। उसके चेहरे पर सजी फिक्स मुस्कुराहट अब सनी को सुलगा रही थी।

फिर उसने अपने दिमाग को ठंडा किया। अभी तक उसे जो कामयाबी मिली थी वह ठंडे दिमाग से सोचने का ही परिणाम थी। उसने उस राक्षस की बात पर विचार करना शुरू किया और कम्प्यूटर के बाइनर सिस्टम के बारे में गौर करने लगा। उसके कम्प्यूटर के टीचर ने बताया था कि कम्प्यूटर की पूरी गणित केवल दो अंकों पर आधारित होती है। ज़ीरो और वन। इन दोनों के मिलने से सारी गिनतियाँ बन जाती हैं।

सनी के दिमाग का बल्ब फिर रोशन हो गया। ज़ीरो तो उसके हाथ में था जबकि वह राक्षस क्यूबिक समीकरण के मान ‘वन’ को निरूपित कर रहा था। अब दोनों को अगर मिला दिया जाता तो जिस तरह बाइनरी सिस्टम में समस्त संख्याएं बन जाती हैं, उसी तरह यहाँ पर दोनों के मिलने से कोई नयी शक्ति पैदा होने का पूरा चाँस था जो सनी को इस मुश्किल से उबार सकती थी।

हालांकि इसमें रिस्क भी था। हो सकता था कि ज़ीरो के मिलते ही वह राक्षस उसके लिये घातक सिद्ध होता। काफी देर सोचने विचारने के बाद सनी ने यह रिस्क लेने का फैसला किया। वैसे भी और कोई चारा नहीं था। अगर वह रिस्क न लेता तो शायद पूरी जिंदगी उस छोटे से कमरे में गुज़ार देनी पड़ती।

उसने अपने हाथ में मौजूद ज़ीरो को राक्षस की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही ज़ीरो राक्षस के हाथ में पहुंचा उसके शरीर से तेज़ रोशनी कुछ इस तरह फूटी कि सनी को अपनी आँखें बन्द कर लेनी पड़ीं। उसने आँखें मिचमिचाते हुए देखा राक्षस के शरीर का रंग पल पल बदल रहा था। उसका कालापन गायब हो चुका था और उसके जिस्म में ऊपर से नीचे तक रंगीन रोशनियां लहरा रही थीं। फिर धीरे धीरे उन रोशनियों की तीव्रता कम होकर इस लायक हो गयी कि सनी अपनी पूरी आँखें खोल सका।

उसने देखा राक्षस के जिस्म से निकलने वाली रोशनियों ने पूरे कमरे को जगमगा दिया था और अब वह राक्षस भी नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके सर का सींग गायब हो गया था और चेहरा निहायत खूबसूरत हो गया था। लेकिन उसका जिस्म अभी भी मानव का जिस्म नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके पूरे धड़ में तरह तरह के रंगों की रोशनियां इस तरह लहरा रही थीं मानो बादलों में बिजलियां चमक रही हैं।

‘‘अरे वाह। तुम तो अब खूबसूरत हो गये। फिर तुमने मेरा ज़ीरो बाहर ही क्यों नहीं माँग लिया था?’’ सनी ने खुश होकर पूछा।

‘‘मैं उसे बाहर नहीं माँग सकता था। इसके दो कारण थे। पहला तो ये कि वहाँ मेरे माँगने पर तुम उसे देते ही नहीं।’’

सनी ने दिल में सोचा, ‘‘यह ठीक कह रहा है। यकीनन अगर वहाँ पर कोई भी उससे उसका यन्त्र माँगता तो वह हरगिज़ उसे नहीं देता।’’

‘‘और दूसरा कारण?’’ उसने पूछा।

‘‘दूसरा कारण ये था कि अगर मैं उस ज़ीरो को बाहर ले लेता तो इस क्यूबिक समीकरण रूपी दरवाज़े को खोलना मुमकिन न होता। क्योंकि ज़ीरो ग्रहण करने के बाद मेरा मान ‘वन’ नहीं रह जाता।’’

‘‘ठीक है। मैं समझ गया। अब तुम आगे क्या करने जा रहे हो?’’

‘‘अब हम अपनी मंज़िल की ओर बढ़ने जा रहे हैं।’’ कहते हुए उसने एक छलांग लगायी और कमरे की छत से चिपक गया। उसके छत से चिपकते ही कमरा हवा में ऊपर उठने लगा। थोड़ी ऊंचाई पर जाकर कमरा एक दिशा में तेज़ी से आगे की तरफ उड़ने लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था कि कमरे को वह राक्षस अपने ज़ोर से हवा में उड़ा रहा है। वैसे अब उसे राक्षस कहना मुनासिब नहीं था। बल्कि वह तो कोई फरिश्ता मालूम हो रहा था।

सनी ने एक तरफ बनी पारदर्शी दीवार से बाहर की ओर देखा। यह कमरा आसमान में किसी हवाई जहाज़ की ही तरह उड़ रहा था। और उस कमरे के बाहर आसमान में तरह तरह की रंग बिरंगी किरणें लहरा रही थीं और एक निहायत खूबसूरत दृश्य देखने को मिल रहा था।

‘‘एक बात बताओ!’’ सनी ने उस राक्षस या फरिश्ते को मुखातिब किया, ‘‘इस कमरे को उड़ाने में तुम जितनी ताकत लगा रहे हो। उससे कम ताकत में तुम अकेले मुझे उड़ाकर ले जा सकते थे। फिर इतना झंझट क्यों मोल लिया?’’

‘‘मैं इस कमरे को उड़ने के लिये केवल एनर्जी सप्लाई कर रहा हूं। जबकि उड़ने के मैकेनिज़्म इसके अन्दर ही बना हुआ है। और सबसे अहम बात ये है कि अगर तुम इस कमरे से बाहर निकलोगे तो आसमान में नाचती ये रंग बिरंगी किरणें तुम्हारे शरीर को नष्ट कर देंगी। क्योंकि ये किरणें काफी घातक हैं।’’

‘‘तो अब हम जा कहाँ रहे हैं?’’

‘‘जहाँ ये कमरा हमें ले जा रहा है।’’ राक्षस ने जवाब तो दे दिया था लेकिन वह जवाब सनी के लिये किसी काम का नहीं था। वह खामोश हो गया।

कमरा अपनी गति से उड़ा जा रहा था या राक्षस उसे उड़ाये ले जा रहा था। लगभग एक घंटे तक उड़ने के बाद कमरा अचानक एक अँधेरी सुंरग में घुस गया। हालांकि सनी के लिये वहाँ पूरी तरह अँधेरा नहीं था क्योंकि राक्षस के जिस्म से फूटती रोशनी में उसे आसपास की चीज़ें नज़र आ रही थीं। थोड़ी देर उस सुरंग में उड़ने के बाद कमरा अचानक रुक गया। और साथ ही उसका शीशे का दरवाज़ा भी खुल गया।

सनी ने देखा, कमरा एक चौकोर प्लेटफार्म पर आकर रुका था। और उस प्लेटफार्म से नीचे जाने के लिये सीढ़ियां भी मौजूद थीं। वह जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। वहाँ पर एक हल्की सी आवाज़ गूंज रही थी। जो मच्छरों के भनभनाने जैसी थी। इस अँधेरी सुरंग में मच्छरों का होना कोई हैरत की बात नहीं थी। सनी ने सीढ़ी के आखिरी डण्डे से नीचे कदम रखा लेकिन फिर उसे पछताने के मौका भी नहीं मिल सका।

क्योंकि उसे मच्छरों की वह फौज सामने ही नज़र आ गयी थी जो तेज़ी से उसपर हमला करने के लिये आगे बढ़ रही थी। और मच्छर भी कैसे। हर एक का साइज़ टेनिस बॉल से कम नहीं था। उनके सामने लगे तेज़ डंक किसी नुकीले खंजर की तरह नज़र आ रहे थे।

इससे पहले कि वह नुकीले डंक सनी के शरीर को पंचर कर देते, सनी का मददगार यानि वह राक्षस या फरिश्ता तेज़ी से सामने आया और उन मच्छरों को दोनों हाथों से मारने लगा। जैसे ही उसका हाथ किसी मच्छर से टकराता था एक चिंगारी के साथ वह मच्छर गायब हो जाता था।

‘‘वेरी गुड!’’, सनी चीखा, ‘‘सबको खत्म कर दो।’’

‘‘मैं तुम्हें ज़्यादा देर नहीं बचा सकता। इससे पहले कि ये बहुत ज़्यादा बढ़ जायें तुम्हें इनका स्रोत ढूंढकर नष्ट करना होगा।’’ हवा में हाथ लहराते हुए उस फरिश्ते ने भी चीखकर कहा।

सनी ने देखा मच्छरों की संख्या धीरे धीरे बढ़ रही थी। और वाकई में अगर उनके निकलने को रोका न जाता तो थोड़ी ही देर में ये इतने ज़्यादा हो जाते कि उनसे बचना नामुमकिन हो जाता। फरिश्ते के जिस्म से निकलती रोशनी में वह देख रहा था कि ये मच्छर सामने मौजूद एक दीवार के सूराखों से निकल रहे हैं। ये सूराख भी टेनिस की बॉल जितनी गोलाई के थे और संख्या में बीसियों थे।

‘‘मैं क्या कर सकता हूं? मेरा ज़ीरो भी तुमने ले लिया।’’ सनी हाथ मलते हुए बोला।

‘‘अकेले ज़ीरो से इन मच्छरों का कुछ भला नहीं होने वाला था। यहाँ तुम्हें कोई और तरकीब लगानी होगी।’’

‘‘कौन सी तरकीब?’’

‘‘मैं नहीं जानता। तुम्हें अपनी अक्ल लगानी होगी। लेकिन जो कुछ करना है जल्दी करो।’’ फरिश्ता मच्छरों को तेज़ी से मारते हुए फिर चीखा। सनी ने अपनी अक्ल लगानी शुरू की और सूराखों पर अपनी नज़रें गड़ा दीं। सूराख काफी ज़्यादा संख्या में थे।

‘अगर उन्हें बन्द कर दिया जाये तो?’ सनी ने सोचा और कमरे में इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा कि शायद कोई चीज़ उन सूराखों को बन्द करने के लिये मिल जाये। उसे निराश नहीं होना पड़ा। क्योंकि कमरे में स्टेज के पास ही लकड़ी के ढेर सारे गोल ढक्कन पड़े हुए थे जो उन सूराखों के ही साइज़ के थे।

‘अरे वाह! सूराखों को बन्द करने के औज़ार तो यहीं पड़े हैं।’ सनी ने खुश होकर आठ दस ढक्कन एक साथ उठा लिये और मच्छरों से बचते बचाते उन सूराखों की ओर बढ़ा। उसने पहला ढक्कन एक सूराख पर फिट किया। लेकिन यह क्या? हाथ हटाते ही वह ढक्कन नीचे गिर गया था क्योंकि उसे धक्का मारते हुए उसी समय कई मच्छर बाहर निकल आये थे।

‘क्या इन ढक्कनों को लगाने की भी कोई ट्रिक है?’ सनी सोचने लगा। यहाँ पर खड़े रहकर सोचना काफी मुश्किल था क्योंकि मच्छर लगातार डिस्टर्बेंस पैदा कर रहे थे। वह सूराखों से निकलते हुए मच्छरों को गौर से देखने लगा। और उसी समय उसपर एक नया राज़ खुला।

हालांकि सूराख लगभग पूरी दीवार में वर्गाकार क्षेत्र में बने हुए थे। लेकिन उन सबसे हर समय मच्छर नहीं निकल रहे थे। बल्कि उनके बाहर आने में एक पैटर्न नज़र आ रहा था। एक खड़ी लाइन में बने तमाम सूराखों में से कभी सभी सूराखों में से मच्छर निकल आते थे तो कभी कुछ सूराखों से। और जब एक लाइन के सूराखों से निकलने वाले मच्छर कम होते थे तो उसके आसपास की कुछ लाइनों से निकलने वाले मच्छरों की संख्या बढ़ जाती थी।

सनी को याद आया कि एक बार वह नेहा के साथ लाइब्रेरी गया था और वहाँ पर नेहा ने उसे तरंग गति के बारे में कुछ समझाया था और किताब में तरंग गति का डायग्राम भी दिखाया था। अब यहाँ मच्छरों के निकलने में उसे तरंग गति ही नज़र आ रही थी।

‘‘तुम खड़े सोच क्या रहे हो। मेरी ताकत धीरे धीरे कम हो रही है। जल्दी कुछ करो।’’ उसके चारां तरफ चकराते फरिश्ते ने उसके विचारों को भंग कर दिया।

‘‘बस थोड़ी देर और इन्हें झेलो, मुझे लगता है मैं किसी नतीजे पर पहुंच रहा हूं।’’ फरिश्ता एक बार फिर ज़ोर शोर से उन मच्छरों से मुकाबला करने लगा। जबकि सनी मच्छरों के निकलने के पैटर्न पर और गौर करने लगा था। किसी तरंग की तरह एक खड़ी लाइन के सूराखों से निकलने वाले मच्छरों की संख्या पहले बढ़ते हुए सबसे ऊपर व सबसे नीचे के सूराख तक पहुंच जाती थी और फिर घटते घटते एक समय के बाद शून्य हो जाती थी। ऐसा हर खड़ी लाइन में कुछ इस तरह हो रहा था मानो कोई प्रोग्रेसिव वेव आगे बढ़ रही है।

फिर सनी ने एक तजुर्बा करने का फैसला किया। एक खड़ी लाइन में जैसे ही मच्छरों के निकलने की संख्या शून्य हुई, उसने उसके बीच के सूराख में ढक्कन लगा दिया। परिणाम उसके अनुमान से भी ज़्यादा आशाजनक साबित हुआ। न केवल उस सूराख से मच्छरों का निकलना बन्द हो गया बल्कि उस खड़ी लाइन के सभी सूराखों से मच्छरों का निकलना बन्द हो गया।

सनी को मालूम हो चुका था कि ढक्कन लगाने का सही समय क्या है। उसने यह क्रिया सभी खड़ी लाइनों के साथ दोहरायी और जल्दी ही सूराखों से मच्छरों का निकलना पूरी तरह बन्द हो गया।

‘‘वो मारा।’’ फरिश्ता खुशी से चीखा। लेकिन उनकी ये खुशी ज़्यादा देर कायम न रह सकी। क्योंकि अब वह दीवार बुरी तरह हिल रही थी जिसके सूराख बन्द किये गये थे।

‘‘य...ये क्या हो रहा है?’’ सनी घबराकर बोला।

‘‘लगता है अब सारे मच्छर दीवार गिराकर बाहर आना चाहते हैं।’’ फरिश्ता भी घबराकर बोला। अगर ऐसा हो जाता तो दोनों के लिये बचना नामुमकिन था। लेकिन फिलहाल उन दोनों को गिरती हुई दीवार से बचना था। अतः वे कई कदम पीछे हट गये।

फिर एक धमाके के साथ दीवार नीचे आ गयी। लेकिन ये देखकर उन्होंने इत्मिनान का साँस ली कि दीवार के पीछे कोई भी मच्छर नहीं था, बल्कि वहाँ एक और कमरा दिखायी दे रहा था। उस कमरे में हर तरफ लाल रंग की लेसर जैसी किरणें फैली हुई थीं। उसकी रोशनी में उन्होंने देखा कि कमरे के दूसरे सिरे पर एक बन्द संदूक़ मौजूद है।

‘‘वो संदूक कैसा है?’’ फरिश्ते ने ही उसकी ओर उंगली से इशारा किया।

‘‘बचपन में दादी ने कुछ कहानियां सुनाई थीं। जिसमें किसी खज़ाने की रक्षा के लिये इस तरह के तिलिस्म बनाये जाते थे। और उन्हें सख्त सुरक्षा में रखा जाता था। जिस तरह यहाँ खतरनाक टाइप के मच्छर घूम रहे थे, और जिस तरह यहाँ तक आने में रुकावटें पैदा हुईं, हो न हो उस संदूक़ में ज़रूर कोई खज़ाना है।’’

‘‘तो क्या मैं उस संदूक़ को उठा लाऊं?’’ फरिश्ते ने पूछा। सनी ने सहमति में सर हिलाया। फरिश्ते ने एक छलांग लगायी और दूसरे कमरे में पहुंच गया। लेकिन जैसे ही वह उन लेसर टाइप किरणों से टकराया, उसके जिस्म में आग लग गयी और वह ज़ोरों से चीखा।

‘‘मुझे बचाओ मैं जला जा रहा हूं!’’

सनी ने भी चीख कर उसे आवाज़ लगायी। लेकिन उसके पास हाथ मलने के अलावा और कोई चारा नहीं था। देखते ही देखते वह फरिश्ता धूँ धूँ करके पूरा जल गया और वह बेबसी से उसे देखता रह गया। अब तो वहाँ उसकी राख भी नहीं दिख रही थी। सनी पछताने लगा। क्यां उसने बिना सोचे समझे उसे संदूक लाने के लिये भेज दिया था। दूसरे कमरे में बिखरी हुई किरणें काफी खतरनाक थीं।

अपने सर को दोनों हाथों से थामकर वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया। जब वह राक्षस पहली बार मिला था तो सनी को उससे बहुत डर लगा था। लेकिन इतनी देर में वह सनी से इतना घुलमिल गया था और इतनी मदद की थी कि वह उसे अपना बहुत करीबी दोस्त मानने लगा था। और अब उस दोस्त की इस तरह जुदाई उससे सहन नहीं हो रही थी।

थोड़ी देर बाद जब उसके दिल को कुछ तसल्ली हुई तो उसने अपने सर को उठाया और चारों तरफ देखने लगा। उसे बहरहाल आगे बढ़ना था और उस कण्ट्रोल रूम को ढूंढना था जो उसे एम-स्पेस से आज़ादी दिला देता। उसने अपने चारों तरफ देखा। लेकिन फिलहाल उसे आगे बढ़ने का कहीं कोई रास्ता नज़र नहीं आया। जो यान उसे लेकर आया था वह अपने प्लेटफार्म पर टिका हुआ था। लेकिन उसका आगे उड़ना अब नामुमकिन था क्योंकि उसे बढ़ाने के लिये फरिश्ते के रूप में जो एनर्जी थी वह खत्म हो चुकी थी।

काफी देर सोच विचार करने के बाद उसकी समझ में यही आया कि फिलहाल उस संदूक तक पहुंचने के अलावा उसके पास करने को और कुछ नहीं। हो सकता है उस बन्द संदूक के अंदर आगे बढ़ने का कोई राज़ छुपा हो। या ज़ीरो जैसा कोई हथियार। लेकिन उस संदूक तक जाना निहायत खतरनाक था। क्योंकि लेसर रूपी किरणें रास्ते में फैली हुई थीं और संदूक तक जाने के लिये उसे उनसे हर हाल में बचना था।

उसने ये खतरा उठाने का निश्चय किया। मरना तो ऐसे भी था। उस बन्द कमरे में बिना खाना व पानी के वह कितनी देर जिंदा रहता। वह उठ खड़ा हुआ और सामने मौजूद लाल किरणों को गौर से देखने लगा। किरणों के बीच के गैप से उसने अंदाज़ा लगाया कि उसका जिस्म उनके बीच से निकल सकता था। हालांकि उसमें काफी खतरा था। ज़रा सी चूक उसे किरणों के सम्पर्क में ला सकती थी और वह मिनटों में स्वाहा हो जाता।

वह धड़कते दिल के साथ आगे बढ़ा। इस समय उसका दिमाग और जिस्म पूरी तरह ऐक्टिव था क्योंकि यह जिंदगी और मौत का मामला था। उसने किरणों वाले कमरे में कदम रखा और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। किरणों से बचते बचाते वह आगे बढ़ रहा था। उसकी एक आँख संदूक पर जमी हुई थी और दूसरी किरणों पर। चींटी की चाल से वह आगे बढ़ रहा था।

आखिर में लगभग आधे घंटे बाद जब वह संदूक तक पहुंचा तो सर से पैर तक वह पसीने में नहा चुका था। यह आधा घंटा उसे सदियों के बराबर लग रहा था। संदूक तक पहुंने के बाद उसने सुकून की एक गहरी साँस ली और कुछ मिनट आराम करने के बाद वह संदूक का निरीक्षण करने लगा। फिर उसने संदूक का कुंडा पकड़ लिया। कुंडा पकड़ते ही कमरे में बिखरी सारी किरणों गायब हो गयीं। और वहाँ घुप्प अँधेरा छा गया। अँधेरे में ही टटोलकर उसने कुंडे की मदद से संदूक का ढक्कन उठाया और फिर पछताने लगा कि संदूक तक आने के लिये उसने इतना खतरा क्यों मोल लिया।

उस संदूक के अन्दर हल्की रोशनी फैली हुई थी। और उस रोशनी में उसे किसी बच्चे का सर कटा धड़ साफ दिखाई दे रहा था। धड़ गहरे पीले रंग का था और उस धड़ के अलावा उस संदूक में और कुछ नहीं था।

‘‘क्या इसी सरकटी लाश को देखने के लिये मैंने इतना खतरा मोल लिया?’’ उसने झल्लाकर संदूक बन्द कर दिया। लेकिन संदूक बन्द करते ही कमरे में फिर घना अँधेरे छा गया। अचानक उसके ज़हन में एक नया विचार चमका।

इससे पहले उसने एक मुकाम पर कटा हुआ सर देखा था। और उस सर ने कहा था कि, ‘‘जिस जगह तुम मेरा कटा हुआ धड़ देखोगे वही जगह होगी कण्ट्रोल रूम।’’ लेकिन वह सर तो बूढ़े का था जबकि सर बच्चे का।

फिर उसे याद आया कि जिस ग्रह के लोगों ने उसे एम-स्पेस में कैद किया था वह बच्चे के साइज़ के बौने प्राणी ही मालूम होते थे। और अगर बूढ़ा जिसका सर उसने देखा था उसी ग्रह का था तो यह धड़ उसका हो सकता था।

‘‘तो क्या यह कण्ट्रोल रूम है?’’ लेकिन ऐसा कोई आसार तो नज़र नहीं आ रहा था। चारों तरफ घुप्प अँधेरा फैला हुआ था। उसने संदूक का ढक्कन फिर उठा दिया, क्योंकि संदूक से निकलती हल्की रोशनी में कमरे का अँधेरा कुछ हद तक दूर हो रहा था। रोशनी में भी सनी को आसपास ऐसा कुछ नज़र नहीं आया कि वह उसे कण्ट्रोल रूम मान लेता। हर तरफ की दीवारें सपाट थीं। कहीं कोई भी मशीनरी दिखाई नहीं दे रही थी।

एक बार फिर उसने अपना ध्यान संदूक की तरफ किया। क्योंकि वही एक चीज़ थी जो कुछ खास थी। वह बारीकी से संदूक का निरीक्षण करने लगा। उसने देखा कि ताबूत में मौजूद धड़ ताबूत के फर्श पर न होकर नुकीली कीलों के ऊपर टिका हुआ था जो ताबूत के पूरे तल में जड़ी हुई थीं। सनी ने उन कीलों को गिनने की कोशिश की, लेकिन वे संख्या में बहुत ज़्यादा थीं। शायद उनकी संख्या दस हज़ार से भी ऊपर थी।

‘शायद इन बेशुमार कीलों में कोई राज़ छुपा हुआ है।’ सनी के दिल में विचार पैदा हुआ।

उसने एक कील को हिलाने डुलाने की कोशिश की। और इसी क्रिया में वह कील नीचे की तरफ धंस गयी। उसी समय कमरे की दीवार का एक हिस्सा किसी टीवी स्क्रीन की तरह रोशन हो गया और उसपर हरे रंग का लहराता हुआ धुवां जैसा दिखाई देने लगा था। सनी ने कील पर से अपना हाथ हटा लिया। उसके हाथ हटाते ही कील वापस उभर आयी और साथ ही दीवार पर दिखने वाला हरा धुवां गायब हो गया। सनी ने कुछ समझते हुए सर हिलाया और दूसरी कील दबा दी। एक बार फिर उसी दीवार पर रंगों से कोई अनजान पैटर्न बनने लगा था जो कि पिछले पैटर्न से अलग था।

अब उसने और एक्सपेरीमेन्ट करने का इरादा किया और दो कीलें एक साथ दबा दीं। इस बार नतीजा कुछ और था। दीवार पर किसी अनजान जगह की तस्वीर उभर आयी थी। शायद यह किसी वीरान ग्रह की शुष्क ज़मीन थी। उन्हीं दोनों कीलों को दबाये हुए सनी ने एक तीसरी कील भी दबा दी। इसबार भी नतीजा आश्चर्यजनक था।

उस वीरान ग्रह की तस्वीर अब थ्री डी होकर कमरे के भीतर उभर आयी थी। सनी ने सर हिलाते हुए तीन पुरानी कीलों के साथ चौथी कील को भी दबा दिया। और वह थ्री डी तस्वीर चलती फिरती नज़र आने लगी। ऐसा लगता था कि कोई अंतरिक्षयान उस ग्रह की भूमि के ऊपर उड़ रहा है और उसकी मूवी बना रहा है।

वह अपने दोनों हाथों से चार से ज़्यादा कीलें नहीं दबा सकता था अतः उसने उन्हें छोड़ दिया। कीलों को छोड़ते ही कमरे में दिखने वाली थ्री डी मूवी गायब हो गयी। कुछ कुछ कीलों का रहस्य सनी की समझ में आ गया था। अब उसने यह एक्सपेरीमेन्ट कीलों के नये सेट के साथ करने को सोचा। और चार नयी कीलें एक साथ दबा दीं।

इस बार भी एक थ्री डी मूवी कमरे में दिखने लगी थी। लेकिन दृश्य नया था। यह दृश्य किसी विशाल समुन्द्र का था जहाँ दैत्याकार लहरें कभी पहाड़ की ऊंचाई तक उठ रही थीं तो कभी नीचे गिर रही थीं। अपने एक्सपेरीमेन्ट को आगे बढ़ाते हुए उसने दो नयी और दो पुरानी कीलों के दबाया। इसबार उसे उस वीरान ग्रह पर ज़मीन से फूटता फव्वारा दिखाई दिया जो तेज़ी से विशाल तालाब का आकार ले रहा था। फिर वह तालाब देखते ही देखते विशाल समुन्द्र में बदल गया।

‘‘यह सब क्या है?’’ इतने एक्सपेरीमेन्ट करने के बावजूद सनी अभी तक कुछ नहीं समझ सका था। कीलों को दबाने पर कुछ दृश्य उभरते थे और उसके बाद गायब हो जाते थे। इतना ज़रूर उसने देखा था कि चार कीलों को एक साथ दबाने पर थ्री डी मूवी चलने लगती है जबकि तीन को दबाने पर किसी अनजान जगह का स्टिल थ्री डी फोटोग्राफ नज़र आता है। जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उसने संदूक में से उस सरकटे धड़ को निकालने का निश्चय किया।

उसने दोनों हाथ उस धड़ के नीचे लगाये और उसे उठाने के लिये ज़ोर लगाने लगा। उसके बंदर वाले जिस्म के लिये ये निहायत मुश्किल काम था। भरपूर ताकत लगाने के बाद आखिरकार वह उसे संदूक में से निकालने में कामयाब हो गया। जैसे ही उसने उस धड़ को निकाला उसने देखा कि दीवार की स्क्रीन एक बार फिर रोशन हो गयी थी और उसपर कोई थ्री डी मूवी इस तरह चल रही थी मानो कोई वीडियो कैसेट तेज़ी से रिवर्स की जा रही हो। लगभग दस मिनट तक वह मूवी ‘रिवर्स’ होती रही फिर एक तस्वीर पर आकर रुक गयी। और यह तस्वीर जानी पहचानी थी।

उस थ्री डी तस्वीर में वही कटा सर मेज़ पर रखा हुआ दिखाई दे रहा था जो इससे पहले वह कुएँ नुमा कमरे में देख चुका था। वह थ्री डी फोटोग्राफ अजीब था। लगता था जैसे हक़ीक़त में थोड़ी दूर पर मेज़ मौजूद है और उसपर कटा सर रखा हुआ है।

‘कहीं ऐसा तो नहीं वह फोटोग्राफ न होकर वास्तविकता हो?’ सनी ने सोचा और उस मेज़ की तरफ बढ़ा। मेज़ के पास पहुंचकर उसने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उसे यकीन था कि हाथ हवा में लहराकर रह जायेगा। क्योंकि वह इससे पहले कई थ्री डी फिल्में देख चुका था।

लेकिन यह क्या! मेज़ तो वाकई ठोस और वास्तविक थी। उसके हाथों ने मेज़ की सख्ती महसूस कर ली थी। फिर उसने देखा, मेज़ पर रखा सर भी वास्तविक था। उसने सर को उठाने की कोशिश की और सर आसानी से उसके हाथ में आ गया।

‘इसका मतलब मैं वाकई एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो चुका हूं।’ ये विचार आते ही उसका अंग अंग खुशी से फड़कने लगा। लेकिन आगे कौन सा कदम उठाना है? ये सवाल ज़हन में आते ही वह फिर मायूस हो गया। अभी तक तो अंधी चालें कामयाब साबित हुई थीं। शायद उसपर तक़दीर भी मेहरबान थी। लेकिन आगे क्या हो जाता कुछ नहीं कहा जा सकता था।

‘‘तुम ही बताओ कि मैं आगे क्या करूं?’’ सनी ने हाथ में पकड़े सर से पूछा। लेकिन सर खामोश रहा। हालांकि उसकी पलकें झपक रही थीं जिससे मालूम होता था कि वह सर अभी भी जिंदा है। फिर सनी ने देखा उस सर की आँखें धड़ की तरफ इशारा कर रही हैं।

कुछ सोचकर सनी वापस धड़ तक पहुंचा और सर को उस धड़ के ऊपर रख दिया। फिर उसने हैरत से देखा कि अब तक बेजान धड़ एकाएक उठ खड़ा हुआ। लेकिन अब उसे धड़ कहना मुनासिब नहीं था क्योंकि सर उसके ऊपर पूरी तरह जुड़ चुका था। और अब वह बूढ़ा व्यक्ति पूरी तरह मुकम्मल था।

और अब वह अपना हाथ सनी की तरफ बढ़ा रहा था। सनी डर कर जल्दी से दो तीन कदम पीछे हट गया।

‘‘डरो नहीं मेरे बच्चे। तुमने बहुत बड़ा काम किया है।’’ जिसके लिये मैं अगर जिंदगी भर तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं तो भी कम होगा।’’ उस बूढ़े ने मोहब्बत से उसके सर पर हाथ फेरा।

‘‘अ...आप कौन हैं?’’ सनी ये सवाल पहले भी उस बूढ़े के सर से पूछ चुका था और उस समय उसका जवाब नहीं मिला था।

‘‘मैं एम-स्पेस का क्रियेटर हूं।’’ बूढ़े की बात सुनकर सनी को एक झटका सा लगा। यानि वह बूढ़ा इस पूरे खतरनाक चक्रव्यूह का रचयिता था। लेकिन फिर वह खुद ही इस चक्रव्यूह में कैसे कैद हो गया? और उसने इस खतरनाक चक्रव्यूह को बनाया ही क्यों? अपने दिमाग में उमड़ते सवालों को सनी उस बूढ़े से पूछ बैठा।

‘‘एम-स्पेस स्वयं कोई खतरनाक चक्रव्यूह नहीं है। बल्कि इसकी मदद से चक्रव्यूह की रचना की जा सकती है।’’ बूढ़ा बताने लगा, ‘‘वास्तव में एम-स्पेस एक ऐसी मशीन है जो गणितीय समीकरणों द्वारा कण्ट्रोल होती है। और उन समीकरणों में उलट फेर करके कोई व्यक्ति इस यूनिवर्स में कहीं भी जा सकता है। और वहाँ की घटनाओं को कुछ हद तक कण्ट्रोल कर सकता है। सच कहा जाये तो हम जिस वास्तविक यूनिवर्स में रहते हैं वह भी गणितीय समीकरणों पर ही आधारित है। ये समीकरण ही फिज़िक्स के नियम कहलाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि एम-स्पेस वास्तविक यूनिवर्स का छोटा सा गणितीय मॉडल है।’’

‘‘और इस मॉडल को आपने बनाया है।’’ सनी ने प्रशंसात्मक दृष्टि से उस जीनियस को देखा।

‘‘हाँ। ये जो बॉक्स तुम देख रहे हो। जिसमें मेरा धड़ कैद था, ये एम-स्पेस को कण्ट्रोल करने का यन्त्र है। इसमें सैंकड़ों कीलों के अलग अलग काम्बीनेशन के द्वारा यूनिवर्स के अलग अलग स्थानों की घटनाओं को नियन्त्रित किया जा सकता है। और उन घटनाओं के लिये वह चक्रव्यूह की भी रचना की जा सकती है।’’

‘‘हाँ, मैंने भी कुछ कीलों को दबाकर घटनाओं को देखा था।’’

‘‘किसी जगह की घटनाओं को नियन्त्रित करने के लिये कम से कम चार कीलों को एक साथ दबाना ज़रूरी है। क्योंकि यूनिवर्स की सभी ये घटनाएं स्पेस-टाइम की चार विमाओं से कण्ट्रोल होती हैं। और चार कीलों का ग्रुप उन चारों विमाओं को प्रभावित करता है। लेकिन यूनिवर्स की घटनाओं को सुचारू तरीके से कण्ट्रोल करने के लिये कीलों के सही काम्बीनेशन की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है वरना इसे इस्तेमाल करने वाला गंभीर मुसीबत में भी गिरफ्तार हो सकता है।’’

बूढ़े की बात सनी के पल्ले पूरी तरह नहीं पड़ी। अतः उसने अगला सवाल पूछा जो बहुत देर से उसके दिमाग में घूम रहा था, ‘‘लेकिन आप खुद अपनी बनायी मशीन के चक्रव्यूह में कैसे फंस गये थे?’’

बूढ़े ने एक ठंडी साँस ली और कहने लगा, ‘‘दरअसल मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया। जब मैं अपनी मशीन को लगभग मुकम्मल करने की आखिरी स्टेज में था तो कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग मेरे शागिर्द बनकर मेरे ग्रुप में शामिल हो गये। सम्राट उनका लीडर था, वही सम्राट जिसका दिमाग तुम्हारे शरीर में फिट है। उन्होंने मेरी इस मशीन पर कब्ज़ा करके मुझे कैद कर लिया। इसी मशीन द्वारा उन्होंने मेरा सर अलग और धड़ अलग कर दिया था जिसके कारण मैं कुछ भी करने से लाचार हो गया। यहाँ तक कि मैं किसी को मदद के लिये भी नहीं कह सकता था वरना हमेशा के लिये मेरे सर का सम्पर्क धड़ से टूट जाता। यही वजह है कि मैंने हमेशा तुमसे इशारों में बात की। फिर इसी एम स्पेस द्वारा उन्होंने एक यान की रचना की और उसे लेकर पृथ्वी पर उतर गये। लेकिन उन्होंने कोई तकनीकी गलती कर दी थी अतः पृथ्वी पर उतरते समय सम्राट का शरीर नष्ट हो गया और उसने तुम्हारा शरीर ग्रहण कर लिया।’’

‘‘तो क्या अब मुझे कभी अपना शरीर वापस नहीं मिलेगा?’’ सनी ने थोड़ी आशा और थोड़ी निराशा के साथ बूढ़े की ओर देखा।

‘‘तुम अपने दिमाग से सम्राट द्वारा बनाये गये एम-स्पेस के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हुए है। इसलिए तुम्हारा शरीर तुम्हें ज़रूर मिलेगा। अब ये ज़िम्मेदारी मेरी है।’’ बूढ़े ने उसका कंधा थपथपाया।

-------

उस मैदान में कम से कम एक लाख लोगों का मजमा था जो सनी बने सम्राट के भक्त हो चुके थे। उनकी जय जयकार से पूरा मैदान गूंज रहा था। अभी तक उनके भगवान का वहाँ पर अवतरण नहीं हुआ था अतः टाइम पास करने के लिये वे उसकी तस्वीरों को नमन कर रहे थे। लगभग सभी के हाथों में सनी उर्फ सम्राट की तस्वीरें पायी जाती थीं।

फिर उन्होंने देखा आसमान से एक सिंहासन उतर रहा है। और उस सिंहासन पर सनी बना सम्राट विराजमान था। पब्लिक की जय जयकारों की आवाज़ें और तेज़ हो गयीं। सम्राट का सिंहासन चबूतरे पर उतर गया। और वह शान से सामने आकर पब्लिक को दोनों हाथ उठाकर शांत करने लगा। पब्लिक उसके प्रवचन को सुनने के लिये पूरी तरह शांत हो गयी।

सनी बने सम्राट ने कहना शुरू किया, ‘‘मेरे भक्तों, तुमने मुझे ईश्वर मान लिया है। अतः तुम्हें मैं इसका पुरस्कार अवश्य दूंगा। अभी और इसी समय।’’

‘‘भगवान, लेकिन मैंने तो सुना है कि ईश्वर भक्तों को उनका पुरस्कार मरने के बाद देते हैं।’’ एक जिज्ञासू भक्त बोल उठा।

‘‘यह उस समय होता है जब ईश्वर का अवतरण नहीं होता। अब ईश्वर का अवतरण हो चुका है अतः पुरस्कार भी अवतरित होगा।’’

‘‘वह पुरस्कार किस प्रकार का होगा भगवान?’’ एक भक्त ने भाव विह्वल होकर पूछा।

‘‘अभी थोड़ी देर में यहाँ पर हीरे मोतियों की बारिश होगी। और वह हीरे मोती केवल मेरे भक्तों के लिये होंगे।’’ सम्राट की बात सुनकर लोगों की नज़रें फौरन आसमान की ओर उठ गयीं। कुछ अक्लमंद भक्तों ने अपने सर पर कपड़े व बैग भी रख लिये। अगर बड़े हीरों की बारिश हुई तो उनकी खोपड़ी फूट भी सकती थी।

सम्राट ने अपना हाथ हवा में लहराया मानो वह हीरे मोतियों की बारिश करने के लिये कोई मन्त्र पढ़ रहा हो। लोगों ने देखा कि आसमान में चमकदार बादल छाने लगे थे। शायद यही बादल हीरे मोतियों से भरे थे। फिर थोड़ी देर बाद बारिश शुरू हो गयी।

लेकिन यह क्या? इस बारिश में हीरे मोतियों का तो कहीं अता पता नहीं था। बल्कि यह गंदे बदबूदार पानी की बारिश थी जिसमें साथ साथ मोटे मोटे कीड़े भी टपक रहे थे। वहाँ खलबली मच गयी। लोग बुरी तरह चीखने लगे। कुछ महिलाएं तो सुबह नाश्ते में जो कुछ खा पीकर आयी थीं वह वहीं उगलने लगीं।

‘‘भगवान ये सब क्या है?’’ कुछ भक्तों ने चीखकर पूछा। लेकिन भगवान खुद ही बदहवास हो चुके थे। ये माजरा उनकी समझ से भी बाहर था। सनी बने सम्राट के सामने चीख पुकार मची थी। लोग अपने ऊपर रेंगते कीड़ों को गिनगिनाते हुए फेंक रहे थे और किसी आड़ में जाने की कोशिश में भाग रहे थे। लेकिन उस मैदान में किसी आड़ का दूर दूर तक पता नहीं था।

‘‘भगवान .. भगवान! हमें इन बलाओं से बचाईए।’’ लोग हाथ जोड़ जोड़कर विनती कर रहे थे।

फिर सनी बने सम्राट ने चीखकर कहा, ‘‘आप लोग शांत रहें। शैतान ने मेरे काम में रुकावट डाली है। ये मुसीबत शैतान की लायी हुई है। उससे निपट कर मैं अभी वापस आता हूं।’’

वह फौरन अपने सिंहासन पर सवार हुआ और वहाँ से रफूचक्कर हो गया। मैदान में पहले की तरह अफरातफरी मची थी।

-------

अपने सिंहासन पर सवार सम्राट यान में दाखिल हुआ और उसके साथी उसके अभिवादन में खड़े हो गये। सम्राट जल्दी से यान से नीचे उतरा।

‘‘क्या बात है सम्राट?’’ उसे यूं हड़बड़ी में देखकर डोव ने पूछा।

‘‘कुछ गड़बड़ हुई है। मैंने एम-स्पेस द्वारा हीरे मोतियों की बारिश के लिये समीकरण सेट की थी लेकिन वहाँ से कीचड़ और कीड़ों की बारिश होने लगी।’’

‘‘क्या ऐसा कैसे हो सकता है?’’ सिलवासा हैरत से बोला।

‘‘कहीं एम-स्पेस में कोई खराबी तो नहीं आ गयी?’’ रोमियो ने विचार व्यक्त किया।

‘‘या तो किसी ने समीकरण को बदल दिया है।’’ सम्राट ने अंदाज़ा लगाया।

‘‘लेकिन ऐसा कौन कर सकता है?’’ रोमियो ने कहा।

‘‘ये मैंने किया है।’’ वहाँ पर एक आवाज़ गूंजी और सब की नज़रें यान की स्क्रीन पर उठ गयीं जहाँ बन्दर के शरीर में सनी नज़र आ रहा था।

‘‘तुम?’’ सम्राट ज़ोरों से चौंका। सनी को स्क्रीन पर देखकर सभी के चेहरों पर हैरत के आसार नज़र आने लगे।

‘‘हाँ। मैं जिसको तुम लोगों ने एम-स्पेस के चक्रव्यूह में फंसा दिया था। लेकिन मैं वहाँ से बाहर आ चुका हूं।’’

‘‘नहीं। ये असंभव है। पृथ्वी का कोई मानव उस चक्रव्यूह को पार ही नहीं कर सकता।’’ सम्राट बेयकीनी से बोला।

‘‘तुम लोगों ने पृथ्वीवासियों की क्षमता के बारे में गलत अनुमान लगाया था।’’ वे लोग एक बार फिर उछल पड़े क्योंकि अब वह बूढ़ा स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था जो एम-स्पेस का क्रियेटर था। वह कह रहा था, ‘‘इस बच्चे ने न केवल तुम्हारे चक्रव्यूह को भेद दिया बल्कि कण्ट्रोल रूम तक पहुंचकर मुझे भी आज़ाद कर दिया। और अब तुम लोग अपनी सज़ाओं को भुगतने के लिये मेरे पास आने वाले हो।’’

‘‘नहीं!’’ वे लोग एक साथ चीखे लेकिन उसी समय लाल रंग की किरणें उनके पूरे यान में बिखर गयीं और उन किरणों के बीच वे सभी गायब हो गये।

-------

यह एक बड़ा सा पिंजरा था जिसमें सम्राट और उसके साथी कैद थे। पिंजरा अजीब था क्योंकि उसकी सलाखें लोहे की न होकर सफेद रंग की किरणों से बनी थीं। इस पिंजरे के बाहर सनी व बूढ़ा दोनों मौजूद थे।

‘‘क्या अब तुम इन्हें मार दोगे?’’ सनी ने बूढ़े से पूछा।

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ बूढ़े ने पूछा।

‘‘नहीं इन्हें मारना मत। मैं किसी की जान नहीं लेना चाहता।’’

‘‘देख लिया तुम लोगों ने?’’ बूढ़े ने सम्राट व उसके साथियों को मुखातिब किया, ‘‘जिस लड़के को तुमने इतने कष्ट दिये वह तुम लोगों को मारना नहीं चाहता।’’

सम्राट किरणों से बनी सलाखों के पास आया और कहने लगा, ‘‘मारना तो हम भी इसे नहीं चाहते थे। यह लड़का तो खुद अपने को मारने जा रहा था। हमने इसके शरीर का उपयोग कर लिया।’’

‘‘हाँ, वह मेरी गलती थी।’’ सनी बोला, ‘‘लेकिन अब मुझे सबक मिल गया है कि दुनिया की मुसीबतों का अगर मुकाबला किया जाये तो वह मुसीबतें आसान हो जाती है। और गणित तो हरगिज़ मुसीबत नहीं है बल्कि बहुत सी मुश्किलों से मुकाबला करने का शक्तिशाली हथियार है।’’

बूढ़े ने सनी की ओर देखा, ‘‘तुम ठीक कहते हो। वैसे मेरा इन लोगों को मारने का कोई इरादा नहीं। और एम-स्पेस में मौत का कान्सेप्ट है भी नहीं।’’

‘‘क्या?’’ सनी ने हैरत से कहा, ‘‘लेकिन कुछ लोगों को मैंने अपनी आँखों से मरते हुए देखा है। जैसे कि फल खाकर मरने वाला वह बन्दर या वह फरिश्ता जिसने मुझे कण्ट्रोल रूम तक पहुंचाया।’’

‘‘वह लोग तुम्हारी आँखों के सामने मरे थे, लेकिन वास्तव में वह एम-स्पेस के किसी और यूनिवर्स में पहुंचकर जिंदा हैं। और किसी और रूप में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। एम-स्पेस में इसी तरह चीज़ें किसी और यूनिवर्स में पहुंचकर अपना रूप बदल लेती हैं। इसी तरह मैं इन लोगों को भी एक काम्प्लेक्स यूनिवर्स में भेजने वाला हूं जहाँ इनका अस्तित्व केवल आभासी रूप में होगा। यानि ये यूनिवर्स की घटनाओं का केवल एक हिस्सा होंगे लेकिन उन घटनाओं पर इनका कोई नियन्त्रण नहीं होगा।’’

‘‘नहीं प्लीज़ हमें ऐसा जगह न भेजिए जहाँ हम केवल कठपुतली बनकर रह जायें।’’ सम्राट हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया।

‘‘मैं समझता हूं कि तुम लोगों ने जो जुर्म किया है उसकी ये सज़ा भी कम है। लेकिन उससे पहले तुम्हें ये शरीर इस लड़के को वापस देना होगा।’’ कहते हुए बूढ़ा उस छोटी मशीन के पास पहुंचा जिसमें बेशुमार कीलें लगी हुई थीं। उसने उनमें से पन्द्रह बीस कीलें तेज़ी के साथ दबा दीं। इसी के साथ सनी को अपना सर चकराता हुआ महसूस हुआ। और फिर उसे कुछ होश नहीं रहा।

-------

सनी को जब दोबारा होश आया तो उसने अपने को किसी आरामदायक बिस्तर पर पाया। उसने अपनी आँखें मलीं और उठकर बैठ गया। उसे ये जगह जानी पहचानी लग रही थी। फिर उसे ध्यान आया, ये तो उसका ही कमरा था जहाँ पर आराम करने के लिये वह तरस गया था। अचानक उसकी नज़र अपने हाथों की तरफ गयी और उसने हर्षमिश्रित आश्चर्य से देखा कि उसकी शरीर अब बंदर का नहीं रहा था। बल्कि उसे उसका मानवीय शरीर वापस मिल गया था। यानि उस बूढ़े ने अपना वादा पूरा कर दिया था।

लेकिन वह बूढ़ा कहाँ है? और वह कण्ट्रोल रूम? उसने बिस्तर से नीचे की तरफ छलांग लगा दी। उसी समय उसे अपने सिरहाने रखा हुआ एक पर्चा नज़र आया। उसने उसे उठाया और पढ़ने लगा। उस पर्चे में बूढ़े ने उसे मुखातिब किया था।

‘सनी बेटे जब तुम जागने के बाद ये पर्चा पढ़ रहे होगे उस समय मैं तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर जा चुका हूंगा। अब तुम वही पुराने सनी बन चुके हो। लेकिन साथ में मैंने तुम्हारे दिमाग में थोड़ी सी पावर भी भर दी है। अब तुम्हें गणित और साइंस का कोई फार्मूला परेशान नहीं करेगा। कभी कभी हम लोग सपनों के द्वारा मिला करेंगे। अगर कभी भी तुम्हें मेरी ज़रूरत महसूस हो तो आँखें बन्द करके मन में कहना - एम-स्पेस के क्रियेटर मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मैं तुमसे अवश्य सम्पर्क करूंगा। शुभ प्रभात।

सनी के फेफड़ों से एक गहरी साँस खारिज हुई और उसने पर्चे को दोबारा पढ़ने के लिये उसकी ओर नज़र की। लेकिन ये क्या? पर्चे पर लिखी तहरीर गायब हो चुकी थी। उसने उलट पलट कर देखा। पर्चा पूरी तरह कोरा था। उसी समय कोई ज़ोर ज़ोर से उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगा। और साथ में उसके पापा की आवाज़ सुनाई दी, ‘‘सनी बेटा! दरवाज़ा खोलो जल्दी।’’

उसने जल्दी से आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल दिया। सामने उसके पापा मौजूद थे, ‘‘सनी बेटे तुमने हमें किस मुसीबत में फंसा दिया। सवेरे सवेरे दरवाज़े पर भीड़ इकट्ठा हो चुकी है। सब तुम्हारे दर्शन करना चाहते हैं।’’

‘‘आप चिंता मत कीजिए पापा। अभी सब ठीक हो जायेगा।’’ कहते हुए सनी दरवाज़े की ओर बढ़ा।

दरवाज़ा खोलते ही उसे अपनी कालोनी वालों के साथ ही आसपास की कालोनयों के भी काफी लोग दिखाई पड़े। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला सब उसके सामने नतमस्तक हो गये और उसकी जयजयकार करने लगे।

‘‘नहीं। ये गलत है। मैं न तो भगवान हूं और न ही कोई दैवी शक्ति। मैं तो बस एक मामूली इंसान हूं।’’ उसने चीख कर कहा।

ये सुनते ही पूरे मजमे पर सन्नाटा छा गया।

‘‘ये आप क्या कह रहे हैं? हम तो अब आप को भगवान ईश्वर सब कुछ मान बैठे हैं।’’ सबसे आगे मौजूद मलखान सिंह जी हकलाते हुए बोले।

‘‘हाँ हाँ। आप ही ने तो यह रहस्य हम पर खोला था कि आप भगवान हैं।’’ पंडित बी.एन.शर्मा हाथ जोड़कर बोले।

‘‘हाँ मैंने ये कहा था। लेकिन उस समय मैं अपने होश में नहीं था। दरअसल बहुत ज़्यादा गणित पढ़ने के कारण मेरा दिमाग उलट गया था। और मैं उल्टा सीधा बकने लगा था। लेकिन अब मैं ठीक हूं।’’

‘‘आप कैसे ठीक हुए भगवान?’’ पंडित बी.एन.शर्मा ने फिर हाथ जोड़कर पूछा।

‘‘मैंने अपने को अनुभव किया। एकांत में जाकर अपने बारे में सोचा। तब मुझे मालूम हुआ कि मैं बस मामूली इंसान हूं। इतना ज़रूर है कि अब मैं गणित में मामूली नहीं रहा। मैंने अपनी मेहनत से उसपर अधिकार स्थापित कर लिया है। और अब कोई मुझे घोंघाबसंत कहकर नहीं बुला सकता। आप लोग प्लीज़ अपने घरों को वापस जायें और जिन भगवानों की या अल्लाह की पूजा इबादत करते हैं उन ही की करते रहिए।’’ उसकी बात सुनकर मजमा धीरे धीरे तितर बितर होने लगा। और कुछ ही देर में वहाँ पर थोड़े से लोग बाकी रह गये थे।

सनी ने देखा कि उनमें अगवाल सर भी मौजूद हैं।

‘‘सर आप?’’

‘‘हाँ सनी बेटे। मैं तो तुम्हें भगवान समझकर कुछ माँगने आया था। मुझे क्या पता था कि यहाँ मुझे मायूसी हाथ लगेगी।’’ अग्रवाल सर के जुमले में गहरी मायूसी झलक रही थी।

‘‘सर मैं भगवान तो नहीं लेकिन अपनी समस्या मुझे ज़रूर बताईए। हो सकता है मैं कुछ कर सकूं।’’

‘‘बेटे। स्कूल की प्रिंसिपल मुझे निकालकर किसी और को मैथ के टीचर रखना चाहती है।’’ बड़ी मुश्किल से भर्राये गले से अग्रवाल सर ने अपनी बात पूरी की।

‘‘ऐसा हरगिज़ नहीं होगा।’’ सनी ने दृढ़ता से कहा, ‘‘मेरे मैथ के टीचर आप ही रहेंगे। मैं जाकर खुद प्रिंसिपल मैडम से बात करूंगा।

सनी ने देखा अग्रवाल सर की आँखें सागर की तरह लबालब भर गयी थीं। फिर बिना कुछ बोले अग्रवाल सर ने उसे गले से लगा लिया। गले लगते ही सनी की आँखें भी बरस पड़ी थीं।

टिप्पणियाँ